नेतागिरी

शिवसेना ने पूछा- पुलिस आयुक्तालय में बैठ वाझे वसूली कर रहा था और गृहमंत्री को जानकारी नहीं होगी ?

मुंबई: शिवसेना ने महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख पर लगे वसूली वाले आरोपों के बाद अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा किया है।

दरअसल शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में रविवार को राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख पर लगाए गए आरोपों का मुकाबला करने में असमर्थता के लिए महा विकास अघडी (एमवीए) सरकार की कड़ी आलोचना की, जिसमें कहा गया कि उनके पास ‘डैमेज कंट्रोल’ योजनाओं नाकाफ़ी थीं।

मुखपत्र सामना के संपादकीय में कहा गया है कि देशमुख के लिए उनके मंत्री पद से हटने और एमवीए सरकार को अस्थिर करने के लिए माहौल बनाया जा रहा है। इसने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को राज्य में सरकार अस्थिर करने के लिए विपक्ष के प्रयासों को कथित रूप से समर्थन देने के लिए प्रहार किया।

सम्पादकीय में महत्वपूर्ण बिन्दु:

  1. पुलिस आयुक्त ने गलतियां कीं इसलिए उन्हें जाना पड़ा, ऐसा एक बयान देशमुख द्वारा देते ही परमबीर सिंह ने 100 करोड़ की वसूली का टार्गेट गृहमंत्री ने  कैसे दिया था, ऐसा पत्र बम फोड़ दिया। 
  2. सचिन वाझे अब एक रहस्यमयी मामला बन गया है। पुलिस आयुक्त, गृहमंत्री, मंत्रिमंडल के प्रमुख लोगों का दुलारा व विश्वासपात्र रहा वाझे महज एक सहायक पुलिस निरीक्षक था। उसे मुंबई पुलिस का असीमित अधिकार किसके आदेश पर दिया यह वास्तविक जांच का विषय है। मुंबई पुलिस आयुक्तालय में बैठकर वाझे वसूली कर रहा था और गृहमंत्री को इस बारे में जानकारी नहीं होगी ?
  3. देशमुख को गृहमंत्री का पद दुर्घटनावश मिल गया। जयंत पाटील, दिलीप वलसे-पाटील ने गृहमंत्री का पद स्वीकार करने से मना कर दिया था। तब यह पद शरद पवार ने देशमुख को सौंपा। इस पद की एक गरिमा व रुतबा है। खौफ भी है।
  4. आर.आर. पाटील की गृहमंत्री के रूप में कार्य पद्धति की तुलना आज भी की जाती है। संदिग्ध व्यक्ति के घेरे में रहकर राज्य के गृहमंत्री पद पर बैठा कोई भी व्यक्ति काम नहीं कर सकता है। पुलिस विभाग पहले ही बदनाम है। उस पर ऐसी बातों से संदेह बढ़ता है।
  5. श्री अनिल देशमुख ने कुछ वरिष्ठ अधिकारियों से बेवजह पंगा लिया। गृहमंत्री को कम-से-कम बोलना चाहिए। बेवजह  कैमरे के सामने जाना और जांच का आदेश जारी करना अच्छा नहीं है। ‘सौ सुनार की एक लोहार की’ ऐसा बर्ताव गृहमंत्री का होना चाहिए। पुलिस विभाग का नेतृत्व सिर्फ ‘सैल्यूट’ लेने के लिए नहीं होता है। वह प्रखर नेतृत्व देने के लिए होता है। प्रखरता ईमानदारी से तैयार होती है, ये भूलने से कैसे चलेगा?
  6. परमबीर सिंह ने जब आरोप लगाया तब गृह विभाग और सरकार की धज्जियां उड़ी। परंतु महाराष्ट्र सरकार के बचाव में एक भी महत्वपूर्ण मंत्री तुरंत सामने नहीं आया। चौबीस घंटे गड़बड़ी का माहौल बना रहा। लोगों को परमबीर का आरोप प्रारंभ में सही लगा इसकी वजह सरकार के पास ‘डैमेज कंट्रोल’ के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी।
  7. एक वसूलीबाज पुलिस अधिकारी का बचाव प्रारंभ में विधान मंडल में किया। उसके बाद परमबीर सिंह के आरोपों का उत्तर देने के लिए कोई तैयार नहीं था और मीडिया पर कुछ समय के लिए विपक्ष ने कब्जा जमा लिया, यह भयंकर था।

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