सुप्रीमकोर्ट की 50% की सीलिंग तोड़ 27% OBC आरक्षण देने वाला MP देश का पहला राज्य

MP : कमलनाथ मंत्रिमंडल नें 27% OBC आरक्षण करने का प्रस्ताव पास किया, जबलपुर हाईकोर्ट पहले कर चुकी है निरस्त

भोपाल (MP) : 1992 वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ताक पर रखते हुए कमलनाथ सरकार नें राज्य में 27% OBC देने के लिए अपने मंत्रिमंडल में 3 मई को ध्वनिमत से पास कर दिया |

कल यानी 3 मई 2019 को कमलनाथ वाली कांग्रेस सरकार नें MP में वर्तमान सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में  14% ओबीसी आरक्षण को बढ़ाकर 27% करने के लिए राज्य मंत्रिमंडल में प्रस्ताव रखा जिसपर सदस्यों नें मोहर लगा दी और अब यह प्रस्ताव अनुमोदन के लिए राज्यपाल के पास भेजा जाएगा |

हालांकि 8 मार्च को पहले भी ये प्रस्ताव आया था लेकिन राज्य की हाईकोर्ट नें इस पर स्टे लगा दिया था | यदि कोर्ट से इस आरक्षण को हरी झंडी मिल जाती है तो राज्य में 27% ओबीसी आरक्षण सहित कुल 63% हो जाएगा |



इसके बाद केंद्र सरकार का 10% सवर्ण आरक्षण भी है और इसको लागू करने की घोषणा भी 8 मार्च को कमलनाथ द्वारा की गई थी लेकिन 4 महीने के बाद अभी तक इस पर कोई फ़ैसला नहीं आया है |

लेकिन यहां ये समझने वाली बात है कि 27% ओबीसी आरक्षण देने से ये 50% की सीलिंग लिमिट टूट जाएगी क्योंकि राज्य में SC को 15%, ST को 21% और OBC को 14% आरक्षण पहले ही है |

1992 वाले इंदिरा साहिनी बनाम भारत सरकार केस में सुप्रीम कोर्ट नें कहा कि किसी भी तरह से जातिगत आरक्षण 50% से ऊपर नहीं दिया जा सकता |



लेकिन MP वाले इस केस में यहाँ के कानून मंत्री पीसी शर्मा नें कहा कि कोर्ट की तरफ से 27% ओबीसी करने में कोई रुकावट नहीं होगी क्योंकि इसके पहले में तमिलनाडु जैसे राज्यों में 79% जातिगत आरक्षण है |

वहीं हमनें पीसी शर्मा की बातों को तथ्यों व तर्कों के तराजू में तौला तो उनकी बात गलत साबित हुई और जो उन्होंने कहा कि तमिलनाडु व आंधप्रदेश में पहले से ही जातिगत आरक्षण 50% से ऊपर है उसमें सच्चाई ये है कि ये आरक्षण 1992 वाले केस से पहले ही आ चुके थे | उसके बाद किसी भी राज्य में जातिगत आरक्षण 50% से ऊपर नहीं गया हालांकि राजस्थान व मध्यप्रदेश की सरकारें कई बार कुछ ओबीसी जातियों को 50% की सीमा तोड़कर आरक्षण देने का प्रयास कर चुकी हैं लेकिन कोर्ट नें हर बार इसे ख़ारिज ही किया है |

फिर आते है 10% वाले आर्थिक आरक्षित पर, एक नजर में इसे भी कोर्ट की सीमा से अधिक माना जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है इसके लिए संसद के दोनों सदनों में प्रस्ताव करने के साथ संविधान के अनुच्छेद 124 में आरक्षण के दो आधारों सामाजिक व शैक्षिक पिछड़ेपन के साथ आर्थिक पिछड़ापन भी जोड़ दिया गया था | इसलिए इसे कोर्ट भी रद्द नहीं कर सकती है क्योंकि ये आर्थिक आरक्षण है |



लेकिन कमलनाथ सरकार का ये दांव क्या कोर्ट का लिटमस टेस्ट पास कर लेगा अगर ऐसा होता है तो MP देश का पहला राज्य होगा जहां ओबीसी को सबसे अधिक 27% आरक्षण मिलेगा |