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हेलो अंकिल मैं खाना बोल रहा हूं…मुझे फेंकोगे तो…?

"नेशनल जिओग्रफिक" का चिंताजनक सर्वे आया कि खाना की शकल-सूरत के कारण लगभग पूरे पृथ्वी के 1 तिहाई हिस्से बराबर खाना फेंका जाता है, इसमें अमेरिकी भाईयों एवं बहनों का नाम टॉप पर है

नईदिल्ली : एक सवाल मैं करूं ? आप सब पार्टी-वार्टी में तो जाते ही होंगे या कभी भंडारा की लाइन में खड़े हुए हों तो खाना खाते समय कभी खयाल आया कि लोग थाली तो पूरा भर लेते हैं लेकिन आधा-अधूरा खाकर फेंक देते हैं ? लोगों की ऐसी ही आदत पर नेशनल जिओग्राफी नें रिपोर्ट प्रस्तुत की है | तो आइए जानते हैं कि क्या कहती है ये रिपोर्ट ?

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बर्बाद खाने से जनम होता है एक ग्रीन हॉउस गैस का :

नेशनल जिओग्राफ़िक में छपी खबर की मानें तो पता लगा कि जितना पृथ्वी का 1 तिहाई हिस्सा है (लगभग 30%) उतना तो लोग खाना बर्बाद कर देते हैं | उधर अमेरिकी खाद्य विभाग कहता है कि बर्बाद खाना की वजह से कचरों के ढेर से मीथेन (CH4) नामक जो ग्रीन हॉउस उत्पन्न होती है वही कूड़े के ढेर देश में इस गैस के उत्पादन का तीसरा सबसे बड़ा स्त्रोत बन चुके हैं  |

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अमेरिका में हर व्यक्ति 4 में से 1 किराने के समान फेंकता है जिसकी पूरे साल भर में कीमत 2.9 ट्रिलियन पौंड्स के आसपास हो जाती है |

आज हम प्रदूषण की भयावह स्तिथि से दो-दो हाँथ कर रहे हैं उसमें ग्रीन हॉउस गैसों का भी योगदान है दूसरी ओर खाना की असमान उपलब्धता से करोड़ों लोग भूंखे रहते हैं, बच्चे कुपोषण का शिकार होते हैं | तो फिर सवाल भी है कि क्या अगर इतना खाना फेंका न जाए तो करोड़ों लोगों की जान बच सकती है ?

जितना विश्व के एक क्षेत्र का खाद्यान्न उत्पादन, इधर उतना बर्बाद :

इसी तरह एक और चौंकाने वाली बात कि एक तरफ़ जहां सब-सहारा वाले अफ़्रीकी देशों में 230 टन खाद्यान्न उत्पन्न ही होता है उतना औद्योगिक देश खाना बर्बाद कर देते हैं |

अब बात हम अगर अपने देश भारत की करें तो यहाँ भी लोग बेझिझक खाना बर्बाद करते हैं लेकिन इसी देश की राजधानी दिल्ली में खाना न मिलने की वजह से मंडावली इलाके में 3 मासूमों बच्चियां काल के गाल में समा जाती हैं | ऐसे ही भारत समेत पूरी दुनिया में करोड़ों लोग भूंखे पेट सोने को मजबूर होते हैं |

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लेकिन हम समाजिक नैतिक व मानवीय कर्तव्य कहता है कि अगर एक अच्छी आदत से किसी भूंखे का पेट भर जाए वो आदत कल परसों नहीं बल्कि आज से ही बदल लेनी चाहिए |

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