UP बोर्ड: जो छात्र पास होने के सपने मातृभाषा हिंदी में देखते हों, 10 लाख उसी में फेल
UP बोर्ड रिजल्ट 2019 : हिंदी पट्टी के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश में यहाँ की मातृभाषा हिंदी में 10वीं में सबसे ज्यादा 5,74,409 और 12 वीं में 4,23,841 फेल हुए |
लखनऊ (यूपी) : हाल ही में आए UP बोर्ड के 10वीं-12वीं के नतीजों में 10 लाख बच्चे मातृभाषा हिंदी में ही फेल हो गए |
पिछले दिनों उत्तरप्रदेश बोर्ड के 10वीं और 12वीं कक्षा के रिजल्ट जारी कर दिए गए हैं जिसमें 10वीं के 80.07% और 12वीं के 70.02% पास हुए हैं |
10वीं में कानपुर की रहने वाली गौतम रघुवंशी नें 97.17% अंकों के साथ टॉप किया है वहीं 97.80% अंकों के साथ 12वीं की टॉपर रहीं किसान की बेटी तनु तोमर |
हालांकि रिजल्ट घोषित होने के बाद कई अच्छे तो कई बुरे आंकड़े भी सामने आ रहे हैं | जैसे कि अच्छे में बात करें तो लड़कों से ज्यादा लड़कियों नें सफलता पाई है | इधर दोनों कक्षाओं में मातृभाषा हिंदी के लिए बहुत बुरी खबर है, निराशाजनक है और अत्यन्त सोचनीय भी है | जैसा कि हिंदी में पास होने वालों का आंकड़ा आया है उसके अनुसार दोनों को मिलाकर 9,98,250 बच्चे हिंदी में फेल हो गए, 10वीं में सबसे ज्यादा 5,74,409 और 12 वीं में 4,23,841 फेल हुए |
इतनी संख्या में फेल होने का कारण रहा कि इस बार पास होने का प्रतिशत घट गया | लेकिन बात इतने से बनने वाली नहीं है क्योंकि इस पर सवाल भी खड़े किए जाने चाहिए क्योंकि हिंदी उत्तरप्रदेश की मातृभाषा है, ये कोई फ्रेंच स्पैनिश की तरह विदेश भाषा नहीं है जिसको यहाँ के बच्चे पहली बार सुने हों |
आपको भलीभाँति पता है कि उत्तरप्रदेश हिंदी पट्टी का बड़ा राज्य है जहाँ से हिंदी साहित्य की अलख जागी है, इन्ही कशी-बनारस के घाटों पर महाकवि तुलसीदास नें रामचरितमानस की रचना की थी, उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सुभद्राकुमारी चौहान, निराला, हरिवंशराय जैसे अनेकों साहित्यकार इसी धरती में जन्में हों, कुमार विश्वास जैसा कवि आज जिसे पूरी दुनिया में जाना जाता है और उसी उत्तरप्रदेश की धरती में हिंदी का ये हाल आगे आने वाले समय में हिंदी के अस्तित्व पर भारीभरकम प्रश्नचिन्ह खड़ा करेगा |
उत्तरप्रदेश शिक्षा विभाग में आने वाले में हिंदी विभाग को इस मसले पर गहन चिन्तन-मनन, विश्लेषण करने की जरूरत है | आज युवाओं से भी प्रश्न पूछे जाना चाहिए कि क्या कारण है उन्हें हिंदी पढ़ने में रूचि नहीं लगती ? क्योंकि ये बच्चे सपने तो हिंदी के अलावा अन्य किसी विदेशी भाषा में न देखते होंगे ?