Falana Reportस्पेशल

रिपोर्ट: महार, मेहरा व चमार करते है मातंग दलितों को बहिष्कृत, इनके खाने पीने के लिए रखते है अलग बर्तन

दलितों में ही चल रहे भारी भेदभाव पर आज कोई भी दलित नेता कुछ भी बोलने को तैयार नहीं दिखता है। सवर्णो से रोटी बेटी के रिश्ते की बाते करने वाले दलित नेताओं को पहले दलितों में ही रोटी बेटी का रिश्ता कायम करना चाहिए।

उज्जैन से आने वाले दलित सुनील लोखंडे इन दिनों सोशल मीडिया पर दलितों में चल रहे भेदभावों, छुआछूत को लेकर काफी मुखर हो चले है। सुनील दलितों में ही आने वाली मातंग जाति से आते है।

उन्होंने बताया कि कैसे दलितों में कई जातियों ने उनका शोषण किया है। खुद दलितों में आने विभिन्न जातियों में रोटी बेटी का रिश्ता नहीं है। खाना खिलाने के लिए वह अलग बर्तनो का इस्तेमाल करते है लेकिन गालिया दिन भर ब्राह्मण ठाकुरो को देते आये है।

आपको बता दें मातंग समाज शुरू से ही झाड़ू बनाने व बैंड बाजे के धंधे में निपुण माना जाता आया है। वहीं जिस कारण सविधान ने इन्हे अनुसूचित जाति का दर्जा भी दिया हुआ है। लेकिन बावजूद इसके दलितों में कई संपन्न जातियां आज भी इनसे भेदभाव करती मिल जाती है।

एक्टिविस्ट सुनील ने हमें बातचीत में बताया कि गरीबी के कारण वह पढाई के दौरान अपने पिता के साथ बैंड बाजे में काम करने जाते थे। वहां दलितों में शादी में उनसे काफी भेदभाव होता था।

उन्होंने आगे बताया कि दलितो मे अपने से निचली जातियों के लिए वैमनस्यता है, असमानता का भाव है। उन्होंने सात वर्ष बैंड संचालित किया है, महार(बौद्ध) मेहरा, चमार की शादियो मे अकसर बहिष्कृत होना पड़ता था।

मातंग समाज के लोगो को कई दलितों ने बहिष्कृत किया हुआ है। जिसको आज तक कोई भी दलित नेता उठाने को तैयार नहीं है। आगे सुनील ने बताया कि ऐसी एक शादी नही थी जिसमे उन्हें अपमानित नही होना पड़ा।

साथ ही निचा दिखाने के लिए उनके साथ बैंड बजाते समय बदतमीजी भी करी जाती थी। शादी जैसे समारोह में भी खाने के लिए भी उनका अलग से बर्तन लाया जाता था।

वहीं उन्हें अन्य दलितों से अलग नीचे बैठाकर भोजन करने को विवश किया जाता था। ऐसे में दलितों में चल रहे भयंकर भेदभाव पर सबका मुँह क्यों बैंड हो जाता है।

मातंग समाज में भी आती है 12 जातियां, उनमे भी नहीं है बेटी रोटी का रिश्ता
इसके अतिरिक्त सुनील जी ने हमें बताया कि उनके मातंग समाज में भी 12 जातियां आती है जोकि आपस में भी रोटी बेटी का रिश्ता नहीं रखती है।

एक आद संपन्न परिवारों को छोड़कर आज तक किसी भी मातंग जाति ने रोटी बेटी का रिश्ता कायम नहीं किया है। वहीं संपन्न जाटव समाज भी कभी अपने समाज के बाहर अन्य दलित जातियों से रोटी बेटी का रिश्ता नहीं रखते है।

सुनील ने स्नातक की पढ़ाई के दौरान भी दलित छात्रों द्वारा किये गए भेदभावों को बुरी तरह झेला था जिसके कारण आज वह मुखरता से दलितों में चल रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने लगे है।

स्नातक की पढाई के दौरान भी छात्र गुट बनाकर अन्य दलित छात्रों को जलील किया करते थे। उनमे भी वहीं कुछ समृद्ध दलित जातियां आती थी। कई बार कॉलेज लाइफ के दौरान सुनील को उनकी जाति की वजह से अनुसूचित जाति के अन्य छात्र उनको अपने साथ उठने बैठने नहीं देते थे।

तीन चार दलित जातियों को छोड़कर सभी के साथ ऐसा बर्ताव किया जाता था। शादी समारोह से लेकर पढाई व समाज में दलितों की समृद्ध जातियों द्वारा दिए गए कष्टों से तंग आकर सुनील ने दलितों में चल रहे भेदभाव को समाज के सामने की ठानी थी।

जिसमे कई बार उन्हें दलितों की तरफ से ही जातिसूचक शब्दों व जान से मारने की धमकियां भी दी गयी है लेकिन इससे इनका भेदभाव को उठाने विश्वास और ढृंढ ही हुआ है।

सुनील ने अंत में बताया कि दलितों में जब खुद अन्य दलितों के पीने के लिए अलग गिलास व खाने को बर्तन रखे जाते है तो आप उनसे सामाजिक न्याय की क्या आस लगा सकते है।



आपको अगर हमारी रिपोर्ट पसंद आई तो आप हमें आर्थिक सहयोग दे सकते है। आपके सहयोग से ही यह पोर्टल बिना लाग लपेट के उत्तम रिपोर्ट आपके सामने लाता है।

UPI: NeoPoliticoEditor@okicici

Gpay/Paytm: 8800454121

OR Become a Patron! (Donate via Patreon)

Paypal: https://paypal.me/falanadikhana?locale.x=en_GB…

इससे सम्बंधित

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button