भारत की 4 और आर्द्रभूमियों को रामसर स्थलों के रूप में मान्यता, कुल संख्या 46 पहुँची
नई दिल्ली: भारत की चार और आर्द्रभूमियों (वेटलैंड्स) को रामसर सचिवालय से रामसर स्थलों के रूप में मान्यता मिल गई है। ये स्थल हैं: गुजरात के थोल और वाधवाना और हरियाणा के सुल्तानपुर और भिंडावास।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने एक ट्वीट संदेश में इसकी जानकारी देते हुए प्रसन्नता व्यक्त की है और कहा कि यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पर्यावरण के लिए विशेष चिंता है कि भारत ने अपनी आर्द्रभूमियों की देखभाल कैसे करनी है, की कार्य प्रणाली में समग्र रूप से सुधार आया है।
इसके साथ ही भारत में रामसर स्थलों की संख्या 46 हो गई है और इन स्थलों से आच्छादित सतह क्षेत्र अब 1,083,322 हेक्टेयर हो गया है। जहां एक ओर हरियाणा को अपनी पहली रामसर साइट मिली है, वहीं गुजरात को उस नलसरोवर के बाद तीन और स्थल मिल गए हैं, जिसे 2012 में अंतर्राष्ट्रीय आर्द्रस्थल घोषित किया गया था।
रामसर सूची का उद्देश्य आर्द्रभूमि के एक ऐसे अंतरराष्ट्रीय तन्त्र (नेटवर्क) को विकसित करना और सुरक्षित बनाए रखना है जो वैश्विक जैविक विविधता को संरक्षित करने और सुरक्षित रखने के साथ ही मानव जीवन की अपने इको-सिस्टम केघटकों, प्रक्रियाओं और लाभों के रखरखाव के माध्यम से सहेजे रखने के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।
आर्द्रभूमियों से (वेटलैंड्स) भोजन, पानी, रेशा(फाइबर), भूजल का पुनर्भरण, जल शोधन, बाढ़ नियंत्रण, भूमि के कटाव का नियंत्रण और जलवायु विनियमन जैसे महत्वपूर्ण संसाधनों और इको-सिस्टम सेवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला प्राप्त होती हैं। वस्तुतः ये क्षेत्र पानी का एक प्रमुख स्रोत हैं और मीठे पानी की हमारी मुख्य आपूर्ति आर्द्रभूमि की ऐसी उन श्रृंखलाओं से आती है जो वर्षा को सोखने और भूजल को फिर से उसी स्तर पर लाने (रिचार्ज करने) में मदद करती है।
भिंडावास वन्यजीव अभयारण्य, हरियाणा की सबसे बड़ी ऐसी आर्द्रभूमि है जो मानव निर्मित होने के साथ ही मीठे पानी वाली आर्द्रभूमि है। 250 से अधिक पक्षी प्रजातियां पूरे वर्ष इस अभयारण्य का उपयोग अपने विश्राम एवं प्रजनन स्थल के रूप में करती हैं। यह साइट मिस्र के लुप्तप्राय गिद्ध, स्टेपी ईगल, पलास के मछली (फिश) ईगल और ब्लैक-बेलिड टर्न सहित विश्व स्तर पर दस से अधिक खतरे में आ चुकी प्रजातियों को शरण देती है।
हरियाणा का सुल्तानपुर राष्ट्रीय उद्यान मिलने वाले पक्षियों, शीतकालीन प्रवासी और स्थानीय प्रवासी जलपक्षियों की 220 से अधिक प्रजातियों की उनके अपने जीवन चक्र के महत्वपूर्ण चरणों में आश्रय देकर सम्भरण करता है। इनमें से दस से प्रजातियाँ अधिक विश्व स्तर पर खतरे में आ चुकी हैं, जिनमें अत्यधिक संकट में लुप्तप्राय होने की कगार पर आ चुके मिलनसार टिटहरी (लैपविंग) और लुप्तप्राय मिस्र के गिद्ध, सेकर फाल्कन, पलास की मछली(फिश) ईगल और ब्लैक-बेलिड टर्न शामिल हैं।
गुजरात की थोल झील वन्यजीव अभयारण्य पक्षियों के मध्य एशियाई उड़ान मार्ग (फ्लाईवे) पर स्थित है और यहां 320 से अधिक पक्षी प्रजातियां पाई जा सकती हैं। यह आर्द्रभूमि 30 से अधिक संकटग्रस्त जलपक्षी प्रजातियों की शरण स्थली भी है, जैसे कि अत्यधिक संकट में आ चुके लुप्तप्राय सफेद-पंख वाले गिद्ध और मिलनसार टिटहरी (लैपविंग) और संकटग्रस्त सारस बगुले (क्रेन), बत्तखें (कॉमन पोचार्ड) और हल्के सफ़ेद हंस (लेसर व्हाइट-फ्रंटेड गूज़)।
गुजरात में वाधवाना आर्द्रभूमि (वेटलैंड) अपने पक्षी जीवन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रवासी जलपक्षियों को सर्दियों में रहने के लिए उचित स्थान प्रदान करती है। इनमें 80 से अधिक ऐसी प्रजातियां हैं जो मध्य एशियाई उड़ान मार्ग (फ्लाईवे) में स्थान-स्थान पर प्रवास करती हैं। इनमें कुछ संकटग्रस्त या संकट के समीप आ चुकी प्रजातियां शामिल हैं जैसे लुप्तप्राय पलास की मछली-ईगल, दुर्बल संकटग्रस्त सामान्य बत्तखें (कॉमन पोचार्ड) और आसन्न संकट वाले डालमेटियन पेलिकन, भूरे सर वाली (ग्रे-हेडेड) फिश-ईगल और फेरुगिनस डक।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय इन स्थलों (साइटों) का बुद्धिमत्ता से उपयोग सुनिश्चित किए जाने के लिए राज्यों के आर्द्रभूमि प्राधिकरणों के साथ मिलकर काम करेगा।