दुराचारदेश विदेश - क्राइम

ब्राह्मण महिला नर्स के साथ बलात्कार, 42 साल तक कोमा, मीडिया क्यों डकार गया ये मामला

उत्तरप्रदेश के हाथरस कांड के हाहाकार के बीच मीडिया ने कभी भी ऐसे मामले पर चर्चा नहीं की, जिसमें एक ब्राह्मण नर्स के साथ क्रूरतापूर्ण तरीके से बलात्कार किया गया था। जिसके बाद उस घटना ने पीड़िता का पूरा जीवन नरक से भी बदतर बना दिया था, जहां दुष्कर्म की घटना के बाद पीड़ित नर्स को करीब 42 साल तक लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखना पड़ा था। आपको बता दे कि हम बात कर रहे हैं कर्नाटक राज्य के उत्तर कन्नड़ में एक कोंकणी ब्राह्मण परिवार में जन्मीं नर्स अरुणा शानबाग की, जिनकी 42 साल से अधिक समय तक कोमा में रहने के बाद 18 मई 2015 को मौत हो गई थी।

जानिए क्या था पूरा मामला?

1973 में मुंबई के किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल में कार्यरत ब्राह्मण नर्स अरुणा शानबाग के साथ सफाईकर्मी सोहनलाल वाल्मीकि ने क्रूरतापूर्ण तरीके से बलात्कार किया था, जिससे उसे गंभीर मस्तिष्क क्षति हुई और वह जीवन भर लगातार वनस्पति अवस्था में रही। घटना उस समय की है, जब अरुणा शानबाग अस्पताल के तहखाने में कपड़े बदल रहीं थी कि अचानक सोहनलाल वाल्मीकि ने हमला करते हुए कुत्ते की चेन से उसका गला घोंट दिया और उसके साथ बलात्कार किया। जिसके चलते उसके मस्तिष्क व गर्भाशय ग्रीवा की हड्डी में गंभीर चोटें आई और कॉर्टिकल अंधापन हो गया, जिसके बाद वह वनस्पति अवस्था में आने से पहले कई महीनों तक कोमा में भी रही।

इतना ही नहीं उसकी इस हालत के बाबजूद अरूणा शानबाग का अस्पताल के कर्मचारियों ने पूरा ध्यान रखा और उसी वार्ड में रही जहां वह हमले से पहले काम किया करतीं थी। इस पूरे मामले में लोगों का ध्यान तब आकर्षित हुआ, जब एक पत्रकार पिंकी विरानी ने 2011 में उनकी ओर से इच्छामृत्यु के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिसमें शानबाग की तीन दशकों से अधिक समय तक की असहनीय पीड़ा का हवाला दिया गया था।

जिसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने वीरानी की याचिका का जवाब देते हुए अरूणा शानबाग की स्थिति की जांच के लिए एक चिकित्सा पैनल कमेटी का गठन किया और देश में इस प्रथा को विनियमित करने के लिए एक कानून की कमी का हवाला देते हुए अदालत ने अंततः इच्छामृत्यु की याचिका को खारिज कर दिया। हालांकि इस पूरे मामले में इस मामले में अदालत की राय थी कि भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति दी जा सकती है, जो उन रोगियों से उनके जीवन संबंधी उपायों को वापस लेने की अनुमति देती है। जो एक स्थायी वनस्पति अवस्था में हैं या गंभीर रूप से बीमार हैं और जिनके ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं है।

इससे सम्बंधित

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button