Opinion

भारतीय इतिहास ब्राह्मणों की बुद्धि और क्षत्रियों के लहू से सुशोभित है, हज़ारों वर्षो के भाई चारे को त्यागना मूर्खता होगी

कई अर्सों से कुछ पत्रकार जो खासकर गैर भाजपा दलों से जुड़ें हैं उन्होंने योगी आदित्यनाथ और बीजेपी की बजाये क्षत्रिय समाज को निशाना बनाते हुए “ठाकुरवाद” का दुष्प्रचार किया है I योगी जी के हिंदुस्तान टाइम्स के इंटरव्यू से केवल ७ सेकंड के भाग को प्रचारित किया गया जिसमे उन्होंने एक प्रश्न का उत्तर दिया था की क्षत्रिय परिवार में जन्म लेना कोई अपराध नहीं है। इसमें कोई गलत बात नहीं है। कुछ पत्रकारों व नेताओं ने कुटिलता से उनके पुरे इंटरव्यू को, जिसमे उन्होंने यह बात कि उन्होंने और उत्तर प्रदेश सरकार ने कोई भी काम किसी जाति को देखकर नहीं किया, को छिपाकर झूठे ठाकुरवाद का दुष्प्रचार किया। यह निंदनीय है और शर्मनाक है। ऐसा लगता है जैसे यूपी चुनाव असल में क्षत्रिय समाज के विरुद्ध लड़ा जा रहा है। यही नहीं , बल्कि बीजेपी के विपक्ष वाले दलों ने क्षत्रिय राजाओं की जाति को भी चुनाव का मुद्दा बना दिया है। उनकी लड़ाई बीजेपी और योगी से होती तो अलग बात थी, मगर यहां लड़ाई क्षत्रिय समाज के विरुद्ध लड़ी जा रही है।

एक तरफ यह प्रचार किया जा रहा है कि इस राज्य में ठाकुरों का राज चल रहा है और क्षत्रिय समाज ब्राह्मणों से लेकर दलितों पर आँख बंदकर के अत्याचार कर रहा है , तो हमें वोट दो और हम क्षत्रियों को ख़त्म कर देंगे। तो दूसरी ओर यह भी बोला जा रहा है कि हमें वोट दो, तो हम फलाना फलाना राजपूत राजा को आपकी जाति का घोषित कर देंगे ।

पहले बात करते है हम ठाकुरवाद के दुष्प्रचार पर। यह दुष्प्रचार विकास दुबे एनकाउंटर के वक्त सर्व प्रथम पत्रकार ब्रजेश मिश्रा और प्रज्ञा मिश्रा ने शुरू किया था। इसमें अन्य पत्रकार भी थे, जैसे – दीपक शर्मा, स्वाति चतुर्वेदी , और चित्रा त्रिपाठी। इलज़ाम यह लगा कि आम क्षत्रिय पुरे यूपी में एक नस्लवादी नाज़ी स्टाइल में तानाशाही कर रहा है, और ब्राह्मण जाट अहीर दलित सभी का शोषण हो रहा है। इसमें द प्रिंट से लेकर दैनिक भास्कर और भारत समाचार जैसे बड़े मीडिया ने यह माहौल बनाने में पूरा जोर भी लगाया। इसको साबित करने के लिए, “सिंह” नाम के डीएम और एसपी की लिस्ट घुमाई जाती है । अब मुझे बताइये कि क्या आज के दौर में “सिंह” नाम सिर्फ क्षत्रिय समाज के लोग लगाते हैं? क्या “सिंह” नाम देखकर आप पता लगा सकते हैं कि सामने वाला क्षत्रिय समाज से ही आता है। उदाहरण के लिए, मुंबई पुलिस प्रमुख परम बीर सिंह गूजर समाज से हैं जबकि बिहार के आईपीएस लिपि सिंह कुर्मी हैं। लिपि सिंह हाल ही में विधायक अनंत सिंह के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए लोकप्रिय हुईं, जो कि भूमिहार हैं।

उसी लिस्ट को आप ध्यान से देखें तो उसकी कुछ त्रुटियां आप और मैं भी पता लगा सकते हैं। क्या कासगंज के एसपी रोहन परमोद बोतरे, गोरखपुर के एसपी विपिन टांडा, मथुरा के डीएम नवनीत सिंह चहल क्षत्रिय हैं ? क्या टांडा, बोतरे, चहल क्षत्रिय उपनाम हैं भी ? नही। यह लिस्ट खुद विवादित है, मगर फिर भी आँख बंद करके इसे फैलाया जा रहा है और इसके ज़रिये आम क्षत्रियों के विरुद्ध जातिगत हिंसा का माहौल तक बनाया जा रहा है।

चलिए कुछ तथ्यों पर बात करते हैं। उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा आयोग के नौ सदस्यों में से सात ब्राह्मण हैं जिनके नाम हैं : कृष्ण कुमार शर्मा ,श्री हरबंस दीक्षित, शशिकांत पांडे, अर्चना त्रिपाठी, रजनी त्रिपाठी, वंदना त्रिपाठी और शिवजी मालवीय। इसके अलावा यूपी उच्च शिक्षा के निदेशक डॉ अमित भारद्वाज हैं जबकि यूपी राज्य उच्च शिक्षा परिषद के अध्यक्ष गिरीश चंद्र त्रिपाठी हैं। इसके अलावा माध्यमिक शिक्षा की मुख्य सचिव आराधना शुक्ला और निदेशक विनय कुमार पांडेय भी ब्राह्मण हैं। दिनेश शर्मा राज्य के उच्च शिक्षा और माध्यमिक शिक्षा मंत्री हैं। राज्य के उच्च और माध्यमिक शिक्षा विभाग ब्राह्मण समुदाय से भरे हुए हैं। इसी तरह, यूपी लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष डॉ प्रदीप कुमार जोशी हैं। मुकुल गोयल जहां वर्तमान यूपी पुलिस प्रमुख हैं, वहीं यूपी के पूर्व पुलिस प्रमुख हितेश चंद्र अवस्थी भी ब्राह्मण थे। वह इसी जून में सेवानिवृत्त हुए थे। अभी कुछ दिनों पहले तक यूपी सरकार के मुख्य सचिव राजेंद्र कुमार तिवारी थे। उनके पूर्ववर्ती अनूप चंद्र पांडे थे, जो अब भारत के चुनाव आयुक्त हैं। ३१ दिसंबर २०२१ को श्री दुर्गा शंकर मिश्रा को रिटायरमेंट के दो दिन पहले उत्तर प्रदेश का मुख्य सचिव बनाया दिया गया है। हमें इसपर कोई आपत्ति नहीं है पर कहाँ गए वे दोगले पत्रकार जो “ठाकुरवाद” का दुष्प्रचार करते हैं? क्या इन दोगले पत्रकारों को सत्य से कोई मतलब नहीं है? क्या इनकी धूर्तता का विरोध नहीं होना चाहिए?

७ सितंबर २०२१ में द हिंदू पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, ब्राह्मण ११ मंत्रियों के साथ यूपी कैबिनेट मंत्रालय पर हावी हैं, जबकि क्षत्रियों के पास सात मंत्री थे। इसी तरह के आंकड़े रामजन्मभूमि ट्रस्ट में मौजूद हैं, जहां पंद्रह सदस्यों में से बारह ब्राह्मण हैं। ट्रस्ट में कोई क्षत्रिय नहीं हैं, हालांकि भगवान राम एक रघुवंशी क्षत्रिय थे। यही बात श्री काशी विश्वनाथ न्यास परिषद में यूपी सरकार द्वारा की गई नवीनतम नियुक्तियों पर भी लागू होती है। नियुक्त किए गए सभी चार व्यक्ति – बृजमोहन ओझा, प्रोफेसर नागेंद्र पांडे, प्रसाद जोशी, चंद्रमौली उपाध्याय ब्राह्मण हैं।
मै यह सब इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि कुछ राजनैतिक दलों से जुड़े कुछ पत्रकारों ने सामाजिक ध्रुवीकरण करते हुए यह नैरेटिव बनाया हुआ है कि यूपी में आम क्षत्रिय ब्राह्मण समाज का खुले आम शोषण कर रहा है।  

अब आप यह भी देखिये, कि ठाकुरवाद का फर्जी नेरेटिव चलाकर असल में किसको टारगेट किया जा रहा है ? गरीब क्षत्रियों को और मध्य वर्गीय क्षत्रियों को। उनको पृथक (alienate) किया जा रहा है और उनको हाशिये में धकेला जा रहा है। उनके विरुद्ध जातिगत हिंसा का माहौल बनाया जा रहा है। यह न भूलें कि यूपी और बिहार की राजनीति जुड़ी हुई है और यह भी ना भूला जाये कि जिस मीडिया और जिन पार्टियों ने ठाकुरवाद का दुष्प्रचार कर रखा है, उन्होंने मधुबनी नरसंहार का भी हफ़्तों तक मीडिया ब्लैकआउट किया था। और ये वही लोग है जिसने हाथरस में अपराधियों का नाम लेकर पुरे देश के क्षत्रियों को अपराधी घोषित किया था।

आज यही लोग और यही भाजपा के विपक्ष की पार्टियां द्वारा राजपूत राजाओं कि जातियां बदल बदलकर राजनीति का खेल खेल रही हैंI इसमें बीजेपी और आरएसएस का भी हाँथ कम नहीं है। यह अलग बात है कि वे पृष्टभूमि में रहकर चतुरता से अपना खेल खेल रहे हैं। कभी राजा सुहेलदेव बैस को राजभर तो कभी पासी घोषित करके राजनीति खेल रहे हैं और वहां के स्थानीय वैस राजपूतों से उन्हें लड़वा रहे हैं , तो कभी प्रतिहार सम्राट मिहिरभोज की जाति बदल रहे हैं जबकि उनके वंशज जो सतना काटनी और नागोद में रहते हैं उन्होंने प्रधान मंत्री को लेटर भी लिखा है, उनका आज तक , इंडिया टुडे और आउटलुक ने इंटरव्यू भी दिया है। दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रोफ शांतारानी शर्मा ने भी क्षत्रियों के प्रतिहार वंश पर विस्तार से लिखा है।

तो आप देखें एक तरफ ज़ोर जबरदस्ती से राजपूत राजाओं की जातियां बदली जा रही है, और अलग अलग राजपूत वंशों का इतिहास बंदरबांट में बांटा जा रहा है, ख़त्म किया जा रहा है तो दूसरी ओर यही लोग ठाकुरवाद के बहाने क्षत्रियों और खासकर आर्थिक रूप से गरीब क्षत्रियों के नरसंहार की साजिश रच रहे हैं । इस साजिश का प्रभाव आप ऐसे समझिये: यह क्यों कहा जा रहा है कि क्षत्रिय समाज ब्राह्मण से लेकर दलित सभी पर अत्याचार कर रहा है, और यह भी उलटा कहा जा रहा है कि क्षत्रिय समाज गूजर, जाट, अहीर और पासी समाज के महान राजाओं और उनके महान इतिहास कि चोरी कर रहा है? यह दुष्प्रचार क्यों? ताकि न केवल सभी समाजों को क्षत्रियों के विरुद्ध यह कहकर भड़काया जाए कि क्षत्रिय तो अत्याचारी हैं और ये आप पर अत्याचार कर रहे हैं । अतः क्षत्रियों पर दूसरों द्वारा की गई हिंसा उचित है।

अंत में मैं पाठकों से यही पूछूंगा कि आप योगी जी के पक्ष में वोट करें या न करें, मगर क्या आप कुछ राजनैतिक दलों से जुड़े पत्रकारों के दुष्प्रचार से प्रभावित होकर क्षत्रिय समाज को ख़त्म करना चाहते हैं, तो क्या यह गलत नहीं है? अन्याय का साथ देना क्या सनातन धर्म के साथ धोखा नहीं हैं? भारतीय इतिहास ब्राह्मणों की बुद्धि और आम क्षत्रियों के लहू से सुशोभित है, क्या आप हज़ारों सालों के भाईचारे को कुछ म्लेच्छ लोगों के झूठे नैरेटिव के चलते त्याग देना चाहते हैं? अगर ऐसा है तो क्या इससे हिन्दू समुदाय का भला होगा और क्या यह उचित है? हमारा यह मानना है कि समाज में विद्वान लोग हैं। और उनमे विद्वता है। हमारा यह भी मानना है कि विद्वान लोग गलत और अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाएंगे और हमारे साथ इस राजनैतिक अत्याचार के खिलाफ हमारा साथ देंगे। अब समय आ गया है कि हम धूर्तों के दुष्प्रचार को नकार कर उसके खिलाफ मजबूती से खड़े हो और उसका विरोध करें।


(यह एक राय है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं। FALANA DIKHANA उनके लिए न तो समर्थन करता है और न ही जिम्मेदार है।)

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