Falana Report

UP: 4 बेटियों संग छप्पर में रहते हैं पुरोहित, बेटी का स्कूल फॉर्म भरने को ग्रामीणों ने जुटाए थे 2.5 हजार

रायबरेली: किसी ने गरीबी बयाँ करते हुए ठीक ही कहा था “बहुत जल्दी सीख लेता हूँ जिंदगी का सबक; गरीब बच्चा हूँ बात-बात पर जिद नहीं करता…।”

ऐसा ही कुछ दर्द उत्तर प्रदेश के रायबरेली के रहने वाले पुरोहित अरुण कुमार मिश्रा के बच्चों का भी है। कहने को अरुण पंडिताई का काम करते हैं पर घर बार चलाने के लिए आज यहां वहां मजदूरी भी करनी पड़ती है।

अरूण कुमार मिश्रा पुत्र माताप्रसाद मिश्रा निवासी पूरे मिश्रन ग्रामपंचायत कलन्दर पुर विकास खंड राही जनपद रायबरेली की 5 बेटियां हैं एक की शादी हो गई है बाकी 4 स्कूलों में पढ़ रही हैं। घर में पत्नी सहित 6 लोग हैं। जैसा आमजनमानस में धारणा है कि पंडिताई करने वाले पुरोहित आलीशान घरों में रहते हैं खासा मंदिरों में कमाई करते हैं। हालांकि ये बातें तो कहने की हैं क्योंकि अरुण मिश्रा घर का खर्च चलाने के लिए मजदूरी भी करते हैं।

बताया कि अरुण मिश्रा की बड़ी बेटी शिवानी की शादी 2 मार्च 2020 को हो गई। लेकिन शादी के लिए सरकारी अनुदान के लिये फार्म भरा प्रयास किया लेकिन एक रूपया नही मिला।

पण्डिताई के साथ साथ गुजरात के अहमदाबाद के सीटीएम टाईल टैक्स फैक्ट्री में सन् 2002 से 2000 महीनें की नौकरी शुरू किया व दिसम्बर 2019 से बेटी की शादी के लिये घर आये उसी समय से वापस जाना नही हो पाया जब दिसम्बर में आये थे उस समय इनकी मजदूरी 10000 मात्र थी।

Mud House of Pandit Arun Mishra

संस्कृत की बेहतर जानकारी व समझ है पुरोहित कर्म भी करतें हैं, लेकिन पुरोहित कर्मकाण्ड गाँव में करनें के कारण आमदनी उतनी नही हो पाती है जिससे परिवार का जीवन यापन हो सके।

अरूण के पास सर छिपानें के लिये फूस का छप्पर की मड़ई है, भाई से विवाद के कारण भाई नें अपनें 3 कमरों के मकान से अलग कर दिया है। जिस कारण फूस के मड़ई में परिवार के जीवन यापन के कारण अरुण मिश्रा पुनः मजदूरी के लिए अहमदाबाद नही जा पा रहें हैं।

वहीं अरूण भी शासन प्रशासन की योजनाओं से वंचित होने के कारण से असंतुष्ट हैं उन्हें विश्वास है कि सरकार आज नही तो कल उन्हें आवास जरुर देगी। उनके घर में शौचालय निर्माण भी नहीं हुआ है। सरकारी योजनाओं के नाम पर 6 सदस्यों के अनुसार 30 किलो मासिक राशन मिल जाता है।

पंडिताई के बारे में अरुण मिश्रा ने बताया कि महीने में 2-4 कथा कराने को मिल जाती हैं। और इन कथाओं में 100-200 रुपए मिलता है उससे ही खर्च चलाते हैं। जमीन तो है नहीं कि खेती करें। घर में एक गाय रखे हैं ताकि थोड़ा बहुत आर्थिक सहारा दे।

पुरोहित अरुण मिश्रा की गरीबी के बारे में एक परिचित बताते हैं कि 4 साल पहले उनकी बड़ी बिटिया शिवानी का जब 10वीं में फॉर्म भरना था तो 2.5 हजार रुपये की जरूरत थी जो अरुण मिश्रा से नहीं हो सका। तो गांव के लोगों ने 2.5 हजार इकट्ठा कर शिवानी का फॉर्म भरवाया था।

जब हमनें चारों बेटियों की शादी के बारे में पूछा तो असहाय स्वर में कहा था भगवान मालिक है एक की हो गई है देखते हैं क्या होगा। बस उम्मीद बस यही कह रहे थे कि शासन एक घर बनवा दे तो सर पर एक छत तो हो।

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