पटना: बिहार के चुनावो में एक प्रतिशत वोट भी न जुटा सकी आज़ाद समाज पार्टी के सारे दावों को जनता ने औंधे मुँह गिरा दिया है। तीन राज्यों के इक्का दुक्का सीटों पर लड़ी आज़ाद समाज पार्टी ने जीतने के मकसद से ही अपने प्रत्याशियों को कुछ ही सीटों पर उतारा था जिससे भीम आर्मी सुप्रीमो चंद्रेशखर जी स्वयं प्रचार प्रसार कर अपनी पार्टी के लिए वोट बटोर सके। सरकार बनाने के बड़े बड़े दावे किये गए थे। साथ ही बड़े बड़े दलित बुद्धिजीवियों ने भी भीम आर्मी को बसपा के लिए काल तक बता डाला था जोकि वोट कटुआ भी बनकर न उभर सकी।
लगभग सभी सीटों पर ASP को मिले वोटो से दोगुने से भी अधिक नोटा को मत मिले है। जैसे बिहार की अगिआँव सीट पर लड़े ASP के बिहार प्रमुख को 0.53 प्रतिशत मत के मुताबिक मात्र 750 वोट ही मिल सके। जहां नोटा ने ही अकेले 3787 वोट बटोरे है। वहीं कुछ सीट पर तो नोटा ने ASP प्रत्याशियों से 5 गुने अधिक वोट अपनी झोली में डाल लिए है।
बिहार में PDA अलायन्स के तले बाकायदा हेलीकाप्टर से प्रचार प्रसार किया गया। लेकिन हेलीकाप्टर को देखने आई भीड़ को चंद्रशेखर ने अपनी लोकप्रियता से जोड़ लिया जिससे उनका अति आत्मविश्वास उन्हें ही उल्टा पड़ गया। आज भी भारत में भीड़ इक्खट्टा करना आसान माना जाता है लेकिन उन्हें वोट में तब्दील करवाना किसी जंग जीतने से कम नहीं है। वहीं सवर्णो को दुत्कार कर राजनीती करना आज के समय में तर्कसंगत नहीं रह गया है।
सवर्णो के हित की राजनीती करने के लिए आरजेडी ने अपने मुखिया लालू को भी पोस्टर से बाहर कर दिया था। वहीं चुनाव नजदीक आते आते तेजस्वी ने जातिगत बाते छोड़ विकास का साथ दिखाना शुरू कर दिया था। इसके उलट भीम आर्मी सिर्फ हिन्दू विरोधी ताकतों से वोट लेने में जुटी रही जिसमे AIMIM प्रत्याशी से हुई उनकी नोकझोक जो मुक़दमे बाजी तक पहुंच गई थी ने भीम मीम एकता को भी औंधे मुँह गिरा दिया। इस प्रकरण ने एक बार फिर बता दिया कि एकता महज तब तक रहेगी जब तक आप राजनीती में नहीं उतरते है।
हिन्दुओ विरोधी राजनीती करना पड़ गया भारी
हिन्दू विरोधी पैटर्न पर चलना भी भीम आर्मी को भारी पड़ गया है। एक वक़्त के बाद यह बात बसपा भी समझ गई थी जिसके बाद पार्टी ने अपने को ब्राह्मण दलित गठजोड़ से जोड़ दिया। वहीं हिन्दू धर्म से दलितों को बौद्ध पंथ में आने की बाते व एक धर्म को गाली देना ASP के आगाज को बुरी तरह फ्लॉप कर गया। अगर हेलीकाप्टर से प्रचार करने वाले प्रदेश बिहार को देखा जाए तो वहीं ASP की बुरी हालत हुई। वजह जीरो प्रतिशत की रेंज में ही वोट मिल सके है। यह हाल तक था जब उनका गठबधन PDA से था। दलितों द्वारा वोट न देना ASP को यह संकेत जरूर दे गया कि आप धर्म विरोधी बाते कर वोट नहीं ले सकते है।
85 जोड़ 15 छोड़
85 जोड़ के फॉर्मूले पर चली भीम आर्मी ने पूरी तरह से सवर्ण विरोधी मानसिकता के साथ प्रचार प्रसार किया था। ASP को यह समझना होगा कि ऐसे में वह समाज में गलत सन्देश दे रहे है। ऐसे मुद्दे उठा आप सिर्फ कट्टर दलितों के वोट ले सकते है लेकिन आम दलित आपको ऐसे मुद्दे से कभी आपको वोट नहीं दे सकता है। एमपी की अगर बात करे तो सबसे अधिक खस्ता हाल पार्टी की वहीं हुई है। मात्र दो सीट पर लड़ने के बावजूद आंकड़ा 1 प्रतिशत पर भी नहीं पहुंच सका। यानी कि 100 पड़े वोट में से एक व्यक्ति भी ASP को वोट नहीं देना चाहता है।
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