Falana Report

51 साल पंडिताई करके भी कच्चे घर में रहते हैं पुरोहित, बेटा करता है मजदूरी

रीवा: ज्यादातर लोगों में आज भी ये धारणा बसी हुई है कि पंडिताई में बहुत सुख वैभव मिलता है मंदिरों से अनगिनत चढ़ावा मिलता है और वो राजसी ठाठ बाठ में अपना जीवन निर्वाह करते हैं।

फ़लाना दिखाना के ग्राउंड रिपोर्टर की मुलाक़ात हुई एक वृद्ध पुरोहित से जिन्होंने अपने जीवन का उदाहरण देकर पंडिताई व धन वैभव का गणित समझाया। दरअसल मध्यप्रदेश के रीवा जिले के संस्कृताचार्य व पुरोहित रामविश्वास त्रिपाठी 51 साल से (सन 1970) पण्डिताई कर रहे हैं लेकिन धन संपत्ति के नाम पर आज भी वो खपरैल मिट्टी वाले कच्चे घर में गुजारा करते हैं।

पुरोहित रामविश्वास रीवा जिले में सेमरिया थानांतर्गत तिघरा गांव के निवासी हैं और आज भी एक दो पड़ोसी गांव जैसे पटेहरा, लैन में भी उनकी जजमानी है। उनके दो बेटे हैं एक बाहर सूरत में मजदूरी करता है तो दूसरा बेटा हैदराबाद में किसी मंदिर में रहता है।

उन्होंने तब के जमाने में गांव से बाहर जाकर स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की थी। बताया कि प्राथमिक शिक्षा रीवा जिले के बछवाड़ा संस्कृत विद्यालय में अर्जित की और प्रथमा में 62% अंक अर्जित किए थे। फिर स्नातक की पढ़ाई भी रीवा शहर में की जबकि स्नातकोत्तर डिग्री आचार्य के लिए पढ़ने बनारस गए थे। वहां दो साल अन्नपूर्णा संस्कृत नामक शिक्षण संस्थान में पढ़ाई की। 

उन्होंने बताया कि इसके बाद बीएड की पढ़ाई की और पीएचडी के लिए भी उनका नाम आ गया था लेकिन उन्होंने इसे नहीं किया। इसके बाद वो संस्कृत के आचार्य बन गए उनकी रीवा जिले के संस्कृत स्कूलों में ही नौकरियों का चयन हुआ लगभग 16 साल तक कई स्कूलों में संस्कृत पढ़ाते रहे और जब जिले के बाहर दूरदराज क्षेत्र में स्थानांतरित किया गया तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी। इसके बाद वो फिर गाँव आकर सिर्फ पंडिताई ही करने लगे।

जीवन यापन के बारे में पुरोहित रामविश्वास ने बताया कि अब 81 वर्ष के हो गए हैं तो ज्यादा दौड़ भाग और पहले जैसे हर जगह पंडिताई नहीं कर पाते हैं पर मुख्य मुख्य जगह जरूर पूजा पाठ आज भी करवाते हैं। घर में थोड़ी बाड़ी खेती अंधिया (एक प्रणाली जिसमें आधा खेत के मालिक फसल लेता है आधा खेती करने वाला) में देने से हो जाती है। 

जब उनसे पूछा कि गरीबी रेखा कार्ड के बारे में पूछा तो बताया कि सरकार की तरफ से कुछ नहीं मिलता है। पिछली पंचवर्षीय सरपंची में 2 माह तक राशन मिला वो भी नाम किसी ने कटवा दिया। अब पूजा करवाने में बतौर दान दक्षिणा जो मिल गया उसी से गृहस्थी व घर खर्च चलता है। 

सरकारी आवास के बारे में पूछा तो पुरोहित ने बताया कि सरकार की किसी योजना का लाभ उन्हें नहीं मिल रहा है। कोई घर बार के बारे में बात भी नहीं करता अब जब नई पंचवर्षीय आए तो शायद कुछ हो।

उन्होंने कहा कि लगभग 50 साल की पण्डिताई करके भी कुछ नहीं कमाई की पहले भी कच्चा घर था आज भी वही बना है और बच्चों की कमाई में भी घर उसी दशा में है।

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