प्राथिमिकी दर्ज होते ही गिरफ्तारी क्या व्यक्ति के मौलिक अधिकारों के विरुद्ध है !
हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने झांसी के धर्मेन्द्र की जमानत मंजूर करते हुए कहा कि ‘प्राथमिकी दर्ज होते ही किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर लेना मनमाना कार्य है और यह उसके संविधानप्रदत्त मौलिक अधिकारों के साथ मानवाधिकार का भी स्पष्ट उल्लंघन है। इस प्रकार की गिरफ्तारियां केवल भ्रष्टाचार का माध्यम बन रही हैं।’
कोर्ट ने यह भी कहा कि ‘गिरफ्तारी अंतिम विकल्प होनी चाहिए, यदि किसी आपराधिक मामले में आरोपी बनाए गए व्यक्ति को कस्टडी में लेकर पूछताछ करना जरूरी हो तो ही उसे गिरफ्तार किया जाए। व्यक्ति की स्वतंत्रता मौलिक अधिकार है, जिसके हनन की छूट नहीं दी जा सकती।’
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के जोगिंदर सिंह केस का उल्लेख करते हुए कहा कि ‘केवल अनावश्यक गिरफ्तारियां ही 43% जेल संसाधनों पर भार बन रहीं है’।
हमारे लिए गिरफ्तारियों के सम्बंध में कोर्ट की यह टिप्पणी इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि एक सप्ताह पहले कानपुर से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया था, जहां अन्य छात्र के प्लेसमेंट से आहत दलित छात्र ने थोड़ी बहस के बाद 5 सवर्ण छात्रों पर SC/ST का मुकदमा दर्ज करा दिया गया था। तब से वो 5 छात्र जेल में ही हैं। इस प्रकार के तमाम मामले अब रोज ही सामने आ रहे हैं जहाँ त्वरित गिरफ्तारियों से कई निर्दोषों का जीवन नष्ट हो रहा है। कोर्ट की टिप्पणी शत प्रतिशत सत्य है कि किसी व्यक्ति के मानवीय अधिकारों का हनन है कि उसे बिना किसी जांच के, बिना अपना पक्ष रखे जेल में बंद कर दिया जाय।
आज से पूरे 3 वर्ष पहले 20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST Act के सम्बंध में निर्णय दिया था कि केवल जांच के बाद ही FIR की जाय, तुरंत गिरफ्तारी नही करने के साथ अग्रिम जमानत का विकल्प भी दिया गया था। जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की बेंच ने यह टिप्पणी भी की कि ‘SC/ST Act का प्रयोग अब नागरिकों के विरुद्ध ब्लैकमेल करने या बदला लेने की नीयत से किया जा रहा है’। हालांकि मोदी सरकार ने संसद में कानून संशोधन करके इन बदलावों को प्रभावहीन कर दिया था। कोर्ट की यह टिप्पणी इसलिए भी ध्यातव्य है क्योंकि अभी कुछ मामले ऐसे भी आये जहां दलित युवक के हाथों अन्य जाति की युवतियों पर लैंगिक सम्बन्ध या शादी करने दबाव बनाया गया और मना करने पर युवतियों और उनके परिवार पर SC/ST Act में मुकदमा दर्ज किया गया।
वोटबैंक की राजनीति ने नेताओं को इस बात से विमुख कर दिया है कि जिस छात्र को नौकरी करनी थो उसके जेल में होने से समाज मे क्या संदेश जा रहा है। समाज के रूप में हमे जेल में बरबाद होती जिंदगियों पर विचार अवश्य करना चाहिए। भारत के संविधान निर्माताओं ने ऐसे देश की कल्पना की थी जहां व्यवस्था भाषा, लिंग, जाति, धर्म के आधार पर कहीं कोई अन्याय न हो। हम 70 वर्ष इस दिशा में काफी आगे भी आये हैं, ऐसे में निर्दोषों की गिरफ्तारियां केवल इसलिए कि वो एक खास जाति से नही थे समाज में जातिगत घृणा को जन्म दे रहा है। गौरतलब है कि राजस्थान पुलिस के डेटा के अनुसार 2020 में SC/ST Act में दर्ज 40% मुकदमे झूठे पाए गए थे।