पिता स्वर्गः पिता धर्मः पिता परमकं तपः ।
पितरि प्रीतिमापन्ने सर्वाः प्रीयन्ति देवताः ॥
अर्थात “मेरे पिता मेरे स्वर्ग हैं, मेरे पिता मेरे धर्म हैं, वे मेरे जीवन की परम तपस्या हैं।
जब वे खुश होते हैं, तब सभी देवता खुश होते हैं !”
हमारी नियमित पाठक राशि सिंह नें अपने ही अल्फ़ाज में अपने पिता के लिए इस ख़ास दिन को मनाया है | वो लिखती हैं –
“पापा के लिए क्या शेर लिखूं , पापा ने मुझे खुद शेर बनाया है |
दुनिया की भीड़ में सबसे करीब जो है, मेरे पापा मेरे खुदा मेरी तकदीर वो , सपने तो मेरे थे पर उनको पूरा करने का रास्ता कोई और दिखाए जा रहा था और वो थे मेरे पापा।
मुझे मोहब्बत है अपने हाथों की सब लकीरों से, ना जाने पापा ने कौनसी ऊँगली को पकड़कर चलना सिखाया था |
बेमतलब सी इस दुनिया में वो ही हमारी शान है, किसी शख्स के वजूद की ‘पिता’ ही पहली पहचान है।
दिमाग में दुनिया भर की टेंशन और दिल में सिफर अपने बच्चों की फ़िक्र वो शख्स और कोई नहीं वो हैं पिता। मेरी शौहरत मेरे पिता की वजह से है।