नईदिल्ली : एमपी, राजस्थान व अब महाराष्ट्र में भाजपा सत्ता से बाहर हुई जहाँ आरक्षण व एट्रोसिटी एक्ट के ख़िलाफ़ हुए थे सवर्ण आंदोलन |
एक शेर के कुछ अल्फ़ाज थे “इतना भी गुमान न कर अपनी जीत पर ऐ बेख़बर, शहर में तेरे जीत से ज्यादा चर्चे तो मेरी हार के हैं…!” इन लफ्ज़ों को ज़रा सियासत से जोड़कर देखें तो सत्ताधारी भाजपा के लिए वक्त की पुकार है | हाल ही में भाजपा के हाथ से एक और राज्य छिटक गया और इंडिया टूडे नें एक सर्वे दिखाया जिसमें पता चला कि जो भाजपा 2017 में देश के 70% भाग पर राज करती थी आज 2019 आते आते वो 40% पर आ सिमटी |
जिसकी शुरुआत साल 2018 के अंतिम महीनों में मध्यप्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ हो गई थी और अब महाराष्ट्र |
भाजपा का अचानक पतन ! क्या कारण हैं जिससे पार्टी बेख़बर है आखिर वोट का वो कौन सा हिस्सा है जो पार्टी से लगातार मोह भंग कर रहा है | लगभग साल भर पहले शुरू न्यूज़ पोर्टल लेकिन सोशल मीडिया में छाने वाले फलाना दिखाना नें पहले भी कई चुनावों में आँकड़ों व सर्वे आधारित कई रिपोर्ट बताई हैं जोकि खरी उतरी हैं!
मध्यप्रदेश चुनाव से पहले हमनें सत्ताधारी भाजपा के लिए बताया था कि पार्टी का एक परम्परागत वोटबैंक अपने कई मुद्दों के लिए नाराज है लिहाज़ा लोग सोशल मीडिया में ट्रेंड के जरिए चेतावनी दे रही हैं |
और हुआ वही चुनाव परिणाम आए भाजपा बहुमत से 7 सीट दूर रह गई| लेकिन बहुमत से दूर होने के पीछे कारण था राज्य में हुए सवर्ण आन्दोलन और नोटा की वोट | आपको बता दें कि राज्य में चुनाव से एक दो माह पहले तात्कालिक कानून एट्रोसिटी एक्ट व जातिगत आरक्षण के खिलाफ़ युवाओं नें पुरजोर विरोध किया था |
पार्टी नें ध्यान नहीं दिया और जब वोट पड़ें तो लोगों नें अपना गुस्सा नोटा के जरिए निकाला | परिणाम में साफ़ दिखा कि कम से कम 20 सीटें ऐसी थीं जहाँ भाजपा हारी लेकिन वोट का अंतर नोटा से कम था | सीधा मतलब अगर वो वोट नोटा को न पड़ते तो वहाँ भाजपा जीत जाती और दिलचस्प बात थी कि यहीं एट्रोसिटी एक्ट के खिलाफ़ सवर्णों के आन्दोलन भी हुए थे |
सवर्ण आंदोलन: मध्यप्रदेश में बंद का व्यापक असर, बीजेपी विधायक का पुत्र गिरफ्तारhttps://t.co/XoqUVnBURh pic.twitter.com/P3hIk50PCM
— Zee News Hindi (@ZeeNewsHindi) September 6, 2018
ऐसा ही हाल राजस्थान में भी हुआ भाजपा 77 सीटें जीती कांग्रेस को 99 मिलीं उसनें सरकार बना ली जबकि कांग्रेस के बराबर न आने के पीछे नोटा फैक्टर काफ़ी अहम रहा |
#राजस्थान : करणी सेना ने भरी हुंकार, SC/ST ऐक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बदलाव का किया विरोध, मौजूदा आरक्षण नीति की समीक्षा की मांग pic.twitter.com/NnTjBHTqsP
— News18 India (@News18India) September 24, 2018
अब आते हैं महाराष्ट्र की ओर तो यहाँ 2018 दिसम्बर का शुरुआत था जब तत्कालीन भाजपा सरकार नें राज्य में 16% आरक्षण देने का प्रस्ताव विधानसभा से पास कर दिया | राज्य में 52% आरक्षण पहले से ही था इसके ये सीमा सीधे 68% पहुंच गई |
50% से कहीं अधिक आरक्षण, इंदिरा साहनी केस का उल्लंघन लिहाज़ा राज्य में मेडिकल छात्रों नें इसका विरोध किया बात नहीं सुनी गई तो बाम्बे हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक लड़ाई लड़ी | बाद में मार्च अप्रैल के आसपास मराठा हाईकोर्ट नें 16% मराठा आरक्षण को वैध करार करते हुए इसको 16 की बजाय 12 व 13% (शिक्षा व नौकरी) कर दिया |
बाद में इसके साथ 10% EWS वाला भी जोड़ दिया गया और और कुल प्रतिशत 75 पर पहुंच गया जोकि देश के इतिहास में पहली बार था जब किसी राज्य में आरक्षण 70% के पार पहुंच गया |
राज्य में MBBS के लिए एक समय ऐसे हालात आएं कि सिर्फ़ 8% सीटें अनारक्षित श्रेणी के लिए बचीं | और इसके बाद अपने अधिकारों के लिए इन छात्रों नें पार्टियों को सबक सिखाने के लिए अपने एक मात्र हथियार नोटा का प्रयोग किया | विरोध करने के लिए राज्य में नागपुर, लातूर, मुंबई, नाशिक में हफ़्तों में रैलियां, विरोध प्रदर्शन किए जाने लगे |
इसी दौरान कई आरक्षण विरोधी संगठन बनाए गए जिन्होंने आंदोलनों का नेतृत्व किया जिसमें सेव्ह मेरिट सेव्ह नेशन सबसे आगे रहा इसके अलावा यूथ फ़ॉर इक्विलिटी जैसे संगठनों नें भी साथ दिया | छात्रों की भूमिका वाले इन आंदोलनों में नोटा को वोट देने की शपथ दिलाई जाने लगी |
#SaveMeritSaveNation prays
सबको सन्मति दे भगवान on #GandhiJayanti for Govt who is not understanding our #पीढ़ as we are #पराये for them! @narendramodi @Dev_Fadnavis#Nagpur #Akola #Yavatmal #Chandrapur #Jalna #Bhandara #Dhamangaon #Ballarpur #Wardha #Amravati #Solapur pic.twitter.com/qAYLVfwsDm— Save Merit Save Nation (@MeritUnity) October 3, 2019
अब जब 24 अक्टूबर को महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम आए तो सत्ताधारी भाजपा को सबसे ज्यादा 105 सीटें मिली और बहुमत से लगभग 40 सीटें दूर रही | जबकि 2014 में भाजपा को इससे ज्यादा 122 सीटें आई थी और उसनें गठबंधन करके सरकार बना ली थी |
यदि हम भाजपा के 2014 और 19 के वोटों से तुलना करें तो 2014 में 47 लाख वोट 122 सीटें थीं लेकिन 2019 में घटकर 41 लाख वोट व 105 सीटें मिली | और ये जो पिछली बार की तुलना में 6 लाख वोटें कम हुई जिसमें हिस्सा नोटा ले गया |
आपको महाराष्ट्र में नोटा का गणित बताएं तो यहाँ 2014 में 0.9% (4.6 लाख़) वोट नोटा को मिले थे जबकि 2019 में ये संख्या बढ़कर 1.3% (7.42 लाख) हो गई | यानी 2.82 लाख़ वोट पहले से ज्यादा पड़े |
यहाँ नोटा इतना प्रभावी रहा कि कांग्रेस व भाजपा के 11 प्रत्याशी नोटा की वजह से हारे और दो जगह लातूर ग्रामीण व पालस कड़गांव नोटा दूसरे स्थान पर रहा |
हमारे विश्लेषण का निष्कर्ष यही निकलर आया है कि भाजपा का एक वोटबैंक जिसे हम मेरिटधारी सवर्ण वोटबैंक कहें वो दूर जा रहा है और मध्यप्रदेश राजस्थान से लेकर महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में उसके परिणाम भी सबके सामनें हैं |
इसके बाद झारखंड व बिहार जैसे राज्यों में भी चुनाव होने हैं जहां जातिगत वोटबैंक बड़ा मुद्दा रहता है ऐसे में भाजपा कैसे बचा पाती है ये भविष्य के पाले में है।