मांझी को दलित कारसेवक का जवाब- ‘ज्यादातर आंदोलन व बदलाव ब्राह्मणों के नेतृत्व में हुए, ब्राह्मण एक जाति नहीं, संस्था है’
पटना: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी द्वारा दिए गए ब्राह्मण विरोधी बयान को लेकर दलित कारसेवक कामेश्वर चौपाल ने तार्किक पलटवार किया है। उन्होंने कहा कि ब्राह्मण को समाज मे उत्पन्न सभी समस्याओं का जड़ समझना अज्ञानता है।
दलित भाजपा नेता कामेश्वर चौपाल ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में लिखा कि जीतन राम मांझी ब्राह्मण समाज और राम पर अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं। उनकी समस्या है कि वह ब्राह्मण को जाति के रूप में और श्रीराम को एक सामान्य मनुष्य के रूप में देखते हैं, ब्राह्मण एक जाति नही, इंस्टिट्यूशन है।
चौपाल ने आगे कहा कि ज्यादातर आंदोलन और बदलाव ब्राह्मणों के नेतृत्व में हुए। इतिहास देखिए, भगवान बुद्ध के शुरुआती शिष्य ब्राह्मण रहे। भगवान महावीर के आचार्य और गणधर भी ब्राह्मण ही थे। हिंदुस्तान में सुधारवादी आंदोलन का नेतृत्व रामानन्दाचार्य, बसवेश्वर ने किया तो सामाजिक सुधार के लिए राजाराम मोहनराय, स्वामी दयानन्द सरस्वती, गोविन्द महादेव रानाडे ने ब्राह्मण होते हुए भी ब्राह्मणों के खिलाफ आंदोलन चलाए।
“देश मे सेकुलर मूवमेंट चलाने वाले गोपालकृष्ण गोखले, गोविन्द वल्लभ पंत, राष्ट्रवादी आंदोलन में वासुदेव बलबन्त फड़के, वीर सावरकर, डॉ. हेडगेवार, गोलवलकर और कम्युनिस्ट आंदोलन की अगुवाई करने वाले बी एल जोशी, नामुदारीपाद बहुत से नाम शामिल हैं। इसीलिए ब्राह्मण को केवल पुराणपंथी या समाज मे उत्पन्न सभी समस्याओं का जड़ समझना अज्ञानता है।”
उन्होंने कहा कि इस प्रकार की ओछी और निम्नस्तरीय चर्चा केवल बौद्धिक दिवालिया पन को ही प्रकट करता है। हर समाज में वन्दनीय, पूजनीय और प्रेरणा देने वाले श्रेष्ठ और जेष्ठ महापुरुष हुए हैं उनमें से अच्छाई ग्रहणकर ही हम गौरवशाली समाज की रचना कर सकते हैं।
अंत में सवालिया लहजे में उन्होंने कहा कि मैं जीतनराम मांझी से पूछना चाहूंगा कि आप जिस बाबा साहब अंबेडकर की कृपा और भारतीय संविधान की वजह से आप और हमारे जैसे लोग भारत में सम्मान पा रहे हैं, उन्होंने कैसे भारतीय संविधान के प्रथम पृष्ठ पर राम दरबार का चित्रण किए हैं ? भारत के राष्टपिता परम् पूज्य बापू ने कैसे भारत के लिए “रामराज्य” की कल्पना किये ? जबकि उनके (मांझी जी के) कथनानुसार राम काल्पनिक हैं !
मांझी ने पंडितों को कहा था हरामी
बता दें बीते दिनों जीतन राम मांझी ने पटना में भुइयां में आयोजित मुसहर सम्मेलन में हिन्दू धर्म और पंडितों के प्रति नफरत को जाहिर करते हुए बेहद अपमानजनक शब्द ‘हरामी’ का प्रयोग किया था।
उन्होंने कहा था, “आज कल हमारे गरीब तबके में धर्म की परायणता ज्यादा आ रही है। सत्य नारायण पूजा का नाम हम नहीं जानते थे लेकिन ‘साला’ अब हम लोगों के हर टोला में उनकी पूजा हो रही है। पंडित ‘हरामी’ आते हैं और कहते हैं कि हम खाएंगे नहीं, हमको नगद ही दे दीजिए।”
मांझी ने पंडितों के अलावा भगवान श्री राम पर भी टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि “मैं राम को भगवान नहीं मानता, वो काल्पनिक है।”