गुरु पूर्णिमा: वो पर्व जिसके वैज्ञानिक महत्व से प्रभावित NASA नें भी 2017 में दी पहचान…!
व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जानी जाती है गुरु पूर्णिमा, जीवन में गुरु-शिष्य परम्परा के महत्व को किया जाता है याद
नईदिल्ली : भारतीयों का पर्व गुरु पूर्णिमा जिसके महत्व से NASA भी आकर्षित हुआ और जुलाई 2017 में पहचान दी थी |
सावन मास के ठीक पहले आषाढ़ मास की पूर्णिमा जिसे हजारों सालों से भारतीय सनातन संस्कृति गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाती चली आ रही है | मान्यताओं के अनुसार इसी दिन महर्षि वेद व्यास का जन्म भी हुआ था अतः इसे “व्यास पूर्णिमा” के नाम से भी जाना जाता है |
यह पर्व प्रमुख रूप से हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है हालाँकि जैन-बुद्ध धर्मों में भी इसे काफ़ी उत्साह के साथ मनाया जाता है | इस दिन गुरुओं को विशेष रूप से याद किया जाता है, उनकी पूजा अर्चना की जाती है और गुरु दक्षिणा के रूप में जीवन पथ पर सतत सफलताओं के लिए आशिर्वाद लिया जाता है |
पूजा पद्धति के रूप में इस दिन गुरुओं को फूल-माला अर्पित कर गरीबों, दीन-दुखियों, पशु-पक्षियों व जीवों को अन्न आदि देकर उनका कल्याण किया जाता है |
उधर सनातन संस्कृति की जो विशेषताएं होती हैं उनके अनुसार हरेक पर्व के कुछ न कुछ वैदिक-वैज्ञानिक महत्व भी होते हैं वो इस पर्व में भी हैं |
वैज्ञानिक महत्व की ओर दृष्टि डालें तो पता चलता है कि हिंदू पंचांग के आषाढ़ मास की पाक्षिक अवधि के बाद इस दिन चंद्रमा पूरा दिखता है जिसे विज्ञान में ‘हे मून’, ‘मीड मून’, ‘थंडर मून’, ‘बक मून के साथ ही साथ “गुरु पूर्णिमा” कहा जाता है |
इसके वैज्ञानिक व वैदिक महत्व से अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA भी प्रभावित व आकर्षित हुई थी और साल 2017 के गुरु पूर्णिमा पर्व पर 6 जुलाई को अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से इसका उल्लेख किया था | कई भारतीयों नें अमरीकी NASA को पहचान देने के लिए आभार भी प्रकट किया था |
Full moon this weekend – called Guru Purnima, Hay Moon, Mead Moon, Ripe Corn Moon, Buck Moon, or our favorite, ⛈️ THUNDER MOON ⛈️ pic.twitter.com/XLufAdoDEQ
— NASA Moon (@NASAMoon) July 7, 2017
Thankyou for recognising Guru Purnima, or Teacher’s Day as per vedic practices. Wish you all a blessed Guru (Teacher) Purnima (Full moon).
— Ajit Kumar Singh??अजीत कुमार सिंह (@the_ajitsingh) July 8, 2017
वहीं हमारे संतों ऋषियों नें गुरु के महत्व को सबसे ऊपर रखा है, कबीर दास जी इसी बात को अपने एक प्रसिद्ध दोहे में इस प्रकार करते हैं –
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय |
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय ||
अर्थात –
“गुरू और गोबिंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोबिन्द को? ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है जिनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।”
वहीं संस्कृत में भी एक श्लोक है जिसमें कहा गया है –
गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः,
गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः |
अर्थात –
गुरुर ब्रह्मा : गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं.
गुरुर विष्णु : गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं.
गुरुर देवो महेश्वरा : गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं.
गुरुः साक्षात : सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष
परब्रह्म : सर्वोच्च ब्रह्म
तस्मै : उस एकमात्र को
गुरुवे नमः : उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करता हूँ.