जम्मू में हिरासत में रोहिंग्याओं की रिहाई नहीं, प्रक्रिया के बाद जाएंगे अपने देश: सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली: रोहिंग्याओं को उनके देश वापस भेजने से रोकने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने झटका दिया है।
दरअसल गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू में रोहिंग्या शरणार्थियों को हिरासत में रखने और उन्हें उनके मूल देश म्यांमार वापस भेजने के कदम को चुनौती देने वाली याचिका में राहत देने से इनकार कर दिया।
अदालत ने अपने फैसले में कहा, “अंतरिम राहत प्रदान करना संभव नहीं है। हालांकि यह स्पष्ट है कि जम्मू में रोहिंग्याओं की ओर से जिनके आवेदन को ले जाया गया है, उन्हें तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक कि इस तरह के निर्वासन के लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता है।”
सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू में होल्डिंग केंद्रों में हिरासत में लिए गए लगभग 150 से ज्यादा रोहिंग्याओं की रिहाई का आदेश देने से इनकार कर दिया है और कानून की प्रक्रिया के अनुसार उनके माता-पिता को उनके निर्वासन की अनुमति दी है।
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और वी रामसुब्रमण्यम की खंडपीठ ने मोहम्मद सलीमुल्लाह द्वारा रोहिंग्याओं की सुरक्षा के लिए दायर जनहित याचिका में दिए गए एक आवेदन में यह आदेश पारित किया है।
मार्च में गिरफ्तार हुए थे 150 रोहिंग्या:
गौरतलब है कि मार्च के पहले हफ्ते में जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने जम्मू में एमएएम स्टेडियम में अवैध रोहिंग्या की सत्यापन प्रक्रिया शुरू किया था। इसी क्रम में जम्मू कश्मीर पुलिस ने बताया था कि जम्मू में रहने वाले लगभग 150 से ज्यादा रोहिंग्याओं को एक ‘होल्डिंग सेंटर’ में स्थानांतरित कर दिया गया है, क्योंकि वे वैध दस्तावेज उपलब्ध नहीं करा सके।
सूचना के मुताबिक लंबे समय से 155 अवैध अप्रवासी जम्मू और कश्मीर में रह रहे थे, 5 मार्च 2021 को गृह विभाग की अधिसूचना की के बाद उन्हें एक होल्डिंग सेंटर में भेजा गया। यह कानून की उचित प्रक्रिया के अनुसार फारेनर्स एक्ट की धारा 3 (2) के तहत किया गया है।
अवैध अप्रवासी पासपोर्ट अधिनियम की धारा (3) के संदर्भ में आवश्यक कोई वैध यात्रा दस्तावेज नहीं रख रहे थे। जम्मू और कश्मीर में अभी भी ऐसे प्रवासियों की पहचान करने की कवायद जारी है। राष्ट्रीयता सत्यापन पूरा होने के बाद निर्वासन की प्रक्रिया जल्द ही शुरू होगी।
बता दें कि गृह मंत्रालय (MHA) के निर्देश के बाद ये प्रक्रिया शुरू की गई थी क्योंकि अब एक साल से अधिक समय तक सत्यापन नहीं किया गया था। कई रोहिंग्या जम्मू और कश्मीर के कुछ हिस्सों में रह रहे हैं और लंबे समय से यहां काम कर रहे हैं। उन्हें पता लगाने के निर्देश के बाद सत्यापन प्रक्रिया की गई थी।