नई दिल्ली : भारत में हर घंटे एक छात्र आत्महत्या का रास्ता चुनता है, जिसमे मुख्य कारण मानसिक अवसाद को माना जाता है। भारत में मानसिक रोगियों को लेकर भारतीयों का व्यवहार बेहद निराशा जनक रहा है, यह हम नहीं बल्कि हाल ही में लांसेट कमिसन के आंकड़ों से सामने निकल कर आया है।
रिपोर्ट के अनुसार करीब 80 फीसदी भारत व चीन के नागरिक मानसिक बीमारियों का इलाज ही नहीं कराते है जिसने मेन्टल हेल्थ एसोसिएशन को भी चौका दिया है। कमीशन के जुटाए गए आंकड़ों के हिसाब से दुनिया भर में मानसिक रोगियों के इलाज पर 2030 तक करीब 16 ट्रिलियन डॉलर खर्च करने होंगे जो एक बहुत बड़ी रकम है, रकम इतनी बड़ी की पुरे विश्व की इकॉनमी ही वर्ल्ड इकनोमिक फोरम ने करीब 80 ट्रिलियन डॉलर की बिठाई थी जिसके हिसाब से 16 ट्रिलियन डॉलर का अंदाजा आप लगा लिए होंगे।
यह रिपोर्ट इसलिए भी डराने वाली है क्यूंकि भारत की करीब 6.5 फीसदी आबादी मानसिक अवसाद से ग्रस्त है जिसका आंकड़ा 2020 तक 20 प्रतिशत को छूने का अनुमान है। सोचिये अगर इतनी बड़ी आबादी मानसिक रोग से ग्रस्त होगी तो भारत के विकास व सेहत पर कितना बुरा प्रभाव पड़ेगा।
मानसिक अवसाद की समस्या से सिर्फ भारत और चीन ही नहीं ग्रस्त है बल्कि पश्चिमी देश भी इसकी जद में काफी हद तक घिर चुके है। यूके की नेशनल हेल्थ सर्विस द्वारा जारी की गई रिपोर्ट “Mental Health of Children and Young People in England, 2017” में बताया गया है कि हर आठ बच्चो में से 1 बच्चा यूके में मेन्टल डिसऑर्डर से ग्रस्त है जो पुरे विश्व के लिए एक चिंता का विषय बनता जा रहा है।
वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन(WHO) द्वारा जारी किये गए आंकड़ों के अनुसार भारत कि करीब 5 करोड़ 60 लाख कि आबादी अवसाद से ग्रस्त है वहीं करीब 4 करोड़ कि आबादी एंग्जायटी डिसऑर्डर्स माने कि घबराहट कि बीमारी से जूझ रही है।
मानसिक बीमारी को लेकर हम भारतीयों का प्रचलन भी ठीक नहीं रहा है, The Live Love Laugh Foundation (TLLLF) के शोध कि माने तो करीब 47 प्रतिशत लोग मानसिक रूप से बीमार चल रहे लोगो से दुरी बनाये रखना चाहते है क्यूंकि उनका मानना है कि ऐसे लोग उन्हें भी मानसिक अवसाद में खींच सकते है।
भारत के आठ बड़े शहरो में किये गए करीब 4 लोगो पर सर्वे में 26 ने माना कि वह मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति से व्यक्तिगत तौर पर डरते है जिस कारण से वह उनसे बात करने में कतराते है।
भारत में मानसिक रोगियों को लेकर बैठ चुके मिथ को सरकार द्वारा दूर करने के कार्यक्रम दूर कि सुनार कि दुकान जैसे ही है जो देखने में ही आकर्षित है पर हकीकत में है पहुँच से कोसो दूर। सरकार को आगे बढ़ कर अलग से कई स्कीम चलनी होंगी जिससे भारत को अवसाद मुक्त बनाया जा सके वर्ना यह समस्या किसी भी देश को दीमक कि तरह खोखला बना सकती है।