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सिनेमा नें अभिव्यक्ति की आज़ादी के नामपर युवा पीढ़ी को अश्लीलता परोसा: सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता, अश्विनी उपाध्याय

नईदिल्ली : देश में हैदराबाद व उन्नाव जैसे जघन्य रेपकांड के बाद फ़िल्म व TV सीरियलों के अश्लीलता फैलाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता द्वारा गम्भीर सवाल खड़ा किया है।

हैदराबाद में डॉक्टर से हुई हैवानियत नें पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। विपक्षी दलों समेत आम लोग समाज की अमानवीय मानसिकता, शासन प्रशासन, कानून व्यवस्था पर जैसे विषयों पर सवाल खड़े कर रहे हैं। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सोनिया गांधी नें अपना जन्मदिन तक मनाने से इंकार कर दिया है।

इसी बीच सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता व BJP प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय नें देश में घट रही लगातार बलात्कार की घटनाओं पर सिनेमा के अश्लीलता का मुद्दा उठाया है। उन्होंने इन दुष्कर्म की घटनाओं के पीछे सिनेमा को एक बड़ा कारण कहा है।

Supreme Court Lawyer, Ashvini Upadhyay
अश्विनी उपाध्याय नें अपने बयान में कहा कि “वेद पुराण गीता रामायण के अनुसार व्यक्ति का व्यवहार इस बात पर निर्भर करता है कि वह क्या खाता है क्या पीता है क्या सुनता है क्या देखता है क्या सूँघता है और क्या स्पर्श करता है।”
आगे उन्होंने अंग्रेजी की एक कहावत गार्बेज इन गार्बेज आउट से तुलना करते हुए युवा पीढ़ी पर पड़ते फ़िल्म सीरियलों के प्रभाव को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने पूछा सच-सच बताइये फिल्म-सीरियल से युवा पीढ़ी ने क्या-क्या सीखा !”

इसके बाद उन्होंने कहा कि “सड़क से संसद तक जैसा गुस्सा आज दिख रहा है, निर्भया के बाद भी दिखा था जो बहस न्यूज चैनल्स पर आज हो रही है, निर्भया के बाद भी हुई थी। ”

“आधुनिकता और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर जैसी अश्लीलता पहले परोसी जा रही थी, वह आज भी जारी है। इसलिए हमें संशय है कि भविष्य में हैवानियत नहीं होगी।”

आगे अधिवक्ता अश्विनी नें कहा यदि बलात्कार मुक्त भारत चाहते हैं तो अश्लील गीत, अश्लील नृत्य, अश्लील फिल्म, अश्लील चुटकुले, अश्लील साहित्य, अश्लील सीरियल आदि से दूर रहें क्योंकि यदि अश्लीलता अंदर जाएगी तो अश्लीलता ही बाहर आएगी।”

 

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