Falana Dikhana कितना फर्जी लगता हैं यार कुछ सीरियस रख लेते ! पढ़िए नाम के पीछे की कहानी
आप फलाना दिखाना ही क्यों नाम रख लिए यार। थोड़ा सीरियस नाम रख लेते ये थोड़ा फर्जी नाम लगता है ! नाम इतना सीरियस रखिये कि लगे की हाँ न्यूज़ मीडिया वाले हैं। आप, जन खबर रख लीजिये या फिर आपकी अपनी खबर रखिये सही रहेगा।
यह सब हमारी टीम पिछले 6 महीनो से लगातार सुनते आ रही है इसलिए अब सोचा की इस पर एक लेख लिखना आवश्यक हो चला है। सबसे पहले फलाना दिखाना को इतना सारा सपोर्ट करने के लिए आप सभी का शुक्रिया। आज हम फलाना दिखाना के अपने सफर का छोटा सा किस्सा बताने जा रहे है और हाँ सबसे अधिक पूछे जाने वाले प्रश्न की आपने फलाना दिखाना ही क्यों नाम रख लिया इसका बखान भी करेंगे।
दरअसल यह ऑनलाइन पोर्टल दिल्ली विश्विद्यालय के नार्थ कैंपस स्थित पत्रकारिता के छात्रों द्वारा शुरू किया गया था। यह सफर एक वाकये से शुरू हुआ जोकि मेरे एक अनुभव से जुड़ा हुआ है। आज से करीब दो वर्ष पूर्व जब मैं किसी बड़े मीडिया संस्थान में इंटर्नशिप करने गया था तो वहां मीडिया के सच्चे अनुभव से रूबरू होना पड़ा था। पास से देखा कि कैसे किसी खबर को तोड़ दिया जाता है। कभी भी खबर के दोनों पहलु नहीं दिखाए जाते है। यहीं दिग्गज संस्थान खबर उठाते समय लोगो की जातियों को बहुत तरजीह दे रहे थे। वहीं अगर एक जाति विशेष की घटना हो फिर चाहे वह गलत ही क्यों न हो उसे बेहद ही गलत व आपत्तिजनक रूप में परोस देते है। ताज़ा वाकये के लिए आप कर्णाटक की उस घटना का जिक्र ले सकते है जहां लगभग सभी मीडिया द्वारा यह दिखाया गया कि एक दलित को महज बाइक छू लेने भर से भीड़ ने पीट डाला। बल्कि खबर इसके बिलकुल उलट थी। अब आइये मुख्य पॉइंट पर। मान लीजिये अगर मैं इसके दूसरे पहलु को खोज कर सच्चाई लिख अपने सीनियर एडिटर को पकड़ा भी देता तो वो इसे सीधे कूड़ेदान में फेंक देता। उनको टीआरपी इशू जो है! यकीन मानिये लगभग 99 प्रतिशत ऐसी खबरे किसी न किसी कारण वस फर्जी छापी जाती है।
इतना ही नहीं आम जन मानस के मुद्दे भी यह जाति देख कर उठाते। बरहाल आप अगर हमें पढ़ते होंगे तो समझ ही चुके होंगे कि मेरा इशारा कहा है। यह सब देख लेने व समझ लेने के बाद हमने इसकी चर्चा अपने कुछ कॉलेज के दोस्तों से भी करी। बातो ही बातो में हमने तय किया कि हम मेन स्ट्रीम मीडिया में काम नहीं करेंगे। लेकिन यह कहना आसान है करना नहीं।
कुछ दिनों बाद मैंने अपने एक मित्र के साथ चर्चा करी कि क्यों न हम अपना एक नया पोर्टल शुरू कर दे जिसमे जो रिवर्स रेसिस्म मीडिया आज नहीं दिखाता वह दिखाया जाये? बहुत सारी माथा पच्ची करने के बाद तय हुआ कि हम आने वालो महीनो में एक पोर्टल भी शुरू कर देंगे।
बरहाल, काम शुरू करने से पहले नाम सोचना भी किसी जंग जीतने से कम नहीं है। जिस कारण से कई दिन ऐसे ही बीत गए। दोस्तों द्वारा कई सीरियस नाम सुझाये गए जैसे जन आगाज, आपकी खबर, आज़ाद खबर आदि। परन्तु किसी भी नाम पर सहमति नहीं बन पा रही थी। क्यूंकि हमें एक कैची नाम चाहिए था जिसे दिल्ली, मुंबई, चेन्नई जैसा युवा अपने स्टाइल स्वैग से जोड़ सके। या यु कहिये उनको नाम ऐसा सुझा कर हम हिंदी में खबर पढ़ने को भी विवश कर सके।
इसी कड़ी को जोड़ते हुए अचानक से फलाना ढिकाना नाम तय किया गया। शुरू में तो काफी हसी भी आई मगर आखरी तक सहमति बन गई। परन्तु डोमेन लेते हुए हमसे स्पेलिंग की चूक हो गई और फलाना ढिकाना असल में फलाना दिखाना बन गया। अब नाम मिल गया तो मिल गया। इतना पैसा भी न था कि दूसरा डोमेन ले लेते। तो बतौर जस्टिफिकेशन हमने कहना शुरू किया कि दरअसल इसको लेने का असल मकसद था गाँव देहात में रहने वाले फलाने की बातो को दिखाना इसलिए सिंपल फलाना दिखाना !
चलिए नाम तो तय हो गया आईआईटी के छात्रों को पकड़ कर वेबसाइट भी बनवा ली गई। फिर बारी आई संघर्ष की जो अब कुछ सार्थक होता दिख रहा है। 1 पाठक से शुरू की गई वेबसाइट आज महीने के लगभग 10 लाख पाठक बटोर रही है। लोगो का भरपूर समर्थन भी मिल रहा है। खबर लिखने को टीम छोटी पड़ रही है। और हां आप सभी की कृपा से नाम पर सवाल भी पूछे जा रहे है।
लेकिन फिर भी कई पाठको को नाम में अधिक रूचि है बजाये काम के। मान लीजिये अगर हम अपना नाम आज तक रख लेते तो असल में यह नाम भी झोलाछाप की श्रेणी में ही आता है। वो तो इसके साथ विडम्बना यह है कि यह नाम शुरू के चैनल में शुमार रहा है इसलिए हमें इसे सुनने की आदत हो गई है। चलिए अगर हम ही NDTV होते तो इसका भी जस्टिफिकेशन देने के लिए कई आर्टिकल छापने पड़ जाते। लेकिन इसे भी सुनने की आदत हो चली है ऐसे ही ABP न्यूज़, लल्लनटॉप व जी न्यूज़ की कहानी है।
ऐसे में आपको यह देखना चाहिए कि खबर लिखने वाले कितने फर्जी कितने असली है। दिल्ली विश्विद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से आकर कोई मीडिया छात्र अगर उसे उठा रहा हो तो क्या वह मायने नहीं रखता। जिसने अखिल भारतीय परीक्षा में बैठ कर टॉप रैंक हासिल की हो जो 5 साल सिर्फ यही पढ़ने लिखने में डीयू में गुजार दे रहा है आखिर वही तो आज तक व अन्य मीडिया संस्थानों में जायेगा।
या झोलाछाप पत्रकारों के साथ बड़ा सीरियस नाम लिए शुरू करने से ही क्रांति आएगी? यकीन मानिये आज के दो से तीन साल बाद जब सभी को यह नाम सुनने की आदत पड़ जाएगी तो आप सब ही कहेंगे ‘फलाने केतन बढ़िया नाम रखिस हो’। एक नंबर !
तो, फलाना दिखाना से ज्यादा जरुरी हमारे लिए मुद्दों को उठाना है। आज सभी मीडिया संस्थान फर्जी खबरों के माध्यम से बड़े बन रहे है।
मैं खुद अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के लिए लिखता हु, हमारे सभी एडिटर्स किसी न किसी अच्छी जगह सेट हो जाते लेकिन हमने वहां जाने से बेहतर असल मुद्दों को उठाना बेहतर समझा। आज हमारी खबर को आप दूसरे मीडिया संस्थान से मिला लीजिये आपको अंदाजा लग जायेगा।
खैर हमें उम्मीद है कि आगे से आप सभी मिल कर फलाना दिखाना को ही एक ब्रांड बना डालेंगे। जिसे सुन कर लोग बोले फलाना दिखाना ही सही दिखाता है बाकी सब भांड हो चुके है।
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कुछ तो लोग कहेंगे, लोगो का काम है कहना।
Best wishes