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राष्ट्रीय आयुर्वेदिक संस्थान सिर्फ दलितों का करेगा इलाज, लग रहे है हर गाँव में शिविर

जयपुर: पढ़ाई नौकरी व प्रमोशन में जाति पूछने के बाद अब सरकार आपसे इलाज में भी आपकी जाति पूछने जा रही है। राष्ट्रीय आयुर्वेदिक संस्थान अब इलाज करने से पहले जाति पूछेगा। जिसके लिए एक ख़ास जाति विशेष लोगो के लिए शिविर का आयोजन किया जा रहा है। इन शिविरों में सिर्फ अनुसूचित जाति व जनजाति के लोग ही अपना इलाज करा सकेंगे। इन चल चिकित्सा शिविरों के लिए सरकार ने अलग से बजट का भी आवंटन किया हुआ है।

23 से 27 मई तक शिविर का आयोजन
जयपुर स्थित संस्थान के संयुक्त निदेशक की ओर से आये आदेश के मुताबिक अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए 23 से 27 मई तक शिविर का आयोजन किया जायेगा जहां रोगी अपनी जाँच करा सकेगा। पूरे प्रदेश में गांवों में निशुल्क एससी आयुर्वेद चल चिकित्सा शिविर लगाने को कहा गया है। इनमें ग्रामीण क्षेत्राें के अनुसूचित जाति के व्यक्तियाें काे नि:शुल्क चिकित्सा सहायता दी जाएगी। इन शिविराें के लिए तीन चिकित्सकाें, एक फार्मासिस्ट व एक सुरक्षा प्रहरी भी लगाया गया है।

वेबसाइट पर दी गई है जानकारी
इन चल शिविरों के लिए राष्ट्रीय आयुर्वेदिक संस्थान के पोर्टल पर पूर्ण जानकारी दी गई है। आयुष मंत्रालय द्वारा प्रतिवर्ष राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, मानद विष्वविद्यालय, जयपुर को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति कोे निःषुल्क आयुर्वेद चिकित्सा उपलब्ध कराने के लिए बजट पास किया जाता है। तथा संस्थान द्वारा राजस्थान के जिलों की तहसीलों के अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक माह निःषुल्क आयुर्वेद चल चिकित्सा षिविर लगाया जाता है।

आयुष मंत्रालय द्वारा संस्थान को वित्तीय वर्ष 2020-21 में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए निःषुल्क चिकित्सा उपलब्ध कराने के लिए अनुसूचित जाति में 1,00,000,00/-(अक्षरे एक करोड़ रू.) एवं अनुसूचित जनजाति में 50,000,00/-(अक्षरे पचास लाख रू.) पास किया गया था। चल चिकित्सा षिविर में एक नियमित अधिकारी, एक नियमित कनिष्ठ लिपिक एवं एक एम.टी.एस तथा दो सविदा चिकित्सक, तीन संविदा फार्मासिस्ट, एक संविदा कम्प्यूटर ऑपरेटर व एक संविदा अटेण्डेन्ट कार्यरत है।

बजट सिर्फ एससी एसटी के लिए तो उन्ही का इलाज होगा
निदेशक संजीव शर्मा के अनुसार बजट ख़ास वर्ग के लिए आता है इसलिए उन्हें उन्ही वर्गो के लिए शिविर आयोजित करने पड़ते है। लेकिन अब यह सवाल उठता है कि अगर इन शिविरों में अगर अन्य जातियों के रोगी जायेंगे तो क्या उन्हें वापस लौटा दिया जायेगा?


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