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’10 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक पर अल्पसंख्यक घोषित नहीं’- याचिका पर सुप्रीमकोर्ट नें जारी किया नोटिस

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में अब अल्पसंख्यक के पैमाने को बदलने के लिए याचिका दायर हुई है।

उच्चतम न्यायालय ने राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान करने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने के केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका पर केंद्र सरकार से शुक्रवार को जवाब मांगा। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में नोटिस जारी कर 6 हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है। न्यायमूर्ति एस के पॉल की अध्यक्षता वाली पीठ ने गृह मंत्रालय, न्याय एवं विधि मंत्रालय और अल्पसंख्यक मामला मंत्रालय को नोटिस जारी किया।

सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने “राज्य स्तर पर” अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशा-निर्देश देने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।

गौरतलब है कि टीएमए पाई नामक मामले में, शीर्ष अदालत ने माना था कि “भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति का निर्धारण करने वाली इकाई राज्य होगी। चूंकि राज्यों का पुनर्गठन भाषाई आधार पर हुआ है, इसलिए, अल्पसंख्यक का निर्धारण करने के उद्देश्य से, इकाई राज्य होगी और संपूर्ण भारत नहीं होगी। इस प्रकार, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक, जिन्हें अनुच्छेद 30 में बराबर पर रखा गया है। राज्यवार माना जाना चाहिए।”

याचिकाकर्ता ने, एडवोकेट अश्वनी कुमार उपाध्याय के माध्यम से कहा कि “केंद्र ने मुसलमानों को अल्पसंख्यक घोषित किया है, जो लक्षद्वीप में 96.58%, कश्मीर में 95%, लद्दाख में 46% हैं। इसी तरह, केंद्र ने ईसाइयों को अल्पसंख्यक घोषित किया है, जो नागालैंड में 88.10%, मिजोरम में 87.16% और 74.59% मेघालय में।

इसलिए, वे अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान की स्थापना और प्रशासन कर सकते हैं। इसी तरह, पंजाब में सिखों की संख्या 57.69% है और लद्दाख में बौद्ध 50% हैं और वे अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान की स्थापना और प्रशासन कर सकते हैं।

उन्होंने मांग की है कि केंद्र सरकार अपने मंत्रालय, कानून और न्याय और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालयों के माध्यम से यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया जाए कि केवल वे धार्मिक और भाषाई समूह, जो सामाजिक या आर्थिक रूप से या राजनीतिक रूप से राज्य स्तर पर कम हैं, वो अपनी पसंद के शैक्षिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन कर सकें। याचिका में ये भी कहा गया है कि हिंदू 10 राज्यों में अल्पसंख्यक हैं लेकिन उन्हें अब तक अल्पसंख्यक घोषित नहीं किया गया है।

2019 में सुप्रीम कोर्ट ने की थी मामले में ये पहल:

उच्चतम न्यायालय ने फरवरी 2019 को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को निर्देश दिया कि राज्य की आबादी के आधार पर किसी समुदाय को ‘अल्पसंख्यक’ परिभाषित करने के लिये दिशा-निर्देश बनाने संबंधी प्रतिवेदन पर तीन महीने के भीतर निर्णय ले।

तब के सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय से कहा कि वह अल्पसंख्यक आयोग में फिर से अपना प्रतिवेदन दाखिल करें और आयोग सोमवार से तीन महीने के भीतर इस पर निर्णय लेगा।

अल्पसंख्यक शब्द नए सिरे से परिभाषित: याचिका

अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा था कि ‘अल्पसंख्यक’ शब्द को नये सिरे से परिभाषित करने और देश में समुदाय की आबादी के आंकड़े की जगह राज्य में एक समुदाय की आबादी के संदर्भ में इस पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है। याचिका के अनुसार राष्ट्रीय आंकड़ों के अनुसार हिन्दु बहुमत में हैं परंतु पूर्वोत्तर राज्यों के साथ ही जम्मू कश्मीर जैसे राज्य में अल्पसंख्यक हैं। इसके बावजूद इन राज्यों में हिन्दु समुदाय के सदस्यों को अल्पसंख्यक श्रेणी के लाभों से वंचित रखा जा रहा है।

शीर्ष अदालत ने 10 नवंबर, 2017 को सात राज्यों और एक केन्द्र शासित प्रदेश में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के लिये दायर याचिका पर विचार से इंकार कर दिया था। न्यायालय ने याचिकाकर्ता से कहा था कि उसे इस बारे में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग से संपर्क करना चाहिए।

याचिका में कहा गया था कि 2011 की जनगणना के अनुसार लक्षद्वीप, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, जम्मू कश्मीर, अरूणाचल प्रदेश,मणिपुर और पंजाब में हिन्दू समुदाय अल्पसंख्यक है।


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