दिसपुर(ब्यूरो): रिपोर्ट के मुताबिक असम के नागरिक मूलतः CAB का नहीं बल्कि उसके संभावित परिणामों पर विरोध कर रहे हैं।
सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल पर असम में मचे बवाल के बीच सरकार के लिए यह काफी मुश्किल होता जा रहा है की इससे निपटा कैसे जाए।
आज हम एक ग्राउंड रिपोर्ट लेकर आये हैं जिसे हमने खुद असम के आम नागरिको से सीधे तौर पर जुड़कर तैयार किया है। आपको बता दें कि नागरिकता बिल में सरकार मुस्लिम के अलावा आने वाले सभी अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने वाली है जो 31 दिसम्बर 2014 से पहले भारत में शरणार्थी बन कर आया हो।
तो हमने यह जानना चाहा है की आखिर बात फस कहा रही है जो असम में इतना उबाल देखने को मिल रहा है।
क्या है समस्या
ऑल असम स्टूडेंट यूनियन से बात करने पर हमने पाया कि असम बाहरी शरणार्थियों के आने से बेहद परेशान है। मूल असम निवासी अपनी भाषा, संस्कृति, लिपि व सामाजिक परिवेश को लेकर बेहद चिंतित है क्यूंकि इन शरणार्थियों के आने से इनके अस्तित्व पर गहरा संकट आ गया है। वही असम के लोग बार बार आ रहे बांग्लादेशी शरणार्थियों कि कट ऑफ डेट वर्ष 1951 ही चाहते है जिसे एनआरसी में बढ़ा कर 31 मई 1971 कर दिया गया है।
उसके बाद भी असम के लोगो ने इसे भी भरे मन से स्वीकार्य कर लिया था परन्तु CAB के नए बिल में वर्ष 1971 को बढ़ा कर 31 दिसम्बर 2014 कर दिया गया है जो असम में शरणार्थियों की संख्या में लाखो नए लोगो को जोड़ देगा जिससे असम की संस्कृति व चलन पर बुरा प्रभाव पड़ना तय है ।
वही असम के छात्रों से बात करने पर फलाना दिखाना ने पाया कि उन्हें शरणार्थियों के आने से दिक्कत नहीं परन्तु सारा भार असम पर नहीं डाल देना चाहिए छात्र इसे लेकर बहुत चिंतित है क्यूंकि इससे उन्हें दर की इससे उनकी नौकरियां तक छीन सकती हैं।
वही अन्य भारतीयों को असम में बसने को लेकर असम के लोगो को कोई दिक्कत नहीं है।प्रदर्शनकारियों के अनुसार सभी भारतीयों का वह स्वागत करते है परन्तु गैर भारतीयों को वह स्वीकार्य नहीं करेंगे।
तो क्या है इसका तात्कालिक हल
आसु के नेताओ से बात करने पर हमने पाया कि अगर सरकार कट ऑफ डेट एक बार फिर से 1951 कर दे तो असम में शांति फिर से बहाल हो जाएगी व कई संगठन 1971 तक भी शरणार्थियों को लेने के लिए तैयार है परन्तु उसके आगे उन्हें एक शरणार्थी भी स्वीकार्य नहीं है।
वही दूसरे जुगाड़ की ओर अगर देखा जाए तो अगर सरकार यह आश्वासन देती है कि सभी शरणार्थियों भारत सरकार असम से हटा कर कही ओर स्थापित करती है तो भी इस मामले का आसानी से समाधान निकल सकता है। परन्तु यह सब करना सरकार के लिए आसान नहीं होगा क्यूंकि बंगाल भी इसपे आपत्ति जता चुका है।