ब्राह्मण परिवार की दुर्दशा: सिर ढकने को छत नहीं, पेट पालने के लिए बेटा पढ़ाई छोड़ करता है दिहाड़ी
बचपन में हमने बहुत कहानियां सुनी है, जिनकी शुरुआत इस पंक्ति के साथ होती थी कि “एक गाँव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था।” यह पँक्ति आज के समय में भी कितनी प्रासंगिक है इस बात का अनुमान आप गोंडा जिले के नंदकिशोर अवस्थी की दशा देखकर लगा सकते हैं। जिले की तहसील मनकापुर के अंतर्गत आने वाली ग्रामसभा बैरीपुर रामनाथ (शुकुल पुरवा) के रहने वाले नन्द किशोर अवस्थी पात्रता के बावजूद कॉलोनी पाने से वंचित हैं। जिस वजह से दो बच्चो समेत चार लोगों का परिवार घास फूस से बनी छप्पर के नीचे रहने के लिए मजबूर है। नंदकिशोर धार्मिक प्रयोजनों में भंडारी का काम करके किसी प्रकार अपनी जीविका चलाते है। भंडारी के तौर पर नंदकिशोर के पास कमाई का कोई स्थाई साधन नहीं है। परिवार का गुजारा सरकार द्वारा मिलने वाले राशन से हो रहा है।
आवास के लिए 15 साल से दर-दर भटक रहे है
प्रार्थी सरकार द्वारा चलाई जा रही आवास योजना के अंतर्गत दिए जाने वाले आवास के लिए 15 साल से भटक रहे है। पीड़ित ने मनकापुर तहसील में समाधान दिवस को जिलाधिकारी को प्रार्थना पत्र दिया उसके बावजूद भी कोई सुनवाई नहीं हुई यहां तक कि प्रार्थी ने मुख्यमंत्री को जनसुनवाई पोर्टल पर शिकायत भी की लेकिन आरोप है कि हर बार अधीनस्थ अधिकारी फर्जी आख्या रिपोर्ट लगा देते थे। पीड़ित ने प्रधानमंत्री पोर्टल पर ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराई जिसके बाद आयुक्त ग्राम विकास उत्तर प्रदेश ने मुख्य विकास अधिकारी को जांच का आदेश दिया लेकिन आज तक जांच का परिणाम पता नहीं चला।
बरसात में उड़ गयी थी छप्पर
गत वर्ष अगस्त माह में आए भयंकर तूफ़ान ने नंदकिशोर के छप्पर के आशियाने को उजाड़कर रख दिया था। बरसात के माह की आंधी नंदकिशोर अवस्थी के परिवार पर दुखो का पहाड़ बनकर टूटी थी। स्थिति कितनी दयनीय रही होगी इसका अंदाजा आप उस समय ली गयी इन तस्वीरों को देखकर लगा सकते है। उजड़े हुए आशियाने को सवारने में ही नंदकिशोर के परिवार की सारी जमा पूंजी नष्ट हो गयी थी।
मुख्यमंत्री के सूचना सलाहकार ने दिये थे जांच के आदेश
सामाजिक कार्यकर्त्ता एवं पत्रकार अनुपम तिवारी द्वारा मामले को ट्वीट करने के बाद मुख्यमंत्री के सूचना सलाहकार शलभमणि त्रिपाठी ने जिले के डीएम को जांच के आदेश दिए थे। जिसके बाद आगे की कार्रवाई ठन्डे बस्ते में चली गयी। परिणामतः नंदकिशोर का परिवार आज भी छप्पर के नीचे सोने को मजबूर है।
इकलौता बेटा पढाई छोड़ दुकान पर करता है नौकरी
पैसों के अभाव में नंदकिशोर का इकलौता बेटा पढाई छोड़कर, कलेक्ट्रेट में फोटोकॉपी की दुकान पर 100 रुपये दिहाड़ी में काम करता है। पढाई न कराने के सवाल पर नंदकिशोर ने कहा, पढ़ाना तो मै भी चाहता हूँ किन्तु, परिवार का पेट पालना ज्यादा जरुरी है। भूखो मरने से बेहतर है जो कुछ मिले उसी से परिवार का पेट पाला जाए। बेटा अब बड़ा हो गया है तो इसकी जिम्मेदारी है कि घर चलाने में मेरी मदद करे।
बेटी है पढाई में मेधावी
नंदकिशोर ने बताया कि उनकी बेटी पढाई में मेधावी है। जो कि स्थानीय सरकारी विद्यालय में बारहवीं कक्षा में पढ़ रही है। नंदकिशोर उसे आगे की पढ़ाई करा पायेगे या नहीं, यह उन्हें नहीं पता। नंदकिशोर को अभी से ही बेटी की शादी की फ़िक्र भी सताने लगी है। गरीबी की मार झेल रहा नंदकिशोर का परिवार मूलभूत सुभिधाओं से वंचित है।
फिरहाल नंदकिशोर के परिवार को प्रधामंत्री आवास योजना के अंतर्गत मिलने वाले आवास की दरकार है। नंदकिशोर कहते है कि, धार्मिक प्रयोजनों में भंडारी का काम करके मिलने वाले सीधा-पिसान को ही भगवान का प्रसाद समझकर परिवार का पेट तो पाल सकता हूँ किन्तु सर ढकने के लिए छत तो मिलनी ही चाहिए। चार लोगों के परिवार के लिए एक ही छप्पर के नीचे माघ की ठंडी, सावन की बारिश और जेठ की गर्मी काटने में बहुत मुश्किल होती है।