22 प्रत्याशियों को पीछे छोड़ सवर्णों की पसंद नोटा मोदी की सीट पर 2014 से डबल: EC डाटा
CSDS के अध्ययन के मुताबिक 2014 में आबादी के विपरीत सवर्णों नें डाला था सबसे अधिक नोटा, 2018 में MP को भाजपा से छीनने में नोटा बना विलेन
बनारस (UP) : लगभग 7 लाख से ऊपर सवर्णों के वोटबैंक वाली मोदी के बनारस सीट में नोटा नें एक बार फिर सबको हैरान किया है |
जब चुनावों की बात आती है तो उसमें नोटा का जिक्र जरूर आता है तो आइए थोड़ा सा आसान शब्दों में नोट को समझ लिया जाए | तो नोटा EVM में एक ऐसा बटन होता है जोकि किसी प्रत्याशी का चुनाव चिन्ह नहीं होता बल्कि इसको दबाने का मतलब होता है “NONE OF THE ABOVE” (NOTA) अर्थात ऊपर दिए गए उम्मेदवार में से वोटर को कोई भी वोट देने के लायक नहीं है | हालाँकि वोटर नोटा क्यों दबा रहा है उसके अलग अलग कारण होते हैं या तो ख़ुद नेताओं से या पूरी की पूरी पार्टी से |
अब थोड़ा सा इसके इतिहास में जाते हैं तो इसकी शुरुआत माननीय सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद 2013 में शुरुआत हुई थी और इसका सबसे पहले चुनावों में प्रयोग साल 2013 के मध्यप्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में हुआ था |
अब आते हैं कि आखिर नोटा इतना महत्वपूर्ण क्यों हो जाता है कि इस पर चर्चा की जाए | तो इसका प्रमाण हम उठाते हैं चुनावों के परिणामों का विश्लेषण व अध्ययन करने वाली स्वतंत्र संस्था लोकनीति CSDS जो बताती है कि 2014 लोकसभा चुनाव जब भारत के इतिहास में पहला ऐसा चुनाव आया जिसमें नोटा का प्रयोग किया गया उसमें आबादी के विपरीत सबसे अधिक प्रयोग सवर्णों नें किया | ADR डाटा के अनुसार 2014 में नोटा को कुल वोट का 1.08 प्रतिशत मिला यानी वोट 60,02,942 |
हालाँकि इसको सबसे अधिक सवर्णों नें पसंद किया क्योंकि 70% के करीब आबादी SC/ST व OBC को मिलाकर हो जाती है | डाटा के अनुसार अलग अलग वर्गों नें नोटा को इस प्रकार उपयोग किया था :
- सवर्ण – 2.5 %
- ओबीसी – 1.9%
- दलित – 0.9%
अब आते हैं 2019 चुनाव की ओर जिसमें पता चलता है कि नोटा में ज्यादा कुछ बदलवा नहीं आया और इसका प्रतिशत 2014 में 1.8% के मुकाबले 2019 में 1.4% रहा |
लेकिन नोटा नें हमेशा की तरह इस बार भी चौकाया है क्योंकि ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी की बनारस सीट पर नोटा 2014 के मुकाबले में दोगुना पड़ गया |
हालाँकि 2019 में मोदी के लिए जीत का प्रतिशत पिछले के मुकाबले ज्यादा रहा लेकिन नोटा में उल्टा हुआ | चुनाव आयोग के अनुसार 2014 में बनारस सीट पर 2051 वोट मिले जबकि 2019 में ये 4037 के साथ सीधा डबल हो गया | मोदी नें महागठबंधन वाली सीट पर सपा प्रत्याशी शालिनी यादव को 4,79,505 वोटों से हराया | 1.5 लाख वोट के साथ कांग्रेस के अजय राय तीसरे स्थान पर रहे | बनारस सीट पर कुल 26 उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरे थे लेकिन भाजपा, कांग्रेस, सपा, SBSP पार्टी उम्मीदवारों को छोड़कर अन्य 22 के वोट नोटा के आसपास भी नहीं भटकते हैं |
वहीं बनारस सीट के जातीय समीकरण में नजर डालें तो पता चलता है कि 2.5 लाख ब्राह्मणों समेत 7 लाख के आसपास सवर्ण आबादी है, 3 लाख कुर्मी व यादव, 3 लाख मुस्लिम, 80,000 दलित | मतलब 15 लाख आबादी वाले बनारस में सवर्णों का दबदबा रहता है और उनका वोट जिस पार्टी की तरफ गया उसका पड़ला भारी रहता है |