जगद्गुरु शंकराचार्य ने हरिद्वार कुंभ में स्थान नहीं मिलने का लगाया आरोप, कहा- शासन तंत्र ने पूर्ण उपेक्षा की
हिंदू धर्म में शंकराचार्य को सर्वोच्च पद माना गया है। इस पद की परंपरा आदि गुरु शंकराचार्य ने आरंभ की थी। आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा और प्रचार प्रसार के लिए देश के चार दिशाओं में चार पीठ की स्थापना की थी। जहां चारों पीठों के लिए अलग-अलग चार शंकराचार्य होते हैं। सनातन धर्म के शंकराचार्य की स्थिति इन दिनों हैरान करने वाली है।
हरिद्वार कुंभ में जगद्गुरु शंकराचार्य के लिए स्थान नहीं:
बीते 9 मार्च को गोवर्धन मठ के प्रमुख शंकराचार्य ने एक वीडियो जारी कर आरोप लगाया कि, “शासन तंत्र ने उन्हें पूर्ण उपेक्षित किया है। कुंभ में उन्हें अब तक उचित भूमि देने का कोई प्रकल्प तक नहीं चलाया गया है। क्या धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र का नेतृत्व भी आप (सरकार) ही संभालना चाहते हैं? स्वस्थ क्रांति की ओर भावना के लिए आवश्यक है कि हमारे साथ अन्याय हो अन्यथा हम यह संकेत करेंगे कि आप लोग शासन करने के पात्र बिल्कुल नहीं है। माननीय मुख्यमंत्री जी बताएं शंकराचार्य की उपेक्षा क्यों? हमारी बातों को गंभीरता पूर्वक लीजिए और 5 दिनों की समय सीमा में उचित स्थल पर पर्याप्त भूमि देने का प्रयास कीजिए”
अखाड़ों को भूमि आवंटन के आदेश
हरिद्वार कुंभ क्षेत्र में अखाड़ों की छावनी कैम्प और टेंट लगाने के लिए प्रदेश सरकार ने मेला अधिष्ठान को भूमि आवंटन के आदेश जारी कर दिए हैं इससे कुंभ में महामंडलेश्वर नगर के साथ शंकराचार्य नगर और अखाड़ों की छावनी की स्थापना का रास्ता साफ हो गया है।
प्रयागराज में आसाराम व नित्यानंद को कुंभ में शिविर के लिए मिली थी जमीन
प्रयागराज में वर्ष 2019 में हुए अर्ध कुंभ में मेला प्रशासन ने शिविर लगाने के लिए दुष्कर्म मामले में आरोपी आसाराम बापू व स्कैंडल में लिप्त योग गुरु नित्यानंद को भूमि आवंटित कर दी थी। जिस पर हंगामा मचने के बाद मेला प्रशासन ने आवंटन रद्द किया था।
मठों के शंकराचार्य के पद के लिए भी विवाद-
आदि शंकराचार्य द्वारा चारों दिशाओं में बनाए गए 4 मठों में से 3 के प्रमुख पदों को लेकर विवाद की स्थिति है। कई मठों पर एक से अधिक लोगों ने शंकराचार्य होने का दावा किया तो कई जगहों पर परंपरा का उल्लंघन हो रहा है। ऐसी स्थिति में अनुयाई गण असमंजस में है कि किसे असली माने और किसे नकली?
विवादों में स्वामी अधोक्षजानंद
अमर उजाला ने 24 अक्टूबर 2020 को एक खबर लिखी थी । जिसमें दावा किया गया था कि असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने गोवर्धन (मथुरा) स्थित स्वामी अधोक्षजानंद को कथित रूप से पुरी पीठ का शंकराचार्य मानकर उनसे आशीर्वाद लिया। दैनिक जागरण में छापी गई 4 नवंबर की रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी के राज्यसभा सांसद अनिल जैन ने स्वामी अधोक्षजानंद को गोवर्धन पीठ का कथित शंकराचार्य मानकर उनसे आशीर्वाद लिया। इन घटनाओं पर विवाद की स्थिति इसलिए बनी है क्योंकि लोग ऐसा मानते हैं कि स्वामी अधोक्षजानंद असली शंकराचार्य है ही नहीं।
जगदगुरू पुरी शंकराचार्य निश्चलानंद का रौद्र रूप आया था सामने
पिछले दिनों असम के सीएम सर्वानंद सोनोवाल को अधोक्षजानंद ने कृष्ण जन्मभूमि में पूजा-अर्चना करवाई उन्होंने खुद को पूरी का शंकराचार्य बताया। इस दौरान कलेक्टर और प्रशासनिक अमले ने अधोक्षजानंद का स्वागत किया। खुद को पूरी का शंकराचार्य घोषित करने पर अधोक्षजानंद से निश्चलानंद सरस्वती नाराज थे और मोदी व योगी पर तंज कस रहे थे।