नईदिल्ली : भले ही युवी क्रिकेट से विदा हुए हैं लेकिन कैंसर पीड़ितों के लिए वो अपनी अंतिम साँस तक लड़ते रहेंगे उनकी देखभाल और मदद का सिलसिला फ़िलहाल इस जनम नहीं |
भारतीय क्रिकेट का एक हरफनमौला सितारा आज क्रिकेट को अलविदा कह गया लेकिन सबके दिलोदिमाग में कैसे जा सकता है ये बखूबी सब क्रिकेट प्रेमी जानते हैं | लेकिन इस संयास के बावजूद युवी कैंसर पीड़ितों के लिए अपनी अंतिम साँस तक काम करते रहेंगे यानी यहाँ से संयास नहीं | जैसा कि 2011 विश्वकप के बीच से कैंसर नामक जानलेवा बीमारी का सच उनकी जिंदगी को परखने आया यहाँ तक कि उस टूर्नामेंट के दौरान उन्हें खून की उल्टी हुई लेकिन उन्हें शायद इस काले सच का अंदाजा नहीं हुआ और उन्होंने इसे हल्का समझकर पूरी जान से टूर्नामेंट खेला 300 से ज्यादा रन बनाए 15 विकेट लेकर इतिहास रचा और जब भारत नें ट्राफ़ी अपने नाम की तो उन्हें मैन ऑफ़ द टूर्नामेंट के तमगे से नवाज़ा गया |
आज संयास के वक्त उन्होंने कुछ भावुक बातें कहीं, बोले कि “इस 22 गज के अंदर और बाहर 25 साल के क्रिकेट जीवन के बाद मैंने इसे छोड़ने का फ़ैसला लिया है | इस खेल नें मुझे सिखाया, कैसे लड़ा जाता है, कैसे गिरकर खड़े हुआ जाता है और कैसे आगे बढ़ा जाता है ?”
आगे एक फेसबुक पेज अजी हाँ की एक भावुक और दिल छू लेने वाली पोस्ट हमनें ली है जोकि आप को पढ़नी चाहिए
“आज जब युवी के रिटायरमेंट की खबर सुनी तो ऐसा लगा कि लड़कपन के दौर के एक अध्याय का आज समापन हुआ. वो अध्याय जिसके शुरूआती पैराग्राफ में दादा ने अपनी कलम से वीरेंदर सहवाग और युवराज सिंह का नाम लिखा था. ये वो लौंडे थे जो बेख़ौफ़ थे और बेपरवाह भी. सहवाग ने हमारी पीढ़ी को पलट के मारना सिखाया और युवराज ने बताया कि मारते ही जाना है रुकना नहीं हैं.
युवी नाम है उस भरोसे का जो क्रिकेट से जुड़े हर बड़े पल की नींव में में गढ़ा हुआ मिलेगा. 2011 वर्ल्ड कप के नाम पर हमें भले ही धोनी वाला छक्का याद रह गया हो लेकिन जिन्होंने वो वर्ल्ड कप जिया है खून की उल्टियां करते हुए कैंसर से जूझते हुए प्लेयर ऑफ़ the सीरीज युवराज को वो भुलाये नहीं भूल सकता. ऐसे ही पहले T20 वर्ल्ड कप में हमें वो जोगिन्दर शर्मा की गेंद पर श्रीसंथ का मिजबाह का कैच लपकना याद रह गया हो लेकिन रवि शास्त्री के कमेंट्री में युवराज दवारा स्टुअर्ट ब्रॉड पे मारे गए 6 छक्के हर भारतीय के जहन में autoplay मोड में चलने लगते हैं. शायद ही कोई ऐसा क्रिकेट प्रेमी होगा जो न बता पाए कि कौनसी बाल पे स्टेडियम के कौनसे कोने पे छक्का मारा था युवी ने. उसी वर्ल्ड कप में ब्रेट ली की बॉल पे 119 मीटर लम्बा छक्का भुलाये नहीं भूलता. भले ही उस टूर्नामेंट में प्लेयर ऑफ़ द सीरीज शहीद अफरीदी को दे दिया गया हो लेकिन दुनिया की नज़रों में प्लेयर ऑफ़ द सीरीज युवी ही था.
याद है पहली बार जब युवी को टीवी पर देखा था..6 फुट २ इंच लंबा, चौड़ा, गोरा चिट्टा, फुर्तीला लौंडा..जो पॉइंट पर एक दीवार बन कर खड़ा रहता था..जिसका एक एक कैच अपने आप में क्लास था..जिसकी डाइव और रन आउट शास्त्रीय संगीत से लयबद्ध होते थे. कवर में कैफ और पॉइंट पर युवराज हो तो दूसरी टीम को चौका मारने के लिए लेग साइड पर ही मारने का सोचना पड़ता था. पहला मैच केन्या के खिलाफ था जिसमें बैटिंग का नंबर नहीं आया…दूसरा मैच ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ था…सामने थे मैक्ग्रॉ, ब्रेट ली, गिलेस्पी की तिकड़ी…भले ही डायलॉग धोनी की फिल्म में इस्तेमाल किया गया हो लेकिन धागा खोलना क्या होता है उस मैच में देखा था और साथ ही देखा था वो नौजवान जो मैक्ग्रॉ को पुल मारने और ब्रेट ली को फ्लिक मारने से पहले हिचकिचाता नहीं हैं. आम भारतीय नौजवान में कॉन्फिडेंस भरने के लिए एक नया हीरो पहली ही इनिंग में देश के सामने आ गया था.
वो बल्ला चलाते ही बॉल का कवर क्षेत्र से होते हुए बॉउंड्री तक घास छीलते हुए जाना..मजबूत कलाइयों के हलके से फ्लिक से ही दुनिया के बड़े से बड़े तेज गेंदबाज को बड़े से बड़े मैदानों के बाहर भेज देना, स्ट्रेट बैट के पंच से स्ट्रेट डाइव मारना और जरूरत पड़े तो लेफ्ट आर्म स्लो इन-डिपर बॉल से सामने वाले को बोल्ड या एलबीडबल्यू आउट कर देना…सब युवराज सिंह के ट्रेडमार्क थे…और हमारे लड़कपन की सुनहरी यादें..
हम सबके अंदर एक युवराज हमेशा जिन्दा रहेगा..क्यूंकि लौंडे कभी रिटायर नहीं होते..Love You Yuvi
Yuvraj Singh: After 25 years in and around the 22 yards and almost 17 years of international cricket on and off, I have decided to move on. This game taught me how to fight, how to fall, to dust off, to get up again and move forward pic.twitter.com/NI2hO08NfM
— ANI (@ANI) June 10, 2019