कुछ नया आया क्या

जानिए क्या है तिब्बत का विवाद ?

भारतीय और चीन के रिश्ते में तिब्बत अभी भी एक कांटा बना हुआ है, जोकि ना तो भारत सरकार से सुलझना चाहता है और ना ही चीन अपना कोई हस्तक्षेप इसमें देना चाहता है।

नई दिल्ली :- वर्ष 1949 चीन के इतिहास में एक निर्णायक वर्ष था, क्योकि इसी वर्ष चीन में कम्युनिस्ट क्रांति हुई थी और क्रांति के बाद ही पीपल रिपब्लिक ऑफ़ चीन की स्थापना हुई। स्थापना के बाद चीन में कम्युनिस्ट सरकार सत्ता में आई। तिब्बत 1228 kmsq का क्षेत्र है और वर्त्तमान समय में यह चीन का दूसरा सबसे बड़ा स्वायत प्रोविएन्स है और यहाँ पर बौद्ध धर्म के लोग रहते हैं।

7 अक्टूबर 1950 को चीन ने तिब्बत के क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया और उस समय तिब्बत सैन्य रूप से सशक्त न होने कारण युद्ध में बुरी तरह हार गया, जिसके बाद से चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया ।तिब्बत ने उस समय भारत से मदद मांगी थी लेकिन उस समय भारत नया-नया आज़ाद हुआ था, इसलिए वह असमंजस में था। जवाहर लाल नेहरू जोकि उस समय तत्कालीन प्रधान मंत्री थे उन्होंने इस मुद्दे को चीन का आंतरिक मुद्दा बता कर टाल दिया,परन्तु भारत के तत्कालीन विदेश सचिव गिरजा प्रसाद बाजपाई ने सरदार पटेल को पत्र लिख कर तिब्बत की मदद करने की बात कही थी ।

इस बीच तिब्बत के लोग भी अपनी आज़ादी को लेकर आंदोलन कर रहे थे और उस समय वर्तमान दलाई लामा तेंजुंग ग्यात्सु उस आंदोलन के नेता थे । जिसके बाद वर्ष 1963 में बीजिंग समझौते के लिए दलाई लामा को बुलाया गया लेकिन इस बात पर सहमति नहीं बनी और चीन की सरकार और तिब्बत के राष्ट्रीय अध्यक्ष दलाई लामा तेंजुंग ग्यात्सु के बीच में तनाव उत्पन्न हो गया। उसके बाद के वर्षों में तिब्बत में आजादी के लिए आंदोलन तेज हो गए और चीनी सेना उसे दबाती रही।

वर्ष 1959 में एक बहुत बड़ा आंदोलन शुरू हो गया जिसके बाद 10 मार्च 1959 को तिब्बत में एक बड़ा आंदोलन हुआ, जिसके कारण चीनी सरकार को यह खतरे की घंटी लगने लगी। तिब्बत ने भारत सहित कई देशों से मदद की अपील की , लेकिन उस समय भारत उसको मदद से बच रहा था। स्थिति तनावपूर्ण होने के बाद चीन सरकार ने वहां अपने सैनिक भेज दिए और उसके बाद दलाई लामा को
बीजिंग में समझौते के लिए बुलाया गया, लेकिन दलाई लामा को उनके कुछ साथियों ने बताया कि यह उसकी हत्या करने की साजिश है जिसके बाद दलाई लामा ने 17 मार्च 1959 को अपने परिवार के साथ तिब्बत छोड़ दिया और अरुणाचल के रास्ते भारत में दाखिल हो गए और भारत में शरण ले ली। भारत सरकार द्वारा शरण देने की वजह से चीन और भारत के रिश्ते में खटास उत्पन्न हो गई जिसके परिणाम स्वरूप 1962 में भारतीय युद्ध भारत चीन युद्ध सामने आया।

दलाई लामा के साथ उनके 80000 तिब्बती लोग भी साथ आए थे , भारत सरकार के लिए उन्हें जगह देना भी एक मुश्किल बन गई उसके बाद हिमाचल की धर्मशाला सहित देश के अन्य हिस्सों में बसाया गया। वर्तमान समय मे भी तिब्बत की निर्वाचित सरकार का मुख्यालय धर्मशाला में स्थापित है और 29 मई 2011 तक दलाई लामा उस सरकार के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं।

दलाई लामा ने शांतिपूर्ण तरीके से दुनिया भर में तिब्बत की आजादी का मुद्दा उठाया है। 1987 में उन्होंने 5 सूत्री योजना पेश की, जिसके अंतर्गत तिब्बत के लोगों की स्वायत्तता आजादी की मांग की गई। इसके लिए वर्ष 1979 में उन्हें नोबेल पुरस्कार भी दिया गया था।

वर्तमान समय में भी दलाई लामा के शरण दिए जाने के कारण भारत और चीन के रिश्ते में खटास उत्पन्न होती रहती है,यहाँ तक कि कई बार उनके समारोह कॉन्फ्रेंस इत्यादि को रोक दिया जाता है और चीन अपना कड़ा विरोध जताता है। चीन मानता है कि तिब्बत उसका अभिन्न हिस्सा है जबकि वहां के मूल निवासी चीन से आजादी की मांग करते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि वह चीन से अलग है और उनके लिए उनकी स्थिति और पहचान अलग मायने रखती है। वर्तमान समय में तिब्बत चीन का दूसरा सबसे बड़ा स्वायत्त प्रांत है यह एक स्वायत्त प्रांत है जिसे स्वायत्तता मिली हुई है लेकिन सैन्य एवं अन्य मामले अभी भी चीन के हाथों में ही है। भारतीय और चीन के रिश्ते में तिब्बत अभी भी एक कांटा बना हुआ है, जोकि ना तो भारत सरकार से सुलझना चाहता है और ना ही चीन अपना कोई हस्तक्षेप इसमें देना चाहता है।

 

Inputs of Neeraj jha 

इससे सम्बंधित

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button