इतिहास में आज

शास्त्री जी मां से अपने आप को रेलमंत्री नहीं रेल कर्मचारी बताते थे- ऐसे थे अपने शास्त्री जी

नईदिल्ली : शास्त्री जी मां को नहीं बताए थे कि वो रेलमंत्री हैं ताकि पद का दुरुपयोग न हो।
आज लाल बहादुर शास्त्री जी जन्मदिन है, उत्तरप्रदेश के मुगलसराय जिले में 2 अक्टूबर 1904 को शास्त्री जी जनम हुआ था। उन्हें गुदड़ी का लाल भी कहा जाता था सादगी से उनका अपरम्पार रिश्ता था कई तस्वीरों में आपने भी उनका पहनावा व रहन सहन देखा ही होगा । मानो यदि ऐसी स्थिति हो कि शास्त्री जी आपके सामने उसी वेशभूषा में खड़े हों आप बमुश्किल ही पहचान पाएं।
Shastri Ji in field
स्कूल की क़िताबों में पहली दूसरी से लेकर हर कक्षा में शास्त्री जी के बारे में हमें हमारे गुरुओं नें प्रेरक प्रसंग पढ़ाया । हम लोग बौद्धिक स्तर पर बड़े हुए तो शास्त्री जी के विचारों नें काफ़ी प्रभावित किया, उनको आदर्श मानकर अपने रास्ते पर चले।
ऐसे ही एक प्रेरक प्रसंग है इस महान व्यक्ति के बारे में जो कॉफ़ी गहरी व अमिट छाप छोड़ गया देशवासियों के लिए। शायद उनकी इस सादगीपना जिंदगी के बाद ईश्वर नें ऐसे लोगों की आत्मा को ढालना ही बंद कर दिया।
एक बार की बात थी शास्त्री जी उस समय देश के रेलमंत्री के पद पर आसीन हुए थे “उन्होंने मां को नहीं बताया था कि वो रेल मंत्री हैं। कहा था कि ‘मैं रेलवे में नौकरी करता हूं’।
Shastri Ji with his mother Ram Dulari
एक बार किसी कार्यक्रम में आए थे जब उनकी मां भी वहां पूछते-पूछते पहुंची कि मेरा बेटा भी आया है, वह भी रेलवे में है।

लोगों ने पूछा क्या नाम है जब उन्होंने नाम बताया तो सब चौंक गए बोले, ‘यह झूठ बोल रही है’।

पर वह बोली, ‘नहीं वह आए हैं’।
लोगों ने उन्हें लाल बहादुर शास्त्री जी के सामने ले जाकर पूछा,’ क्या वही हैं?’

तो मां बोली ‘हां वह मेरा बेटा है’ लोग मंत्री जी से दिखा कर बोले ‘क्या वह आपकी मां है’
तब शास्त्री जी ने अपनी मां को बुला कर अपने पास बिठाया और कुछ देर बाद घर भेज दिया।

तो पत्रकारों ने पूछा ‘आपने उनके सामने भाषण क्यों नहीं दिया’ तो वह बोले-
‘मेरी मां को नहीं पता कि मैं मंत्री हूं। अगर उन्हें पता चल जाए तो वह लोगों की सिफारिश करने लगेगी और मैं मना भी नहीं कर पाऊंगा।….. और उन्हें अहंकार भी हो जाएगा।’

जवाब सुनकर सब सन्न रह गए।

हालांकि शास्त्री जी के बारे में इसके अलावा कई बातें हैं जिन्हें हम शायद अच्छी तरह से न जानते हों वैसे शास्त्री जी का पूरा नाम था लाल बहादुर वर्मा था, शास्त्री जी कायस्थ परिवार से आते थे जहां श्रीवास्तव व वर्मा उपनाम लगाते थे। लेकिन स्नातक डिग्री, काशी विद्या पीठ में उनको शास्त्री की उपाधि मिली तो उन्होंने श्रीवास्तव त्याग दिया।

इसके अलावा दहेज को भी उन्होंने अस्वीकार कर दिया था।

एक बार, जब उनके बेटों ने कार्यालय की कार ली तो उन्होंने उसका किराया भरा था।

Shastri Ji along with ministers

उनकी शक्ति का उन्होंने कभी दुरुपयोग नहीं किया ईमानदार और अनुशासित, यात्रा के काम पर भी कोई बहाना नहीं था जय जवान, जय किसान, जो आदमी दूसरे के काम में आया था उसे कभी नहीं भूलता।

ऐसे बेमिसाल व्यक्ति को हम अपने धरती में पाकर धन्य हो गए और आने वाली पीढ़ियों को उनके इस अप्रतिम व्यक्तिव के बारे जरूर बताएंगे ।

 

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