पर्यावरण दिवस: जो ‘Don’t Cut Trees’ के पोस्टर पेड़ नहीं बचा पाए वो बुजुर्गों के टोटके कर देते थे

5 जून पर्यावरण संरक्षण दिवस : भारतीय प्राचीन परम्परा भी जीव जन्तु व मानव के संरक्षण की बात हजारों सालों से करती आई है

नईदिल्ली : हम भले ही 21वीं सदी में आज सिर्फ़ एक दिन पर्यावरण और पेड़ बचाने की बात कर रहे हों लेकिन भारतीय संस्कृति व परम्परा इस बात का गवाह रही है कि हमनें पेड़ पौधों को पूजा है और उनकी रक्षा भी की है |

आज 5 जून है जब पूरी दुनिया पर्यावरण संरक्षण दिवस मना रही है वहीं देश सोशल मीडिया से लेकर हर जगह सिर्फ़ एक ही बात कही जा रही है कि पृथ्वी में जीवन को बचाए रखने के लिए अब पेड़ लगाना बहुत जरूरी है | लेकिन क्या कभी हमनें सोचा है कि आज पर्यावरण को बचाने की जरूरत क्यों आन पड़ी ? भारतीय सनातन परंपरा को भली भांति जानने वाले कहते हैं कि हमारे ऋषि-मुनियों-महात्माओं नें हजारों सालों पहले ही पर्यावरण बचाने की कला जानते थे और उन्हें भी इस बात का अंदाजा रहा होगा कि एक दिन मनुष्य इन पेड़ पौधों, जीव जंतुओं को अपने स्वार्थ मात्र के लिए खत्म करना चाहेगा | इसीलिए पेड़ के नीचे बैठकर इन्होंने तपस्याएँ की, पेड़ों की पूजा भी की |

जब हम आधुनिक हुए तो पिछले कुछ सालों की बात करें तो जो भी व्यक्ति गाँव या कस्बों से जुड़ा होगा उसे थोड़ा सा अपनी स्मृति में जोर डालकर याद करना होगा कि गाँवों में कोई किसी काम को न करे इसके लिए नो एंट्री, नॉट अलाउड, नॉट फॉर यूज जैसे आजकल पोस्टर बैनर न लगाकर टोटके यूज किए जाते थे | टोटके का इस्तेमाल करने का दूसरा कारण यह भी था कि लोग उस समय किताबी-स्कूली ज्ञान नहीं ले पाते थे शायद उन्हें विज्ञान की लैब नहीं पता थी |

हम आपको कुछ पर्यावरण संरक्षण संबंधित टोटके याद दिलाते हैं जिनसे आपको लगेगा कि कई वर्षों पहले हमारे बुजुर्गों नें इस बात को कह दिया था लेकिन हम उन्हें आधुनिक बनकर अनदेखा करते गए |

हमें याद है घर में आज भी बीच आँगन में तुलसी का पौधा होता था यदि बच्चे उसे छूने की कोशिश करें तो दादी, माँ, या दादा जी कहते थे “इसको मत छूना ये देवी हैं इनको जगाना नहीं” | अब इस टोटके का वैज्ञानिक महत्व जो आज हमनें समझा कि बच्चे हैं उन्हें पता नहीं पेड़-पौधे क्यों लगाए जाते हैं हो सकता है इसे खेल खेल में उखाड़ भी डालें लेकिन यदि इनको टोटके से डर रहेगी तो इन्हें कुछ नहीं करेंगे | और आँगन में तुलसी लगाने से क्या होता था कि एक तो यह वायु को शुद्ध करता है दूसरा एंटीबायोटिक, शरीर के जलन को रोकने के अलावा कई कामों में यूज की जाती है |

दूसरे टोटके के बारे में बात करते हैं नीम, गाँवों में लगभग हर घर के बाहर एक नीम का बड़ा सा पेड़ जहां बच्चे झूला झूलते थे, बुजर्गों की चौपाल लगती थी और गर्मी के दिनों में ठंडक वाली हवा के लिए दोपहरी वहीं कटती थी | हमें याद है कि जब कभी किसी के यहाँ घर-मकान या कुछ निर्माण वाले काम होते थे तो यदि उस स्थान पर नीम का पेड़ हो तो घर के बुजुर्ग उस नीम को नहीं काटने देते थे और कहते कि इसमें भगवान का वाश होता है | जाहिर है कि लोगों की आस्था देवी देवताओं से जुडी होने के कारण वो पेड़ काटने की जबरदस्ती नहीं करते थे | कारण कुछ भी रहा हो बस पेड़ कटने से बच गया |

इसी तरह शनि, बरगद व वत वृक्ष की पूजा हजारों सालों से की जाती रही है महिलाएं आज भी सोमवती अमावस्या के दिन इन पेड़ों की पूजा करती हैं और उनमें पवित्र हल्दी चंदन के लेप वाला सूत्र बांध देती थीं इस तरह उन पेड़ों को आस्था के कारण नहीं काटा जाता रहा |

आपको बताएँ कि कुछ ब्राह्मण समुदायों में आम के वृक्ष का अभी भी उपनयन संस्कार होता है   इसके बाद ही आम के पेड़ का फल तोड़ने की इजाजत घर वाले देते थे | अब इसका वैज्ञानिक तरीका यही था कि पेड़ जब तक फल नहीं देता उसके पहले इसको छूना भी नहीं है यानी जब तक पेड़ फलदार नहीं हो जाता और यह पौधा है तब तक कोई इसे नहीं छुएगा भी नहीं यानी इस टोटके से आम का पेड़ भी बच गया |

हालांकि आक की पढ़ी लिखी पीढ़ी ऐसा सोचती है कि हमारे पूर्वज स्कूल कालेज नहीं गए तो उन्हें पर्यावरण संरक्षण ही नहीं पता था लेकिन उनके लिए क्षिति जल पावक गगन समीरा पंच रचित अति अधम शरीरा। संसार सृष्टि अथवा शरीर रचना संबंधी बात कहते हए यहाँ पंच महाभूतों छिति, जाल, पावक, गगन, समीरा का उत्पत्ति क्रम में उल्लेख किया गया है और सुन्दरकांड 59/1 में पंच महाभूतों गगन, मीर, अनल, जल, धरती के लय क्रम में उल्लेख किया गया है।