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शहीद रोशन सिंह जयंती : कहा था “मैंने जिंदगी जी ली मेरी फांसी ठीक किंतु बिस्मिल व अशफ़ाक़ को नहीं…”
बरेली गोलीकांड में 3 साल की सजा काट कर शांतिपूर्ण जीवन की सोच ही रहे थे कि हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए
नईदिल्ली : देश की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारी ठाकुर रोशन सिंह का आज जन्मदिन है | साल था 1892 जब उनका जन्म यूपी के शहीदगढ़ कहे जाने वाले शाहजहाँबाद के गाँव नबादा में हुआ था |
पहले सोचा कि सजा काट ली अब शांत जीवन जिऊंगा फिर कूद गए आंदोलन में :
गांधी जी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन के समय बरेली गोलीकांड में 3 साल की सजा काट कर शांतिपूर्ण जीवन की सोच ही रहे थे कि हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए | और इसके बाद उन्होंने पंडित बिस्मिल व अशफ़ाक़ उल्लाह खान के साथ आजादी के लिए पूरी जिंदगी ही झोंक डाली |
अचूक निशानेबाजी करने वाले ठाकुर साहब तीनों में सबसे अनुभवी थे | घर वार त्याग कर देश सेवा में जीने वाले ठाकुर साहब को खुद की फांसी होने का गम नहीं था वो हमेशा कहा करते थे कि ” मैंने तो अपनी जिंदगी जी ली दुनिया भी देख ली और मुझे मेरी मौत का कोई गम नहीं लेकिन पंडित और अशफ़ाक़ नें तो अभी पूरी दुनिया भी नहीं देख पाए और उन्हें फांसी क्यों दे रहे हैं ये फिरंगी क्या इन्हें दया नहीं आती ? “
ठाकुर साहब का फांसी से पहले का मित्र को पत्र :
ठाकुर साहब ने 6 दिसम्बर 1927 को इलाहाबाद स्थित मलाका (नैनी) जेल की काल-कोठरी से अपने एक मित्र को ये पत्र लिखा था:
“इस सप्ताह के भीतर ही फाँसी होगी। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह आपको मोहब्बत का बदला दे। आप मेरे लिये रंज हरगिज न करें। मेरी मौत खुशी का बाइस (कारण) होगी। दुनिया में पैदा होकर मरना जरूर है। दुनिया में बदफैली करके अपने को बदनाम न करे और मरते वक्त ईश्वर की याद रहे;यही दो बातें होनी चाहिये और ईश्वर की कृपा से मेरे साथ ये दोनों बातें हैं। इसलिये मेरी मौत किसी प्रकार अफसोस के लायक नहीं है। दो साल से बाल-बच्चों से अलग रहा हूँ। इस बीच ईश्वर भजन का खूब मौका मिला। इससे मेरा मोह छूट गया और कोई वासना बाकी न रही। मेरा पूरा विश्वास है कि दुनिया की कष्ट भरी यात्रा समाप्त करके मैं अब आराम की जिन्दगी जीने के लिये जा रहा हूँ। हमारे शास्त्रों में लिखा है कि जो आदमी धर्म युद्ध में प्राण देता है उसकी वही गति होती है जो जंगल में रहकर तपस्या करने वाले ऋषि मुनियों की।”
पत्र समाप्त करने के बाद उसके अन्त में उन्होंने अपना यह शेर भी लिखा था:
” जिन्दगी जिन्दा-दिली को जान ऐ रोशन!
वरना कितने ही यहाँ रोज फना होते हैं। “
फांसी वाले दिन पहरेदार के कहे बिना फांसी के लिए कहा चलो..
फाँसी से पहली रात ठाकुर साहब कुछ घण्टे सोये फिर देर रात से ही ईश्वर-भजन करते रहे। प्रात:काल शौचादि से निवृत्त हो यथानियम स्नान ध्यान किया कुछ देर गीता-पाठ में लगायी फिर पहरेदार से कहा-“चलो।” वह हैरत से देखने लगा यह कोई आदमी है या देवता! ठाकुर साहब ने अपनी काल-कोठरी को प्रणाम किया और गीता हाथ में लेकर निर्विकार भाव से फाँसी घर की ओर चल दिये।
फाँसी के फन्दे को चूमा फिर जोर से तीन वार वन्दे मातरम् का उद्घोष किया और वेद-मन्त्र – “ओ३म् विश्वानि देव सवितुर दुरितानि परासुव यद भद्रम तन्नासुव” – का जाप करते हुए फन्दे से झूल गये।