वैमानिकः शास्त्र

वैज्ञानिकों ने खोजी सबसे दूर गामा रे उत्सर्जक आकाश गंगा, भारतीय वैज्ञानिक ने किया था नेतृत्व

नई दिल्ली: विज्ञान एवं प्रद्योगिकी ने कहा है कि वैज्ञानिकों ने एक नई सक्रिय आकाशगंगा का पता लगाया है। इसकी पहचान सुदूर गामा रे उत्सर्जक आकाशगंगा के रूप में की गई है।

इस सक्रिय आकाशगंगा को नेरो लाइन सीफर्ट-1 (एनएलएस-1) गैलेक्सी कहा जाता है। यह लगभग 31 बिलियन प्रकाश वर्ग पीछे है। इस खोज से आगे की खोज का मार्ग प्रशस्त होता है।

1929 में एडमिन हब्बल ने खोज की थी कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है। तब से यह ज्ञात है कि अधिकतर आकाशगंगा हमसे दूर हो रही हैं। इन आकाशगंगाओं से प्रकाश लम्बे रेडियो तरंग की ओर मुड़ जाते हैं। इसे रेड शिफ्ट कहा जाता है। वैज्ञानिक आकाशगंगाओं के इस मोड़ की खोज कर रहे हैं ताकि ब्रह्मांड को समझा जा सके।

विज्ञान और टेक्नोलॉजी विभाग के स्वायत्त संस्थान एआरआईईएस के वैज्ञानिकों ने अन्य संस्थानों के शोधकर्ताओं के सहयोग से लगभग 25,000 चमकीला सक्रिय ग्लैक्टिकन्यूकली (एजीएन) का अध्ययन स्लोन डिजिटल स्काई सर्वे (एसडीएसएस) से किया और पाया कि एक विचित्र पिंड ऊंचे रेड शिफ्ट पर (एक से अधिक) उच्च ऊर्जा गामा किरण उत्सर्जन कर रहा है। एसडीएसस एक प्रमुख ऑप्टिकल तथा स्पेक्ट्रोस्कोपिक सर्वे है जिसका इस्तेमाल पिछले 20 वर्षों में खगोलीय पींड को देखने के लिए किया जाता है।

वैज्ञानिकों ने इसकी पहचान गामा किरण उत्सर्जक एनएलएस-1 ग्लैक्सी के रूप में की है। यह अंतरिक्ष में दुर्लभ है। ब्रह्मांड में कणों के स्रोत प्रकाश की गति से यात्रा करते हैं। ये स्रोत बड़े ब्लैकहोल की ऊर्जा से प्रेरित एजीएन द्वारा संचालित किए जाते हैं और इसे विशाल अंडाकार आकाशगंगा में होस्ट किया जाता है।

लेकिन एनएलएस-1 से गामा किरण का उत्सर्जन इस बात को चुनौती देता है कि कैसे सापेक्षवादी कणों के स्रोत बनते हैं क्योंकि एनएलएस-1 एजीएन का अनूठा वर्ग है जिसे कम द्रव्यमान ब्लैकहोल से ऊर्जा मिलती है और इसे घुमावदार आकाशगंगा में होस्ट किया जाता है। अभी तक गामा किरण उत्सर्जन का पता लगभग एक दर्ज एनएलएस-1 आकाशगंगा में लगा है।

ये 4 दशक पहले चिन्हित एजीएन के अलग वर्ग हैं। सभी लम्बे रेडियो तरंगों की ओर मुड़े हैं। सब एक दूसरे से छोटे हैं और अभी तक रेड शिफ्ट पर एक दूसरे से बड़े एनएलएस-1 का पता लगाने का तरीका नहीं निकला है। इस खोज से ब्रह्मांड में गामा रे उत्सर्जक एनएलएस-1 आकाशगंगाओं के पता लगाने का मार्ग प्रशस्त होगा। 

शोध के लिए वैज्ञानिकों ने विश्व का सबसे बड़ा जमीनी टेलीस्कोप अमेरिका के हवाई स्थित 8.2एम सुबारू टेलीस्कोप का इस्तेमाल किया। इससे ऊंचे रेड शिफ्ट की एनएलएस-1 का पता लगाने की नई पद्धति में मदद की। इससे पहले इन आकाशगंगाओं की जानकारी नहीं थी। नई गामा रे उत्सर्जक एनएलएस-1 तब बनता है जब वर्तमान 13.8 बिलियन पुराने ब्रह्मांड की तुलना में ब्रह्मांड 4.7 अरब वर्ष पुराना होता है।

शोध का नेतृत्व एआरआईईएस के वैज्ञानिक डॉ. शुभेन्दु रक्षित ने किया। इसमें माल्टे श्रेम (जापान), सीएस स्टालिन (आईआईए इंडिया), आई तनाका (अमेरिका), वैदेही एस पालिया (एआरआईईएस), इंद्राणी पाल (आईआईए इंडिया), जरी कोटीलेनेन (फिनलैंड) तथा जायजिंग शिन (दक्षिण कोरिया) ने सहयोग दिया। इस शोध को मंथली नोटिसेज ऑफ रॉयल स्ट्रोनॉमिकल सोसाएटी जर्नल में प्रकाशन के लिए स्वीकार किया गया है।

इस खोज से प्रेरित डॉक्टर रक्षित और उनके सहयोग एआरआईईएस के 3.6 एम देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप (डीओटी) पर टीआईएफआर- एआरआईईएस नियर इन्फ्रा रेड स्पेक्ट्रो मीटर की क्षमताओं का पता लगाने में दिलचस्पी रखते हैं ताकि बड़े रेड शिप पर गामा रे उत्सर्जन करने वाली एनएलएस-1 आकाशगंगाओं का पता लगाया जा सके।

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