3 वर्ष पुरानी घटना बता दर्ज कराया था SC-ST एक्ट, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लगाई रोक
वाराणसी: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक कथित एससी एसटी एक्ट के मामले में वाराणसी एससी एसटी एक्ट अदालत में चल रही सुनवाई पर रोक लगा दी है। दरअसल पीड़ित ने मामले में घटना के लगभग 3 साल बाद एफआईआर दर्ज करवाई थी। जिसकी सुनवाई वाराणसी की स्पेशल एससी एसटी अदालत में चल रही थी।
मामले में दूसरे पक्ष ने अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। जहां से दूसरे पक्ष को राहत मिली है।
दरअसल यह पूरा मामला वाराणसी जिले के बड़ागांव थाना क्षेत्र का है। जहां प्रार्थी घनश्याम गोड़ ने हरि प्रकाश सिंह पर पैसों के लेनदेन में धोखाधड़ी और जाति सूचक शब्द से संबोधित करने (एससी एसटी एक्ट) का मामला दर्ज करवाया था। घनश्याम गोड ने हरि प्रकाश सिंह पर आरोप लगाया था कि उन्होंने जमीन दिलवाने का लालच देकर 11 जुलाई 2017 को उनके खाते से ₹2,50,000 ट्रांसफर करवा लिए थे तथा नगद एक लाख रुपए और लिए थे। जिसके बाद हरि प्रकाश सिंह ने घनश्याम को न तो रुपए वापस किए ना ही जमीन दिलवाई। निम्न मामले में घनश्याम ने घटना के 3 साल बाद, 7 जुलाई 2020 को बड़ागांव थाने में एफआईआर दर्ज करवाई।
वही हरि प्रकाश सिंह ने बताया कि घनश्याम के बैंक खाते में पैन कार्ड नहीं लगा था, इसलिए वे पैसे नहीं निकाल पा रहे थे। इसी कारण से 11 जुलाई 2017 को घनश्याम ने उनके खाते में पैसे ट्रांसफर किए थे। जिसको उन्होंने डेढ़ लाख नगद वापस कर दिए थे और 1 लाख रुपए की घनश्याम के नाम एफडी करवा दी थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस राजीव मिश्रा ने हरि प्रकाश सिंह द्वारा दिए गए आवेदन की सुनवाई करते हुए कहा कि, एफआईआर दर्ज कराने में लगभग 3 साल की देरी की गई है। जबकि दर्ज की गई एफआईआर में देरी के कारणों की व्याख्या भी नहीं की गई है। इसलिए वर्तमान आपराधिक कार्यवाही को कायम नहीं रखा जा सकता है और यह न्यायालय द्वारा रद्द किए जाने के योग्य है।
वहीं दूसरी ओर हरि प्रकाश सिंह ने घनश्याम गोड पर आरोप लगाया कि उनका अनुसूचित जाति अथवा जनजाति से कोई संबंध नहीं है। घनश्याम गोड ने बीते वर्ष एक जमीन के लेन देन में अदालत के समक्ष यह प्रमाण लगाया था कि वे अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के नहीं है।
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