सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फ़ैसला- “आरक्षण नहीं है मौलिक अधिकार”

नईदिल्ली : ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट नें कहा है कि आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है।

देश की सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण को लेकर बहुत बड़ा व ऐतिहासिक फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट (SC) ने व्यवस्था दी है कि राज्य सरकारें पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है।

SC ने कहा कि यह मौलिक अधिकार नहीं है कि जिस में लोग हक से आरक्षण मांगे। साथ ही कहा कि कोर्ट राज्य को आदेश नहीं दे सकता कि वह आरक्षण दे।

जस्टिस एल नागेश्वर राव और हेमंत गुप्ता की पीठ ने शुक्रवार को यह टिप्पणियां करते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट के 15 नवंबर 2019 के आदेश को निरस्त कर दिया। इसमें राज्य सरकार को सेवा कानून 1994 धारा 3(7) के तहत SC/ST कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण देने का आदेश दिया गया था।

साथ ही कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के इस आदेश को भी रद्द किया कि सरकार आरक्षण देने के लिए प्रतिनिधित्व का संख्यात्मक आंकड़ा जुटाए। राज्य सरकार को इसके लिए 4 माह का समय दिया गया था।

पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 16(4 ) तथा 4(A) को सरकार को आरक्षण देने के योग बनाते हैं। इनके तहत सार्वजनिक पदों पर SC/ST के प्रतिनिधित्व की जांच के लिए संख्यात्मक डाटा जुटाना आरक्षण देने की पहली शर्त है। लेकिन अब राज्य आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है। तो उसे संख्यात्मक डाटा एकत्र करने को नहीं कह सकते।