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बिहार में 15% सवर्णों को BJP-INC ने दिए 60 फीसदी टिकट, महागठबंधन ने सवर्ण वोट के लिए लालू को किया चुनाव से बाहर

पटना: बिहार की राजनीती में जहां रोज रोज राजनितिक मुकाबला दिलचस्प होता जा रहा है तो वहीं सवर्ण राजनीती का एक बार फिर उदय होता दिख रहा है। जहां बीजेपी ने दिल खोलकर सवर्णो को मैदान में उतारा है तो वहीं लालू की पार्टी RJD ने भी सवर्णो पर खूब दांव खेला है।

अकसर राज्य में दलित-पिछड़ों की राजनीती करने वाले राजद और जदयू ने भी इस बार सरकार बनाने में सवर्णो पर अधिक भरोसा जताया है।

NDA में साथ रह रहे LJP ने भी इस बार सवर्णो पर पहली बार दांव खेलने का प्रयास करते हुए करीब 35 फीसदी टिकटों पर सवर्णो को उतार दिया है। वक़्त के साथ बढ़ रही सरगर्मी में इस बार सवर्ण समाज के नेताओ की लॉटरी खुल रही है।

कांग्रेस भाजपा ने उतारे 60 प्रतिशत तक सवर्ण
15 प्रतिशत के करीब सवर्ण आबादी वाले बिहार में दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों ने अभी तक 60 फीसदी के करीब सवर्ण उम्मीदवारों को टिकट थमाया है। दलित राजनीती करने वाली चिराग पासवान की पार्टी ने भी इस बार सभी सीमाओं को लांघते हुए 35 फीसदी के करीब उच्च जाति से आने वाले नेताओं को टिकट थमाया है। वहीं अपनी राजनीती के उलट राजद व जदयू ने भी सवर्णो पर अपनी उम्मीद के विपरीत अधिक दांव लगाया है।

भूरा बाल साफ़ करो के नारे के बाद शुरू हुई थी सवर्णो की दुर्दशा
बिहार की राजनीती में लालू यादव के भूरा बाल के फॉर्मूले के बाद सवर्णो की दुर्गति होनी आंरभ हुई थी। वर्ष 1990 में दिग्गज नेता डॉ जग्गनाथ मिश्र हार गए थे व लालू यादव ने सत्ता का सुख हासिल किया था। राज्य में खुलेआम सवर्णो को समाज में घटने वाली हर विसंगति के लिए कोसना शुरू हो गया था।

जिसमे भूरा बाल (भू-भूमिहार, रा- राजपूत, बा- ब्राह्मण- ल- कायस्थ यानी भूरावाल) का फार्मूला खूब चर्चित हुआ था जिसकी वजह से लालू यादव ने राजनीती की हर एक उचाईयों को छुआ था। इसी दौरान देश भर में ब्राह्मणो की हो रही दुर्गति के बाद सभी ने बीजेपी का रुख करना शुरू कर दिया था। वहीं 1994 में बनी नितीश की समता पार्टी ने भी सवर्ण के विरोध में खूब आग उगलनी शुरू की थी।

2003 से बदलनी शुरू हुई किस्मत
लम्बे दौर तक राजनीती का शिकार हुए सवर्णो ने एक समय अपना सरनेम छुपाने के लिए कुमार का प्रयोग शुरू कर दिया था। ताकि किसी भी प्रकार के शोषण से बच सकें। बिहार से आने वाले लोग बताते है कि उस समय अगर किसी छात्र के नाम के पीछे सिंह, झा या शुक्ला लगा होता था तो यह तय होता था कि उसे उम्मीद से बेहद कम अंक दिए जायेंगे। जिस कारण लोगो ने अपना सरनेम बदलना शुरू कर दिया था। परन्तु 2003 के बाद नितीश कुमार ने अपने रुख को बदलते हुए सवर्णो को रिझाने के प्रयास शुरू कर दिए थे जिसके चलते भूमिहारो ने नितीश का दामन थाम लिया था।

तेजस्वी ने किया लालू के नाम, तस्वीर व राजनितिक फॉर्मूले से तौबा
राज्य में महागठबंधन के सीएम चेहरे तेजस्वी यादव ने अपने पिता की राजनितिक पैठ से दुरी बनाते हुए अब सवर्णो व हिन्दुओ को अपने पक्ष में लाने पर जोर देना शुरू किया है। आरजेडी के बड़े नेताओ के मुताबिक पार्टी में हुए मंथन में इस बात पर सहमति बनी है कि लालू का फार्मूला आज के समय में तर्क संगत नहीं रह गया है जिस कारण उन्होंने मुस्लिम को रिझाने व सवर्ण विरोधी राजनीती से परहेज करने का निर्णय लिया है।

ज्ञात होकि इससे पहले आम सभा में तेजस्वी ने सभी के सामने अपने पिता द्वारा सवर्ण विरोधी राजनीती के लिए माफ़ी भी मांगी थी। वहीं इस बार पोस्टर से भी लालू को नदारद किया गया है जहां चारो ओर वीडियो सन्देश से लेकर घर घर बटने वाले पर्चे तक से लालू को हटा दिया गया है।

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