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अन्नदाता से जान की भीख मांगते पुलिस कर्मी, दुनिया भर में हुई निंदा

पिछले वर्ष फ़रवरी माह में हुए राजधानी में हिंदू विरोधी दंगे हो या कल गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा दोनों ही दिनों भारत के गणतंत्र और विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को अपमानित होना पड़ा। जिस तरह अमेरिका में ट्रंप समर्थकों ने कैपिटल हिल में हिंसा को अंजाम दिया और संसद भवन पर रिपब्लिकन झंडा लहरा दिया ठीक उसी तरह का कुछ वाकया हुआ जब किसान ट्रैक्टर लेकर दिल्ली के अंदर घुसे और लाल किले पर धार्मिक झंडा लहरा दिया। इसी क्रम में एक वीडियो भी सामने आया है जहां एक किसान लाल किला पर तिरंगे को फेंक देता है और अपना धार्मिक झंडा लहरा देता है।

वो लाल किला जो भारत को आजादी दिलाने वाले हर स्वतंत्रता सेनानी के रक्त से लाल है, वह लाल किला जो भारत के स्वर्णिम इतिहास का साक्षी है, वह लाल किला जो उस रात का साक्षी है जब भारत आजाद हुआ, जो भारत की गरिमामयी गणतंत्र का साथी है, उस लाल किले को जब अपमानित किया गया तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, सरदार पटेल, सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद जैसे वीरों का अपमान हुआ साथ ही डॉक्टर अंबेडकर के संविधान का भी अपमान हुआ। कल तक सरकार को लोकतंत्र विरोधी और संविधान विरोधी कहने वाले लोगों ने आज इस हिंसा पर चुप्पी धारण कर ली। इन आराजक के तत्वों के सामने दिल्ली पुलिस भी आत्मसमर्पण करती नजर आई।

किसान संगठनों ने हिंसा से यह कहकर पल्ला झाड़ लिया की हिंसा के पीछे “सिख फॉर जस्टिस” और पंजाबी अभिनेता दीप सिंधु हैं और जो किसान हिंसा में शामिल थे, वह किसान संगठनों का हिस्सा नहीं है। साथ ही लाल किले पर खालिस्तानी झंडा लहराने के बाद यूथ कांग्रेस ने ट्वीट किया कि किसानों ने लाल किला फतह कर लिया।

इसी समय एक वेरिफाइड टि्वटर हैंडल पाकिस्तान फर्स्ट ने हिंसा के इस दिन को ऐतिहासिक बता डाला।

यूं हुआ पूरा वाकया
दरअसल दिल्ली पुलिस ने किसानों को गणतंत्र दिवस पर शांतिपूर्ण ट्रैक्टर मार्च की अनुमति दी थी। जिसके लिए लगभग 65 किलोमीटर का रूट तय किया गया था लेकिन किसान चाहते थे कि उन्हें वही रूट दिया जाए जिसपर भारतीय सेना परेड करती है। इसके बाद सबको अंदेशा था कि ट्रैक्टर मार्च हिंसक हो सकता है।

किसानों की परेड 12:00 बजे शुरू होनी थी लेकिन लगभग 3:30 घंटे पहले ही गणतंत्र दिवस परेड से पहले किसान जबरन बैरिकेड तोड़कर दिल्ली में दाखिल हो गए। पहले सिंधु बॉर्डर टिकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर से किसान दिल्ली में दाखिल हुए। किसान ट्रैक्टर ऐसी तेज गति से चला रहे थे की दिल्ली पुलिस भी उनको रोकने में नाकामयाब रही और खुद की जान बचा लेने को ही वीरता माना। पुलिस ने करीब 12:30 बजे की नोएडा मोड पर किसानों को रोक लिया लेकिन अन्नदाताओं ने पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया, किसानों ने पुलिस पर पत्थरबाजी की। 1 किसानों के जत्थे ने नंगी तलवार लहराई जिसके चलते पुलिस के एक जवान का हाथ काट दिया और एक निहत्थे पुलिस वाले को भी किसानों ने लाठियों से पीटा।

किसानों ने ट्रैक्टर परेड को इंडिया गेट की तरफ मोड़ने की कोशिश की। पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े। कई पुलिस वाले और आंदोलनकारी भी घायल हुए। इसी बीच एक किसान नवनीत सिंह की ट्रैक्टर पलटने से मौत हो गई जिस पर सलमान निजामी जैसे लोगों ने ट्विटर पर यह कहकर फेक न्यूज़ फैलाई की पुलिस के बल प्रयोग से इसकी मौत हुई है।

इसके बाद किसानों ने रूट बदला और लाल किले की ओर बढ़े, वहां किसानों ने तोड़फोड़ की और लाल किले पर खालसा पंथ का झंडा लहरा दिया। परेड के दौरान हुई हिंसा में 109 पुलिसकर्मी घायल हो गए जबकि दो की हालत गंभीर है। किसी पुलिसकर्मी का हाथ काट दिया, किसी पर लाठी चलाई तो किसी पर ट्रैक्टर चढ़ाने की कोशिश की लेकिन किसान नेता राकेश टिकैत को आंदोलन शांतिपूर्ण दिखा।

मामले की गंभीरता को देखते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने एक हाई लेवल मीटिंग बुलाई और दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में अर्धसैनिक बलों की तैनाती की और विभिन्न क्षेत्रों में इंटरनेट बंद कर दिया गया। साथ ही विभिन्न पक्षों द्वारा सरकार की भी निंदा हो रही है कि वे हिंसा रोकने में कामयाब नहीं हो पाए।

2 अप्रैल का दलित आंदोलन हो, दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगे हो या फिर शाहीन बाग का CAA आंदोलन केंद्र सरकार ने इन घटनाओं से आज तक कोई सबक ही नहीं लिया। जिसके चलते जनहानि हुई और करोड़ों की संपत्ति स्वाहा हो गई है।

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