स्पेशल

SC-ST एक्ट निर्दोषों का शोषण करने के लिए नहीं, ये संविधान के खिलाफ : हाई कोर्ट

ऐसे दुरूपयोग सिर्फ जातिगत भेदभाव को बढ़ाएंगे बजाय भाई चारे के : मद्रास हाई कोर्ट

चेन्नई (तमिलनाडु) : एससी एसटी एक्ट के बेजा इस्तेमाल पर एक बार फिर से कोर्ट सख्त हुआ है। मामला कोइम्बटोर की भरतहिआर यूनिवर्सिटी का है जहाँ पर यूनिवर्सिटी के पूर्व वाईस चांसलर पर एक महिला ने यूनिवर्सिटी में जॉब न दिए जाने पर विश्विधालय के कुलपति पर एससी एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कराया था।

अंग्रेजी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार अनुसूचित जाति से आने वाली इस महिला के पास बायो टेक्नोलॉजी में डॉक्टरेट की डिग्री है जिसके तहत उन्होंने विश्विधालय में एससी कोटे के तहत नौकरी व फ़ेलोशिप के लिए आवेदन किया था।



दोनों पदों पर चयनित न किये जाने पर महिला ने विश्विधालय के कुलपति ए. गणपति के खिलाफ एट्रोसिटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया था।

वही मद्रास हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह पाया की इसी सीट पर किसी अन्य अनुसूचित जाति के व्यक्ति को नौकरी दी गई थी तो यह कहना की यह उसका सामाजिक बहिष्कार है बिलकुल तर्क हीन है ।

जस्टिस एन. आनंद वेंकटेश ने यह कहते हुए FIR रद्द करने के निर्देश दिए कि किसी भी शोषित वर्ग से आने वाले व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं सहा जायेगा परन्तु उसकी आड़ में अपना बदला लेने के मकसद से किसी भी कानून का दुरूपयोग बिलकुल भी सहनीय नहीं है।

आगे उन्होंने कहा कि “यह एक्ट कभी भी किसी को डराने धमकाने या किसी बेशर्म व्यक्ति द्वारा किसी को दबाने के लिए प्रयोग में नहीं लाया जा सकता है, किसी भी नागरिक के शोषण का कारण अगर यह एक्ट बनता है तो यह हमारे सविधान के खिलाफ है”।

आपको बता दे इससे पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह आदेश दिया गया था कि एससी एसटी एक्ट में पहले जांच फिर गिरफ़्तारी कि जाएगी जिसको बाद में दबाव में आकर मोदी सरकार ने संसद में पलट दिया था।

 

 

 

इससे सम्बंधित

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button