भारत का अंतिम गाँव माणा, जहाँ आज भी बहती है पवित्र सरस्वती नदी, त्रेतायुग में है संदर्भ
उत्तराखंड की सीमा में स्थित माणा गांव इस दिशा में भारत का आखिरी गांव है, इसके बाद चीन की सीमा शुरू हो जाती है. माणा गांव को माना गांव भी कहा जाता है.
इस गांव का जिक्र त्रेतायुग से जुड़े संदर्भों में मिलता है. इसका पौराणिक नाम मणिभद्र बताया जाता है. प्रकृति के द्वारा बरसते अटूट प्यार के कारण इस गांव का द्रश्य बहुत सुंदर हैं. माणा गाँव उत्तराखंड में बदरीनाथ धाम से करीब 4 किलोमीटर दूरी पर स्थित है. इस गांव में मात्र कुछ महीने ही चहल-पहल रहती है. क्योंकि जब बदरीनाथ धाम के कपाट बंद हो जाते हैं तो यहां लोगों का आना भी कम हो जाता हैं.
सरस्वती नदी
उत्तराखंड के चमोली जिले में तिब्बत सीमा पर स्थित देश का अंतिम गांव माणा में आज भी सरस्वती की पूजा की जाती है. माणा में सरस्वती नदी बहती हैं. वहां उपस्थित सरस्वती कुंड से इस नदी का उद्गम स्थल माना जाता है. इस कुंड में माणा ग्लेशियर के साथ ही आसपास के ग्लेशियरों का पानी भी एकत्रित होता है. सरस्वती नदी यहां कुंड के बाद कई जगह हिमखंडों व पत्थरों के नीचे से बहकर सीधे माणा गाँव में दर्शन देती है. माणा में भीम पुल के पास सरस्वती की पूजा की जाती है. जिसके लिए देश – विदेश सभी जगहों से लोग यहाँ आते हैं.
सरस्वती नदी को श्राप
धर्म और संस्कृत ग्रंथों के अनुसार सरस्वती नदी का अस्तित्व था और इसे सिन्धु नदी के समान ही पवित्र माना जाता था. ऋग्वेद में भी सरस्वती नदी का उल्लेख मिलता है. महाभारत में भी सरस्वती नदी का उल्लेख मिलता हैं.
ऐसा माना जाता हैं कि सरस्वती नदी अपने उद्गम स्थल से कुछ ही दूरी पर विलीन हो जाती हैं और एक सच ये भी है कि वो अलकनंदा नदी में मिल जाती हैं. लेकिन सरस्वती नदी के मार्ग को लेकर जो रहस्य सालों से बना हुआ है. वो आज भी कायम है. प्रयागराज के संगम को भी गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम कहा जाता हैं. लेकिन वहां भी सिर्फ गंगा और यमुना नदी ही नज़र आती हैं. सरस्वती नदी वहां भी अदृश्य है.
पौराणिक मान्यताएं के अनुसार सरस्वती नदी गायब क्यों हुई इसको लेकर श्राप की बात कही जाती है. शास्त्रों में कहा जाता हैं कि सरस्वती नदी को वेद व्यास जी ने एक श्राप दिया था. जिससे सरस्वती नदी का विलुप्त होना माना जाता हैं. वेद व्यास जी के श्राप की वजह ये थी कि वेद व्यास जी जब महाभारत की रचना कर रहे थे तो सरस्वती नदी के शोर से उन्हें खलल पड़ रहा था. कहते हैं कि वेद व्यास जी बोलते जा रहे थे और गणेश जी उसे लिखते जा रहे थे. गणेश जी, जिस जगह पर बैठकर ये काम कर रहे थे, वो आज भी गणेश गुफा के रूप में मौजूद है.
वेद व्यास की (व्यास पोथी) नामक गुफा
वैदिक प्राचीन काल की ऐसी बहुत सारी गुफाएं या जगहें आज भी हैं जहां कुछ न कुछ रहस्य जरूर छुपे हुए हैं. आज हम आपको बतायेगे महाभारत काल की एक ऐसी गुफा व्यास पोथी बारे में…
ये रहस्यमय गुफा उत्तराखंड के माणा गांव में है. रहस्यों से भरी इस गुफा को ‘व्यास गुफा’ के नाम से जाना जाता है। वैसे तो यह एक छोटी सी गुफा है, लेकिन इसके बारे में कहा जाता है कि हजारों साल पहले महर्षि वेद व्यास ने इसी गुफा में रहकर वेदों और पुराणों का संकलन किया था. मान्यता यह भी है कि इसी गुफा में वेद व्यास जी ने भगवान श्री गणेश की सहायता से महाकाव्य महाभारत की रचना की थी.