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सुप्रीम कोर्ट नें 10% आरक्षण में रोंक लगाने से किया इंकार…

याचिकाओं में संविधान संशोधन (103वां संशोधन) अधिनियम, 2019 की वैधता को चुनौती दी गई थी, कोर्ट ने केंद्र को नोटिस तलब  कर जवाब मांगा है

नईदिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में 10% आरक्षण देने वाले कानून पर रोक लगाने से फिलहाल मना कर दिया है।

कोर्ट ने सरकार से 4 हफ़्ते में मांगा जवाब :

आरक्षण को असंवैधानिक करार करने वाली याचिकाओं को देखते हुए कोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार को नोटिस तलब  कर जवाब मांगा है। मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई ने कहा कि हम इस केस की परीक्षण करेंगे। और अगली सुनवाई कोर्ट अब इस मामले में चार हफ्ते में करेगा।

कोर्ट में आर्थिक तौर पर सामान्य वर्ग के लोगों को नौकरी व शैक्षिक संस्थाओं में 10% आरक्षण देने के लिए संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती दी गई है। यह याचिकाएं मुंबई के कारोबारी तहसीन पूनावाला व यूथ फॉर इक्वालिटी सहित कई संगठन और लोगों ने दाखिल की हैं।

यूथ फॉर इक्वलिटी जातिगत आरक्षण का विरोध करती है न कि आर्थिक :

हालांकि कई लोगों के मन में अभी भी संदेह बना है कि जब यूथ फार इक्वलिटी जातिगत आरक्षण का विरोध करती है उसके बाद भी कोर्ट में क्यों गई ? इस बारे में जब फलाना दिखाना की टीम नें पूंछा तो उन्होंने कहा कि ” हम आर्थिक आरक्षण के 100% समर्थक हैं और मोदी सरकार नें ऐतिहासिक फैंसला लिया है आर्थिक आरक्षण लाकर जिसके लिए हम 10 साल से लड़ाई लड़ रहे थे | ”

आगे इसी में उन्होंने कहा कि ” हम चाहते हैं कि सामान्य वर्ग की तरह सभी वर्गों में आर्थिक आरक्षण लागू करके इसकी सीमा 50% तक ही रहने दी जाए अन्यथा सभी पार्टिया आगे अपनी वोट बैंक बनाने के चक्कर में कहीं 100% न करदें जिसके कारण मेरिट दम तोड़ देगी | ”

इसके अलावा कहा कि ” प्राइवेट सेक्टर में हम किसी भी तरह के आरक्षण का विरोध करते हैं अगर ऐसा किया गया तो हम इसके लिए पूरे देश में 2006 की तरह आंदोलन करेंगे क्योंकि इससे देश पूरी तरह विनाश की ओर जाएगा | ”

आखिर याचिका में क्या था…?

याचिकाओं में संविधान संशोधन (103वां संशोधन) अधिनियम, 2019 की वैधता को चुनौती दी गई है, जिसे संसद के दोनों सदनों ने बतौर 124वें संविधान संशोधन विधेयक, 2019 के तौर पर पारित किया था। याचिकाओं में अनुच्छेद-15(6) और 16 (6) जोड़े जाने को संविधान के मूल ढांचे में बदलाव बताया गया है। साथ ही इसके जरिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्फल करने की भी कोशिश का आरोप लगाया गया है।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने फौरन रोक लगाने इनकार कर केंद्र से जवाब मांगा है।

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