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दलित महिला ने झूठे SC-ST एक्ट व गैंग रेप में 4 निर्दोषो को फसाया, कोर्ट ने महिला पर आजीवन कारावास का मुकदमा चलाने का दिया निर्देश

बुलंदशहर: डिबाई क्षेत्र की एक दलित महिला महिला को एससी एसटी एक्ट व सामूहिक दुष्कर्म की झूठी रिपोर्ट दर्ज कराना बेहद महंगा पड़ गया है। कोर्ट ने फर्जी मुक़दमे व झूठे साक्ष्य पेश करने को लेकर महिला पर मुकदमा चलाने के निर्देश दिए जिसमे अधिकतम सजा आजीवन कारावास है।

दरअसल दलित महिला ने अपने गाँव के चार लोगो के खिलाफ खेत में पिस्तौल के बलबूते गैंग रेप का मुकदमा चलाने के लिए विशेष न्यायाधीश एससी-एसटी एक्ट संजीव कुमार की अदालत में तहरीर दाखिल करी थी।

जिसमे महिला ने बताया कि गाँव में खेत में चारा देखने के दौरान उसे डिबाई के मोहल्ला महादेव निवासी रूपकिशोर उर्फ भोला, कुमरौआ निवासी पवन कुमार, गांव उमरारा निवासी चेतन लोधी एवं मोहल्ला महादेव निवासी विवेक ने पकड़ लिया। विरोध करने पर उन्होंने बन्दुक निकाल जातिसूचक शब्द कह उसे जान से मारने की धमकी दी व जबरन सबने बारी बारी से बलात्कार किया।

दलित महिला के अनुसार यह घटना 24 जनवरी शाम की थी। साथ ही आरोप लगाया कि तहरीर देने के बावजूद पुलिस ने आरोपियों पर कोई कार्यवाई नहीं करी। वहीं मामले की संवेदनशीलता व आरोपों को देखते हुए अदालत ने इसे गंभीरता से लिया व सुनवाई प्रारम्भ करी।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि महिला के बयान व उसके पति के बयान आपस में विरोधाभास पैदा कर रहे है। वहीं महिला द्वारा दिए गए सभी साक्ष्य भी कोर्ट की जाँच में फर्जी पाए गए। ऐसे एक ही प्रश्न पर जब न्यायालय द्वारा महिला से पूछा गया कि वह जनवरी माह में सर्दी के मौसम में खेत पर क्यों गई?

जिस पर महिला ने जबाव दिया कि चारा देखने के लिए गई थी। उसका पति मायके में एक जन्मदिन में गया था, जिसके चलते उसे जाना पड़ा। इसके बाद न्यायालय द्वारा पति से पूछा गया तो उसने बताया कि वह दो साल से अपनी ससुराल ही नहीं गया है।

सख्ती से पूछने पर महिला द्वारा फर्जी मुक़दमे की बात स्वीकार्य कर ली गयी। इसी के साथ न्यायाधीश ने आदेश दिया कि महिला के खिलाफ धारा 340(न्यायालय की कार्रवाई में झूठे साक्ष्य पेश करना), सीआरपीसी के तहत आने वाली धारा 193, 209, 195 (सभी धाराओं का मतलब न्यायालय में झूठ बोलना, साक्ष्य देना) में परिवाद दर्ज किया जाए।

आपको बता दें कि आईपीसी की धारा 195 में आजीवन कारावास जैसी कठोर सजा भी शामिल है। कोर्ट का मानना ऐसे केस समाज में बदला लेने के मकसद से दायर किये जाते है जिससे निर्दोषो को लम्बे समय तक मानसिक तनाव व जेल तक में अपना जीवन बर्बाद करना पड़ जाता है।


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Why Harsh Meena is writing this piece?
Harsh Meena is a student of journalism at the University of Delhi. He reads and writes Dalit politics for exposing the venom spread by the so-called Dalit organizations. Besides, he is known for being vocal about the forceful conversions of the Hindu Dalits. Fun Fact, Dalit organizations hate him for exposing their nexus with Jay Meem

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