बढ़ती मृत्यु दर बता रही है कि कैसे रमज़ान ने जानलेवा कोरोना वायरस को फैलाने में घातक भूमिका निभाई
रमज़ान के दौरान कोविड -19 से होने वाली मौतों की बढ़ती संख्या ने साबित कर दिया कि कैसे समुदाय के सदस्यों ने रमज़ान का पालन करने और ईद-अल-फ़ितर मनाने के लिए लोगों के स्वास्थ्य और जीवन का बलिदान दिया। 13 अप्रैल को रमज़ान का पवित्र महीना शुरू से पहले से लेकर 13 और 14 मई को ईद-उल-फितर के साथ समाप्त होने तक, धार्मिक और राजनीतिक नेताओं ने भले ही मुसलमानों से सामाजिक दूरी के दिशानिर्देशों का पालन सुनिश्चित करने के लिए एक गंभीर अपील की होगी। लेकिन, इस्लाम को लागू करने के लिए फतवा जारी करने वाले धार्मिक नेता, अपने समुदाय के सदस्यों के लिए कोविड -19 प्रोटोकॉल को लागू करा पाने में बुरी तरह विफल रहे, लोगों ने इफ्तार सभा, मस्जिदों में नमाज, बाजारों में खरीदारी और दोस्तों और रिश्तेदार के साथ बैठक की पुरानी प्रथा को जारी रखा और सभी COVID -19 प्रोटोकॉल की अवहेलना की जिसके परिणामस्वरूप अधिक से अधिक मौतें हुई है।
जब रमज़ान शुरू हुआ, तो तेलंगाना में 18 अप्रैल को मौतों की संख्या 1824 थी, जिसमें प्रतिदिन 15 मौतें दर्ज की गईं। ईद-अल-फितर के जश्न के बाद, तेलंगाना में मृत्यु 18 मई को बढ़कर 3012 हो गई, जिसमें हर दिन 27 मौतें हुईं। यह रमज़ान के कारण होने वाली मृत्यु दर में 80% से अधिक की उछाल है।
पहले दिन से ही, हैदराबाद के चारमीनार इलाके में बिना मास्क और शारीरिक दूरी के, महीने भर चलने वाले ईद बाजारों में रमज़ान की खरीदारी के लिए भारी भीड़ थी। किसी ने भी इस बात का ध्यान नहीं दिया कि, देश कोविड -19 की दूसरी लहर से जूझ रहा है, जो पहली लहर से ज्यादा घातक है।
लेकिन, रहमान अली के लिए त्योहार की खरीदारी के लिए उमड़ी इस तरह की भीड़ उनके 70 वर्षीय पिता शौकत अली के लिए डेथ वारंट साबित हुई, जिनकी रमजान के पहले सप्ताह में कोविड -19 से मृत्यु हो गई। पुराने हैदराबाद के रहमान अली याद करते हैं कि कैसे उनके पिता, एक मधुमेह रोगी, जिन्होंने रमज़ान की खरीदारी के लिए बाहर न निकलने के उनके गंभीर अनुरोध को अनदेखा कर दिया, अंततः उनकी मृत्यु हो गई। साथ ही उन्होंने परिवार के अन्य सदस्यों को भी संक्रमित कर दिया। डरे हुए रहमान अली ने सवाल किया कि, रमज़ान शॉपिंग में जो सामाजिक दूरी के मानदंडों का पालन नहीं करने पर तुले हुए हैं उन लोगों को कोरोना संक्रमण कितने डेथ वारंट जारी करेगा?
समुदाय के सदस्यों ने महाराष्ट्र में भी कोविड के दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया, भले ही सरकार ने बड़ी सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिया था। मास्क पहनना तो भूल ही जाइए, रमज़ान की खरीदारी के लिए इतनी अधिक भीड़ जुटी कि मुंबई और महाराष्ट्र के अन्य मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में सोशल डिस्टेंसिंग की कोई गुंजाइश ही नहीं बची। रमजान के महीने में मस्जिदों में शुक्रवार को नमाज अदा करने के लिए इकट्ठा हुई भीड़ भी उतनी ही डरावनी थी। मस्जिदें नमाजियों से भरी थी, हालांकि सरकार ने शादियों में 100 से अधिक लोगों और अंतिम संस्कार में 20 लोगों से अधिक लोगों के न जुटने तथा सार्वजनिक समारोहों को पूर्णतः प्रतिबंधित करने की अनुमति दी थी।
18 अप्रैल को महाराष्ट्र में प्रतिदिन 503 मौतों के साथ कोविड से होने वाली मौतों की संख्या 60,473 थी। ईद-उल-फितर का जश्न खत्म होने के बाद, प्रतिदिन 1291 मौतों के साथ मरने वालों की संख्या 83,777 तक पहुंच गई। मृत्यु संख्या में वृद्धि 250% से अधिक थी।
दिल्ली कोरोनावायरस से देश का सबसे ज्यादा प्रभावित शहर रहा है, दिल्ली के अस्पतालों के चोक होने से दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था प्रणाली अत्यधिक तनाव में है। क्या दिल्ली की भयावह स्थिति बाजारों और मस्जिदों में भीड़ करने वाले लोगों को डराती है? नहीं। उत्तर पूर्वी दिल्ली में शास्त्री पार्क क्षेत्र पहले से ही कन्टेनमेंट जोन के रूप में सूचीबद्ध किया गया था, जिसे प्राधिकरण द्वारा COVID -19 वायरस की चैन को तोड़ने के लिए सील कर दिया गया है। जबकि, भीड़ रमज़ान के लिए घूम रही है और खरीदारी कर रही है, लॉकडाउन के नियमों का उल्लंघन कर रही है जैसे कि उन्होंने कभी महामारी कोरोनावायरस के बारे में सुना ही न हो।
18 अप्रैल को दिल्ली में COVID-19 से मरने वालों की संख्या 12121 थी और प्रतिदिन 161 मौतें हुईं। ईद-उल-फितर के जश्न के बाद हर दिन 265 मौतों के साथ मरने वालों की संख्या 22111 पहुंच गई। रमजान के त्योहार खत्म होने के बाद मौत का आंकड़ा 160% से ज्यादा पहुंचा
दिल्ली से 150 किलोमीटर दूर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के 34 वर्तमान और पूर्व प्रोफेसरों की रमजान के दौरान कोरोनावायरस और इससे जुड़े लक्षणों से मौत हो गई।
अधिकारियों ने जम्मू-कश्मीर में भी लॉकडाउन प्रोटोकॉल को लागू करा पाने में खुद को असहाय पाया, जहां रमजान के दौरान मृत्यु दर आसमान पर पहुंच गई, लेकिन मीडिया में किसी का इसपर ध्यान नहीं गया। 18 अप्रैल को रमज़ान की शुरुआत में जम्मू-कश्मीर में मरने वालों की संख्या 2,057 थी, जिसमें प्रतिदिन 6 मौतें होती थीं। ईद-उल-फितर के जश्न के बाद हर दिन 71 मौतों के साथ मरने वालों की संख्या बढ़कर 3293 हो गई। जम्मू और कश्मीर में रमजान के बाद मरने वालों की संख्या में भारी वृद्धि 1000% से अधिक थी।
18 अप्रैल को भारत में प्रतिदिन 1620 मौतों के साथ कोविड-19 से मरने वालों की संख्या 178793 थी। लेकिन ईद-उल-फितर के बाद हर दिन 4529 मौतों के साथ मरने वालों की संख्या 283280 पहुंच गई। रमजान के बाद मृत्यु दर में वृद्धि 250 प्रतिशत से अधिक थी।
स्वास्थ्य कर्मी योद्धाओं की तरह लड़ रहे हैं, साथ ही COVID -19 रोगियों की लगातार बाढ़ आ रही है। COVID-19 रोगियों को बचाते हुए कई डॉक्टरों और नर्सों को कोरोना वायरस संक्रमण हुआ उनमे से कुछ की शहीदों की तरह मौत भी हो गयी। वर्तमान में, हेल्थ केयर फ्रंट लाइन कर्मी अत्यधिक तनाव में हैं। वे मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से भी जूझ रहे है। ये सभी जानकारी सोशल मीडिया पर फिंगर टिप्स पर उपलब्ध है। फिर भी, मुस्लिम धर्म गुरुओं ने सामाजिक दूरियों के नियमों को लागू करना सुनिश्चित नहीं किया।
Author: Manisha Imandar
Translated by Vikas
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