इंटरव्यू: गीता-वेद जैसे हिंदू धर्मग्रंथों को सहेजने के लिए IIT कानपुर की आधुनिक वेबसाइट !
कानपुर (UP) : IIT प्रोफेसर ने सनातन संस्कृति को सहेजने के लिए देश में अनोखा काम किया है।
मानव सभ्यता की सबसे पुरानी सनातन परंपरा को सहेजने के लिए देश के नामचीन शिक्षण संस्थान के प्रोफेसर आए हैं। दरअसल रिपोर्ट IIT कानपुर से है जहां के प्रोफेसर TV प्रभाकर नें हिन्दू धर्मग्रंथों के लिए एडवांस वेबसाइट तैयार की है।
IIT कानपुर ने वेदों, शास्त्रों आदि के हमारे संस्कृति के खजाने पर एक वेबसाइट गीता सुपर साइट तैयार की है। जिससे स्पष्ट है कि आज के विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र से कोई व्यक्ति भारत में इसे गंभीरता से ले रहा है। आईआईटी के इस स्टार्टअप में, विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रत्येक श्लोक पर टिप्पणी भी प्रदान की गई है। जब आप भाषा को बंगाली के रूप में चुनते हैं, तो यह स्वचालित रूप से सब कुछ बंगाली में बदल देता है। प्रौद्योगिकी का शानदार उपयोग कर एक साथ गीता, रामायण, उपनिषद, ब्रह्मसूत्र, व अन्य ग्रन्थ पढ़ा और सुन भी सकते हैं।
फ़लाना दिखाना की टीम नें इस अनोखे स्टार्टअप को देश के सामने लाने वाले IIT कानपुर के प्रोफेसर डॉक्टर टीवी प्रभाकर से इंटरव्यू लिया।
टीम के एडिटर शुभम शर्मा ने सवाल किए कि “हिन्दू धर्मग्रंथों पर वेबसाइट क्यों शुरू की, इसके पीछे का उद्देश्य ?”
डॉक्टर प्रभाकर नें कहा कि वो 90 के दशक में इंटरनेट पर इलेक्ट्रॉनिक प्रकाशन और भारतीय भाषाओं में काम किया करते थे। और यह एक डेमो प्रोजेक्ट है जो उन्होंने 1997 से 2001 तक किया था। उस प्रोजेक्ट का उद्देश्य वाक्य था ‘समकालीन प्रारूपों में पारंपरिक ज्ञान’।
एडिटर शुभम शर्मा नें सवाल किया कि “भारतीय शिक्षा प्रणाली में भागवत गीता के महत्व के बारे में आप क्या सोचते हैं ?”
डॉक्टर प्रभाकर नें भारतीय ज्ञान प्रणालियों का उदाहरण देते हुए बताया कि जो ज्ञान परम्परा मौखिक रूप से शुरू हुई, बाद में पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक श्रुति व स्मरण के माध्यम से सौंप आगे दिया गया था। इसके बाद, उन्होंने तालपत्र और ताम्रपत्रों पर लिखा। इसके बाद अब WWW जैसे प्रिंटिंग और इलेक्ट्रॉनिक प्रकाशन प्लेटफ़ॉर्म आए हैं।
आगे डॉक्टर प्रभाकर नें कहा कि वो खोज रहे थे कि इस ज्ञान को वो उन स्वरूपों में कैसे पकड़ सकते हैं जो आधुनिक हैं। एक उदाहरण है कॉन्सेप्ट मैप का जिसे आप साइट पर देखा होगा।
एडिटर शुभम शर्मा नें दूसरा सवाल पूछा कि “क्या यह आईआईटी कानपुर का आधिकारिक कार्यक्रम है ?”
इसके जवाब में प्रोफेसर प्रभाकर नें कहा कि “यह MCIT द्वारा भारतीय भाषाओं में प्रौद्योगिकी विकास (TDIL) योजना 1997-2001 के तहत प्रायोजित परियोजना थी। हमने गूगल के पहले भारतीय भाषा मंच, भारतीय भाषा सर्च इंजन आदि का निर्माण किया था।