क्रिकेटदुराचार

युवराज द्वारा चहल को जातिसूचक शब्द कहने पर कोर्ट सख्त, DSP सहित 2 पर Sc-St एक्ट दर्ज करने का आदेश

हिसार: पिछले वर्ष हुए लाइव वीडियो चैट पर पूर्व क्रिकेटर युवराज सिंह द्वारा एक जाति विशेष का नाम लेने भर से उनकी मुश्किलें अब बढ़ गई है। लाइव चैट शो में युवराज के साथ रोहित शर्मा व यजुवेंद्र चहल भी मौजूद थे। जहां उन्होंने मजाकिया लहजे में चहल को एक विशेष जाति का नाम लेकर पुकारा था। जिसका चहल ने भी कोई बुरा नहीं माना है।

हालाँकि जैसे ही युवराज सिंह की यह वीडियो वायरल हुई उनपर हांसी पुलिस में एससी एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करने के लिए तहरीर दी गई थी। जिसको पुलिस ने नजरअंदाज कर दिया था। जिसके बाद शिकायतकर्ता ने गृह मंत्री से भी गुहार लगाई थी। पूर्व क्रिकेटर पर कोई कार्यवाई न होते देख जनवरी माह में शिकायतकर्ता ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जहां कोर्ट ने मुकदमा दर्ज न करने पर तीन बड़े अफसरों पर गाज गिराई है।

दरअसल, नेशनल अलायंस और दलित ह्यूमन राइट्स के संयोजक रजत कलसन ने बीते 11 जनवरी को अदालत में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि बीते वर्ष 2 जून को उन्होंने युवराज सिंह के खिलाफ हांसी पुलिस को एक शिकायत दी थी, बावजूद इसके पुलिस ने कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया था।

वहीं स्पेशल कोर्ट एससी एसटी ने एक्ट की अधिनियम धारा 4 के तहत डीएसपी विनोद शंकर तथा रोहताश सिंह सिहाग व थाना शहर हांसी प्रभारी जसवीर सिंह पर मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए है। एससी/एसटी एक्‍ट की इस धारा के तहत किसी लोकसेवक (जोकि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है) द्वारा अपने कर्तव्यों की अनदेखी किए जाने पर 6 माह से लेकर एक साल तक की सजा का प्रावधान है।

आपको बता दें कि इस मामले पर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने भी हांसी पुलिस अधीक्षक को एससी एसटी एक्ट के तहत कार्यवाई करने के आदेश दिए थे। बावजूद इसके कोई कार्यवाई नहीं करी गई थी।

कोर्ट के आदेश के मुताबिक तीनो पुलिस अफसरों पर एससी एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर 2 मार्च 2020 तक हिसार के पुलिस अधीक्षक को इस मामले में रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है। जिससे युवराज सिंह के अलावा तीनो पुलिस अफसरों की मुश्किलें बढ़ना तय माना जा रहा है।

आधे से ज्यादा जांच में फर्जी निकलते है एससी एसटी एक्ट के मुक़दमे
हमने अपनी पिछली रिपोर्ट में बताया था कि कैसे अधिकतर दलित उत्पीड़न के मामले जांच में फर्जी पाए जाते है। गत वर्ष की रिपोर्ट पेश करने के बाद राजस्थान सरकार ने बताया कि वर्ष 2019 में आधे दलित उत्पीड़न के मामले जाँच में फर्जी पाए गए थे जोकि पुलिस की दिक्कतों को बढ़ाता है। फर्जी साबित होने पर भी कोई कार्यवाई का प्रावधान न होने से लोग अंधाधुन उत्पीड़न के मामले दर्ज कराते है। हालाँकि पुलिस कोई भी मामला दर्ज करने से मना नहीं कर सकती है।


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