क्या सच में भगवान श्रीकृष्ण की 16108 पत्नियाँ थी ? जानिए इस भ्रान्ति के पीछे का सच
अगर आपके मन में भी भगवान श्रीकृष्ण की 16108 पत्नियों के रहस्य के विषय मे जानने की जिज्ञासा है तो यह लेख आपके लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, यह लेख समाज में फैली उन भ्रान्तियों के निराकरण में मदद करेगी जो कि समाज द्वारा बाल्यकाल से ही आपके मन में बैठाई गयी, दरअसल तमाम ग्रंथो व लेखो में कृष्ण जी अनेक लीलाओं का वर्णन है। उन्हीं के अध्यन से कृष्ण जी की कुल 8 पत्नियों का वर्णन हमें मिलता है। तो आइए जानते हैं भगवान के विवाहों के विषय में।
भगवान कृष्ण की प्रमुख आठ पत्नियां :
इस अनुक्रम में आइये सर्वप्रथम हम भगवान की प्रमुख आठ पत्नियों के विषय में जानते हैं –
1.श्रीकृष्ण रुक्मणी विवाह
~महाभारत के अनुसार विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी के 5 भाई थे- रुक्म, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेस तथा रुक्ममाली। रुक्मिणी सर्वगुण संपन्न तथा अति सुन्दरी थी। उसके शरीर में लक्ष्मी के शरीर के समान ही लक्षण थे अतः लोग उसे लक्ष्मीस्वरूपा कहा करते थे।
भीष्मक और रुक्मिणी के पास जो भी लोग आते-जाते थे, वे सभी श्रीकृष्ण की प्रशंसा किया करते थे। श्रीकृष्ण के गुणों और उनकी सुंदरता पर मुग्ध होकर रुक्मिणी ने मन ही मन तय कर लिया था कि वह श्रीकृष्ण को छोड़कर अन्य किसी को भी पति रूप में स्वीकार नहीं करेगी। उधर, श्रीकृष्ण को भी इस बात का पता हो चुका था कि रुक्मिणी परम रूपवती होने के साथ-साथ सुलक्षणा भी है। किंतु रुक्म चाहता था कि उसकी बहन का विवाह चेदिराज शिशुपाल के साथ हो।
शिशुपाल रुक्मिणी से विवाह करना चाहता था। रुक्मणि के भाई रुक्म का वह परम मित्र था। रुक्म अपनी बहन का विवाह शिशुपाल से करना चाहता था। रुक्म ने माता-पिता के विरोध के बावजूद अपनी बहन का शिशुपाल के साथ रिश्ता तय कर विवाह की तैयारियां शुरू कर दी थीं। रुक्मिणी को जब इस बात का पता लगा, तो वह बड़ी दुखी हुई। उसने अपना निश्चय प्रकट करने के लिए एक ब्राह्मण को द्वारिका श्रीकृष्ण के पास भेजा। अंतत: रुक्म और शिशुपाल के विरोध के कारण ही श्रीकृष्ण को रुक्मिणी का हरण कर उनसे विवाह करना पड़ा।
2.श्रीकृष्ण जाम्बवंती विवाह
~स्यमंतक मणि को इंद्रदेव धारण करते हैं। कहते हैं कि प्राचीनकाल में कोहिनूर को ही स्यमंतक मणि कहा जाता था। कई स्रोतों के अनुसार कोहिनूर हीरा लगभग 5,000 वर्ष पहले मिला था और यह प्राचीन संस्कृत इतिहास में लिखे अनुसार स्यमंतक मणि नाम से प्रसिद्ध रहा था। दुनिया के सभी हीरों का राजा है कोहिनूर हीरा। यह बहुत काल तक भारत के क्षत्रिय शासकों के पास रहा फिर यह मुगलों के हाथ लगा। इसके बाद अंग्रेजों ने इसे हासिल किया और अब यह हीरा ब्रिटेन के म्यूजियम में रखा है। हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है कि कोहिनूर हीरा ही स्यमंतक मणि है? यह शोध का विषय हो सकता है। यह एक चमत्कारिक मणि है।
भगवान श्रीकृष्ण को इस मणि के लिए युद्ध करना पड़ा था। उन्हें मणि के लिए नहीं, बल्कि खुद पर लगे मणि चोरी के आरोप को असिद्ध करने के लिए जाम्बवंत से युद्ध करना पड़ा था। दरअसल, यह मणि भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा के पिता सत्राजित के पास थी और उन्हें यह मणि भगवान सूर्य ने दी थी। एक दिन किसी समारोह में श्रीकृष्ण ने सत्राजित से यूं ही कह दिया था कि इसे अक्रूरजी को प्रदान कर दें, लेकिन सत्राजित ने इससे इंकार किया था। बस इसी कारण से कृष्ण पर चोरी का इल्जाम लग गया।
सत्राजित ने यह मणि अपने देवघर में रखी थी। वहां से वह मणि पहनकर उनका भाई प्रसेनजित आखेट के लिए चला गया। जंगल में उसे और उसके घोड़े को एक सिंह ने मार दिया और मणि अपने पास रख ली। सिंह के पास मणि देखकर जाम्बवंतजी ने सिंह को मारकर मणि उससे ले ली और उस मणि को लेकर वे अपनी गुफा में चले गए, जहां उन्होंने इसको खिलौने के रूप में अपने पुत्री को दे दी। इधर, दीर्घकाल तक उसके वापस न आने पर सत्राजित को लगा कि कृष्ण ने उसे मारकर मणि हस्तगत कर ली होगी। सत्राजित ने श्रीकृष्ण पर अप्रत्यक्ष रूप से आरोप लगा दिया कि यह मणि उन्होंने चुराई है। इससे राज्यभर में कृष्ण की बदनामी होने लगी।
तब श्रीकृष्ण को यह मणि हासिल करने के लिए जाम्बवंतजी से युद्ध करना पड़ा। बाद में जाम्बवंत जब युद्ध में हारने लगे तब उन्होंने अपने प्रभु श्रीराम को पुकारा और उनकी पुकार सुनकर श्रीकृष्ण को अपने रामस्वरूप में आना पड़ा। तब जाम्बवंत ने समर्पण कर अपनी भूल स्वीकारी और उन्होंने मणि भी दी और श्रीकृष्ण से निवेदन किया कि आप मेरी पुत्री जाम्बवती से विवाह करें।
3.श्रीकृष्ण सत्यभामा विवाह
~भगवान उस मणि को लेकर वापस आते हैं और जब वो मणि सत्राजित को दी गई तो सत्राजित को बड़ा दुख हुआ, ग्लानि भी हुई, लज्जा भी आई कि मैंने श्रीकृष्णजी पर नाहक ही हत्या और चोरी का आरोप लगाया। उसने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी और कहा कि मैं अपनी ग्लानि को मिटाना चाहता हूं। इसके लिए मेरी पुत्री सत्यभामा को मैं आपको सौंपता हूं। आप उसे स्वीकार करिए और उसने कहा यह मणि भी आप रखिए दहेज में। कृष्ण ने कहा- यह मणि तो आफत का काम है और 2-2 मणियां मिल गईं एक मणि के चक्कर में। यह मैं नहीं रख सकता यह आप ही रखिए। ये आफत की मणि है।
मणि के कारण राजा सत्राजित की पुत्री श्रीकृष्ण की 3 महारानियों में से 1 बनीं। सत्यभामा के पुत्र का नाम भानु था।
4.श्रीकृष्ण कालिन्दी विवाह
~पांडवों के लाक्षागृह से कुशलतापूर्वक बच निकलने पर सात्यिकी आदि यदुवंशियों को साथ लेकर श्रीकृष्ण पांडवों से मिलने के लिए इंद्रप्रस्थ गए। युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, द्रौपदी और कुंती ने उनका आतिथ्य-पूजन किया।
इस प्रवास के दौरान एक दिन अर्जुन को साथ लेकर भगवान कृष्ण वन विहार के लिए निकले। जिस वन में वे विहार कर रहे थे वहां पर सूर्य पुत्री कालिन्दी, श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने की कामना से तप कर रही थी। कालिन्दी की मनोकामना पूर्ण करने के लिए श्रीकृष्ण ने उसके साथ विवाह कर लिया। कालिन्दी खांडव वन में रहती थी। यहीं पर पांडवों का इंद्रप्रस्थ बना था।
- श्रीकृष्ण मित्रविन्दा विवाह
~एक दिन कृष्ण वन विहार के दौरान अर्जुन के साथ उज्जयिनी गए और वहां की राजकुमारी मित्रविन्दा को स्वयंवर से वर लाए। मित्रविन्दा के पुत्र का नाम वृक था।
6.श्रीकृष्ण सत्या विवाह
~एक दिन भगवान श्रीकृष्ण ने कौशल के राजा नग्नजित के 7 बैलों को एकसाथ नाथ कर उनकी कन्या सत्या से पाणिग्रहण किया। सत्या के पुत्र का नाम वीर था।
7. श्रीकृष्ण भद्रा विवाह
~सत्या के बाद उनका विवाह कैकेय की राजकुमारी भद्रा के साथ हुआ। भद्रा के पुत्र का नाम संग्रामजित था।
8.श्रीकृष्ण लक्ष्मणा विवाह
~ भद्र देश की राजकुमारी लक्ष्मणा भी कृष्ण को चाहती थी, लेकिन परिवार कृष्ण से विवाह के लिए राजी नहीं था तब लक्ष्मणा को श्रीकृष्ण अकेले ही हरकर ले आए। लक्ष्मणा के पिता का नाम वृहत्सेना था। लक्ष्मणा के पुत्र का नाम प्रघोष था।
उपर्युक्त आठ पत्नियां ही भगवान श्रीकृष्ण की पत्नियां हैं। पाश्चात्य विद्वान डेनिस हडसन के अनुसार, यह एक रूपक है, आठों पत्नियां उनके अलग-अलग पहलू को दर्शाती हैं। यह उनके आठ के सिद्धान्तों के अनुरूप हैं, पुराणों के अनुसार "8वें" अवतार के रूप में विष्णु ने यह अवतार "8वें" मनु वैवस्वत के मन्वंतर में, देवकी के गर्भ से "8वें" पुत्र के रूप में मथुरा के कारागार में श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया था। उनका जन्म भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि के "8वें" मुहूर्त में हुआ। तब रोहिणी नक्षत्र तथा "अष्टमी" तिथि थी ।
श्रीकृष्ण की 16108 पत्नियों से संबंधित भ्रांति एवं वास्तविकता :
तमाम शोध एवं पुराणों एवं अन्य धर्मग्रंथों में वर्णित मान्यताओं को देखा जाये तो यह बात सर्वथा असत्य सिद्ध होती है कि भगवान कृष्ण की सोलह हज़ार पत्नियां थीं।
ऐसी है 16,100 पत्नियों की कहानी :
इस संबंध में भागवत महापुराण के दशम स्कन्ध के 59वें अध्याय में एक कथा का वर्णन है_ कृष्ण अपनी आठों पत्नियों के साथ सुखपूर्वक द्वारिका में रह रहे थे। एक दिन स्वर्गलोक के राजा देवराज इंद्र ने आकर उनसे प्रार्थना की हे कृष्ण प्राग्ज्योतिषपुर के दैत्यराज भौमासुर के अत्याचार से देवतागण त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। क्रूर भौमासुर ने वरुण का छत्र, माता अदिति के कुंडल और देवताओं के निवासस्थान मणिपर्वत को उनसे छीन लिया है। इंद्र ने कहा भौमासुर ने पृथ्वी के कई राजाओं और आमजनों की अति सुंदर कन्याओं का हरण कर उन्हें अपने यहां बंदीगृह में डाल रखा है। कृपया आप हमें बचाइए प्रभु।
इन्द्रेण हृतक्षत्रेण हृतकुण्डलबन्धुना |
हृतामराद्रिस्थानेन ज्ञापितो भौमचेष्टितम् ।।
सभार्यो गरुड़ारूढः प्राग्ज्योतिषपुरं ययौ ।।
~( भागवतमहापुरण.10.59.2 )
इंद्र की प्रार्थना सुन कर श्रीकृष्ण अपनी प्रिय पत्नी सत्यभामा को साथ लेकर गरुड़ पर सवार हो प्राग्ज्योतिषपुर पहुंचे।वहां पहुंचकर भगवान् कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की सहायता से सबसे पहले मुर दैत्य सहित मुर के छः पुत्र-ताम्र, अंतरिक्ष, श्रवण, विभावसु, नभश्वान और अरुण का संहार किया, नभश्वान मुर दैत्य के वध हो जाने का समाचार सुन भौमासुर अपने अनेक सेनापतियों और दैत्यों की सेना को साथ लेकर युद्ध के लिए निकल पड़े। भौमासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था इसलिए भगवान् श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और घोर युद्ध के बाद अंत में कृष्ण ने सत्यभामा की सहायता से उसका वध कर डाला। इस प्रकार भौमासुर को मारकर श्रीकृष्ण ने उसके पुत्र भगदत्त को अभयदान देकर उसे प्राग्ज्योतिष का राजा बनाया।
भौमासुर के द्वारा हरण करके लाई गईं 16,100 कन्याओं को श्रीकृष्ण ने मुक्त कर दिया। ये सभी अपहरण की हुई नारियां थीं जो भौमासुर के द्वारा पीड़ित थीं। उन पर तरह तरह के लांछन लगे।
आज की वर्तमान परिस्थिति एवं तत्कालीन परिस्थिति में बहुत अंतर था, पहले के समय में जब किसी कन्या का हरण हो जाता था तो न तो पिता उनका ग्रहण करता था और न ही कोई श्रेष्ठ व्यक्ति उनका वरण करता था, अब समस्या यह खड़ी हुई कि उन राजकुमारियों ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि अब हमारे पास केवल दो ही रास्ते हैं, पहला यह की या तो हम अपने जीवन यापन के लिए वेश्यावृत्ति को अपना लें अथवा दूसरा या तो हम आत्महत्या कर लें
अब भगवान ने यह सोचा की यह दोनों ही उपाय अधर्म है और मेरा अवतरण धर्मसंस्थापनार्थ हुआ है अगर ऐसा होता है तो मेरा अवतरण ही व्यर्थ है, अतः भगवान ने उन राजकुमारियों को अपनाकर उन्हें अपने अन्य पटरानियों के समान व्यवस्था दी एवं उन्हें अपना नाम दिया किन्तु कभी उनसे वैवाहिक संबंध नहीं बनाया, इसे एक प्रकार से उस समय का एक निर्लाभ संगठन (non-profit organization (NPO) ) भी कहा जा सकता है ।
अतः ये भ्रांति जो समाज के चहुंओर व्याप्त है कि भगवान ने उन 16100 राजकुमारियों के साथ वैवाहिक संबंध बनाया वह सर्वथा असिद्ध है, उन्होंने यह केवल और केवल धर्मरक्षणार्थ किया।