नईदिल्ली : मोदी सरकार की दलील के बाद सुप्रीम कोर्ट नें एट्रोसिटी एक्ट के ख़ुद के फ़ैसले को वापस लिया है।
एससी-एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आंशिक तौर पर अपना फैसला बदल लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने पुराने फैसले में कुछ आंशिक बदलाव किए हैं। नए बदलाव के मुताबिक अब सरकारी कर्मचारी और सामान्य नागरिक को गिरफ्तार करने से पहले अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी।
SC/ST एक्ट के प्रावधानों को हल्का करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र की मोदी सरकार की पुनर्विचार याचिका पर केंद्र सरकार को राहत मिली है।
जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस बी आर गवई की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अब सरकारी कर्मचारी और सामान्य नागरिक को गिरफ्तार करने से पहले अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।
इससे पहले शिकायत दर्ज करने के बाद जांच करने पर ही FIR दर्ज करने का कोर्ट ने आदेश दिया था। हालांकि अब उसमें कोर्ट ने बदलाव कर दिया है. जिसके तहत अब पहले जांच जरूरी नहीं है।
दरअसल, 2018 के अपने फैसले में कोर्ट ने अग्रिम जमानत का प्रावधान दिया था. साथ ही गिरफ्तारी के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे. इसके बाद दलित संगठनों के विरोध को देखते हुए केंद्र की मोदी सरकार ने रिव्यू पिटिशन दाखिल की थी।
उच्चतम न्यायालय ने पिछले वर्ष 20 मार्च के अपने उस आदेश को वापस ले लिया है जिसमें अनुसूचति जाति और अनुसूचित जनजाति कानून के अन्तर्गत गिरफ्तारी के प्रावधानों को कठोर बना दिया गया था।
— आकाशवाणी समाचार (@AIRNewsHindi) October 1, 2019
20 मार्च 2018 में सुप्रीम कोर्ट नें दिया था ये फ़ैसला :
1. सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी से पहले विभाग के सक्षम अधिकारी की मंज़ूरी ज़रूरी होगी।
2. बाकी लोगों को गिरफ्तार करने के लिए ज़िले के SSP की इजाज़त ज़रूरी होगी।
3. DSP स्तर के अधिकारी प्राथमिक जांच करेंगे. अगर वाकई मामला बनता होगा, तभी मुकदमा दर्ज होगा।
4. जिसके खिलाफ शिकायत हुई है, वो अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकता है। अगर जज को पहली नज़र में मामला आधारहीन लगे, तो वो अग्रिम जमानत दे सकता है।
【लेखक : शिवेंद्र तिवारी, फॉलो करें ट्विटर पर @ShivendraDU98】