चुनावी पेंचनेतागिरी

चुनाव नजदीक आते ही बदले बदले लग रहें मोहन भागवत के सुर, लोगों ने कहा एक राजनेता के जैसे कर रहे बयानबाजी

जब भी कोई संस्था या संगठन अपने मूल उद्देश्य से भटक जाता है या अपनी मूल विचारधारा से पीछे हटने लगता है तो उस संगठन के समर्थक स्वयं ही उनकी आलोचना करने से कतराते नहीं है, ऐसा ही कुछ खुद को हिन्दूओं का सबसे बड़ा हितैषी बताने वाले संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरआरएस) की वर्तमान स्थिति को देखकर लग रहा हैं। हमेशा से हिन्दुत्व की बात करने वाले और भारत के प्रत्येक नागरिक को हिंदू बताने वाले आरआरएस प्रमुख मोहन भागवत अब आए दिन अपने द्वारा ही दिए गए भाषणों में घिरते नजर आ रहें हैं। जो कभी हिन्दू और हिन्दुत्व की बात करते नहीं थकते थे, वह अब अन्य धर्मों के हितों को लेकर भी चिंतित दिखाई दे रहे है और खुलकर अपनी बात रख रहे हैं।

धर्मांतरण कर चुके लोगों के लिए दो दिवसीय सम्मेलन

वहीं अगर खबरों की माने तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जन संचार विंग विश्व संवाद केन्द्र नोयडा में आज 4 मार्च से दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन करने जा रहीं हैं। जिसमें इस बात पर चर्चा होगी कि जो भी अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के लोग धर्मांतरण कर चुके है, उन्हें आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए या नहीं। इतना ही नहीं लोगों का कहना है कि आरआरएस हमेशा से ही धर्मांतरण के विरोध में रहीं है, लेकिन अब वहीं आरआरएस धर्मांतरण पर बात न करके, धर्मांतरण कर चुके लोगों के लिए आरक्षण पर चर्चा कर रहीं है।

आपको बता दे कि यह वहीं आरआरएस है, जिसने कभी आरक्षण का सपोर्ट नहीं किया। लेकिन अब अगर स्वयं आरआरएस ही आरक्षण का लाभ दिलाने के लिए कार्यक्रम का आयोजन कर रही है तो तय है कि आरआरएस को निश्चित ही लोगों के आक्रोश और नाराजगी का सामना करना पड़ेगा।

ब्राह्मणों और ग्रंथों को लेकर भी कर चुके है टिप्पणी

आपको बता दे कि आरआरएस प्रमुख मोहन भागवत के द्वारा बीते दिनों संत रविदास जयंती के दौरान मुंबई में ब्राह्मणों को लेकर भी अनुचित टिप्पणी की गई थी। जिसमें उन्होंने जाति व्यवस्था का ठीकरा ब्राह्मणों के ऊपर फोड़ते हुए कहा था कि जाति भगवान ने नहीं बनाई है, बल्कि ब्राह्मणों के द्वारा बनाई गई व्यवस्था हैं। जो गलत है, जिसके बाद देश भर के ब्राह्मणों ने जगह-जगह आरआरएस प्रमुख के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था।

इतना ही नहीं अभी बीते दिन ही आरआरएस प्रमुख मोहन भागवत के द्वारा एक और बयान दिया गया है, जिसमें उन्होंने हिन्दू धर्म ग्रंथों को लेकर टिप्पणी की हैं। उन्होंने कहा कि हमारे यहां पहले के समय में ग्रंथ नहीं होतें थे, हमारा धर्म मौखिक परंपरा से चलता आया है। इसके बाद हमारे धर्म ग्रंथ इधर उधर हो गए, जिसमें कुछ स्वार्थी लोगों ने उल्टा सीधा घुसा दिया जो गलत हैं। जिसकी समीक्षा होनी चाहिए।

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