राम राज्य

सीतामाता वन्यजीव अभ्यारण्य जहां जन्में लव कुश, वटवृक्ष था क्रीड़ास्थल, ठंड गर्म जल वाली बावड़ियों के नाम हैं लव कुश

प्रतापगढ़: आज विश्व वन्यजीव दिवस (World Wildlife Day) पर जानते हैं सीतामाता वन्यजीव अभ्यारण जो राजस्थान के प्रतापगढ़ जिला मुख्यालय से 40 कि.मी. दूर दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में स्थित है. जो उदयपुर से 100 कि. मी. और चित्तौडगढ़ से करीब 60 किलोमीटर दूरी स्थित हैं.

इस वन्यजीव अभ्यारण को 2 नवम्बर 1979 को राजस्थान सरकार द्वारा एक संरक्षित वन क्षेत्र के रूप में घोषित कर दिया गया था. यह वन्यजीव अभ्यारण 422.94 वर्ग किलोमीटर में फैला है.

जहाँ भारत की तीन पर्वतमालाएं- अरावली, विन्ध्याचल और मालवा पर्वतीय क्षेत्रों का आपसी संबंध देखने को मिलता है. इस अभ्यारण में आकर्षक जाखम नदी भी देखने को मिलती है जिसका पानी गर्मियों में भी नहीं सूखता, इस वन अभ्यारण की जीवन-रेखा भी यही नदी है.

अभ्यारण में खास

सीतामाता वन्यजीव अभ्यारण प्रतापगढ़ ज़िले की कुल भूमि क्षेत्र का लगभग 40% है. जहां आप असंख्य वन्यजीवों की कई प्रजातियां आपको आराम से देखने को मिल सकती हैं. स्तनधारी जीवों में आप यहां तेंदुआ, लोमड़ी, जंगली बिल्ली, सियार, भालू, नीलगाय, चमगादड़, चीतल, जंगली सूअर आदि को भी देख सकते हैं. यहां की सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण वन्यजीव प्रजातियों में उड़न गिलहरी और चौसिंघा हिरण उल्लेखनीय हैं.

Valmiki Ashram (PC: FB)

यहाँ पर बारह बीघा नामक एक बट वृक्ष भी स्थित है जो बारह बीघा जमीन पर फैला हैं. कई वृक्षों, लताओं और झाड़ियों की बेशुमार प्रजातियां इस अभयारण्य की विशेषता हैं, वहीं अनेकों दुर्लभ औषधि वृक्ष और अनगिनत जड़ी-बूटियाँ अनुसंधानकर्ताओं के लिए शोध का विषय है. वनों के उजड़ने से अब वन्यजीवों की संख्या में कमी आती जा रही है.

धार्मिक मान्यताएं

स्थानीय लोगों की मान्यता है कि सीतामाता ने वनवास के कुछ दिन इस वन क्षेत्र के ऋषि वाल्मीकि आश्रम में बिताए और उनके दोनों पुत्र लव और कुश का जन्म भी यहीं वाल्मीकि आश्रम में हुआ था. इतना ही नही यहां पर आज भी लव – कुश नामक दो बावड़ियाँ हैं जिसमें गर्म और ठंडा जल रहता हैं.

Banyan Tree (PC: YT)

ऐसा माना जाता है कि सीतामाता अंततः जब भूगर्भ में समा गयी थी, वह स्थल भी इसी अभयारण्य में स्थित है. इसीलिए इस क्षेत्र का नाम सीतामाता अभयारण्य पड़ा. यहाँ पर एक प्रसिद्ध हवन मगंरी हनुमान मंदिर भी स्थित है. इस वन क्षेत्र के हृदय स्थल पर सीतामाता का विश्व का एकमात्र प्रसिद्ध मंदिर स्थित है.

विश्व वन्यजीव दिवस

20 दिसंबर 2013 को, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 3 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस के रूप में घोषित करने का निर्णय लिया था. विश्व वन्यजीव दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य विश्वभर में वन्यजीवों की सुरक्षा तथा वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के प्रति लोगों को जागरूक करना है.

हम सभी को इस बात को भली-भांति समझ लेना होगा कि पृथ्वी पर जैव विविधता को बनाए रखने के लिए सबसे जरूरी और महत्वपूर्ण यही है कि हम धरती और प्रकति के तालमेल को बनाए रखें. इसी के चलते प्रतिवर्ष 3 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस मनाया जाता है.

इससे सम्बंधित

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button