Falana Report

‘450 महीने में मिलता है उससे ज्यादा बच्चों की फीस है’: बनारस घाट के पंडित घर चलाने के लिए रखते हैं गउएं

बनारस: आम जन मानस में मंदिर, मठ व घाटों पर कई सवाल होते हैं उत्सुकता भी होती है कैसे रहते हैं क्या करते हैं घर वार से दूर भगवान की निस्वार्थ सेवा में। 

हमारी ग्राउंड रिपोर्टिंग टीम पहुंचती है बनारस के घाटों पर। बनारस के बारे में वैसे भी कहते हैं 

बनारस से आस्था है

बनारस से दिल का लगाव है,

हम बनारसी है गुरु 

हमपर बाबा का आशीर्वाद है।

हाल ही में किसान आन्दोलन की आड़ में भारतीय किसान यूनियन के कर्णधार राकेश टिकैत द्वारा सनातन धर्म के मूल्यों यानी मन्दिर मठ व उनसे जुड़े पण्डित पुरोहितों की आमदनी पर टिप्पणी की गई।

इसी क्रम में हमनें जमीन पर जाकर जानना चाहा कि आखिर बाबा विश्वनाथ की नगरी में पुरोहितों का जीवन कैसे चलता है। हमनें बात की बल्लभाचार्य मन्दिर के पुजारी ब्रम्हानन्द मिश्रा से। ब्रह्मानन्द ने कहा कि किसी तरह उन्हें उनके संस्थान से केवल 450 रुपया महीना मिलता है जबकि उनके बच्चों की फीस भी इससे ज्यादा है।

बताते हैं कि यदि हम पण्डिताई के अलावा हमारे घर न हो तो हम लोगों कम से कम 2 हजार 2500 कमरा का किराया देना पड़े। इसके अलावा हम लोग घरों में गाय रखते हैं वो भी सहारा देती हैं। हमें बिजली बिल देना है, टैक्स देना है, फूल माला भगवान की साज सज्जा में हर दिन सैकड़ों लग जाते हैं। कोई कभी आया तो 100, 50 दे दिया। बस यही हमारी रोजमर्रा की जिंदगी है।

मन्दिर के चढ़ावे के क्रम में पुजारी ब्रम्हानन्द बताते हैं कि बल्लभाचार्य मन्दिर का चढा़वा एक रूपया भी कोई नही लेता है कुल चढा़वा नागद्वारा मन्दिर बोर्ड के कार्यालय राजस्थान को जाता है वहाँ से चार सौ पचास रुपया महीना मुझे मिलता है। 

वहीं बनारस में घाटों पर कर्मकांड कराने वाले पुरोहित मुकेश दूबे से वार्ता हुई जो संकट मोचन मन्दिर से जुडे़ है उनसे राकेश टिकैत जी के बयान पर चर्चा की तो बताया भईया सबकी नजर में हम ही गुनाहगार हैं दूबे जी के तीन बच्चे जो की बेसिक व पूर्व माध्यमिक के स्तर के हैं उनकी फीस परिवार अब भी अप्रैल 2020 से नही भर पाया है। 

Mukesh Dubey
Purohits Chandrashekhar Dravid (Middle)

उनकी की दो बेटियां जो की मन्दिर ट्रस्ट के विद्यालय में पढ़ती हैं। व बच्चा बीएचयू की ब्राच सीएचयस में पढ़ता है जिनकी फीस परिवार नही भर पा रहा है परिवार के पास सफेद राशन कार्ड है लेकिन शिक्षा माफियाओं की सक्रियता व व्यवस्था की मिली भगत से निःशुल्क अनिवार्य गुणवत्तापूर्ण बाल शिक्षा अधिकार में वर्णित प्राइवेट शिक्षा संस्थानों में 25% सीटों का गरीब बच्चों के लिये निर्धारित होना मजाक ही दिखता है। 

View of Benaras

फिर उमाशंकर जी से वार्ता हुई जो बनारस के ही एक गरीब परिवार से आते हैं। परिवार के बारे में दयनीय स्थिति है दुर्भाग्य से उमाशंकर जी व इनका परिवार इतना गरीब है कि शाम की रोटी की गारण्टी नही है।

जब हमनें प्रधानमंत्री जी से व्यथा सुनानें के बारे में पूछा तो स्थानीय मनोज मिश्रा जी नें बताया भईया हम लोग वहाँ दूर दूर तक दिखाई नही पड़तें हैं कोई हमारी नही सुननें वाला है।

इसी क्रम में हमारी चर्चा चन्द्रशेखर द्रविण जी से हुई जिसमें उन्होनें बताया कि भाई हम तो दक्षिण भारत के रहने वाले हैं ज्यादातर पूजा कराने वाले दक्षिण भारतीय ही होते हैं, जो महीनें में दो य चार ही आतें हैं जिससे परिवारिक दायित्वों का निर्वाहन भी मुश्किल से ही होता है, उसमें भी लॉक डाउन के दौरान घर की स्थिति काफी दयनीय हो गयी थी।

इससे सम्बंधित

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button